टकराव की राह पर ममता: लगातार तीसरी बार जीतने के बाद ममता राजनीतिक विरोधियों के प्रति क्यों दिखा रहीं निष्ठुरता

पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा जारी रहने पर हैरानी नहीं,

Update: 2021-05-12 01:25 GMT

भूपेंद्र सिंह | पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा जारी रहने पर हैरानी नहीं, क्योंकि शासन-प्रशासन के साथ खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह कह रही हैं कि राज्य में कहीं कोई हिंसा नहीं हो रही है। वह सबके सामने आ चुके सच को तब नकार रही हैं, जब चंद दिनों पहले ही चुनाव बाद हिंसा में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत को स्वीकार करने के साथ उनके परिवार वालों के लिए मुआवजे की घोषणा स्वयं कर चुकी हैं। उन्होंने यह कहकर कि उनके राज्य में कोई राजनीतिक हिंसा नहीं हो रही है, एक तरह से उन तत्वों के दुस्साहस को बल ही प्रदान किया, जो हिंसक घटनाओं में लिप्त हैं। क्या इसमें संदेह है कि ये तत्व उनकी पार्टी के ही लोग हैं? ये इसलिए बेलगाम हैं, क्योंकि पुलिस उनकी गुंडागर्दी से मुंह मोड़े हुए है। वह गुंडा तत्वों पर लगाम लगाने के बजाय हिंसा की कथित झूठी खबरों की छानबीन कर रही है। कोई भी समझ सकता है कि यह सब ऊपर से मिले निर्देशों के कारण हो रहा है। समझना कठिन है कि लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के बाद ममता अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति इतनी निष्ठुरता क्यों दिखा रही हैं? इससे न केवल बंगाल का नाम खराब हो रहा है, बल्कि राष्ट्रीय नेता के तौर पर ममता के उभार की संभावनाओं पर भी पानी फिर रहा है। इससे भी बुरी बात यह है कि ममता के नेतृत्व में बंगाल फिर उसी कलह भरे अंधेरे दौर में जाता दिख रहा है, जब सत्ता राजनीतिक हिंसा को संरक्षण देती थी।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि ममता बनर्जी ने उन्हीं तौर-तरीकों को अपना लिया है, जो एक समय वाम दलों ने अपना रखे थे और जिनके कारण वे इतने बदनाम हुए कि लोगों की नजरों से उतर गए। यदि ममता राजनीतिक विरोधियों को कुचलने की वाम दलों वाली मानसिकता का परिचय देंगी तो उनके साथ-साथ बंगाल को भी नुकसान होगा। आखिर ऐसे राज्य में उद्योग-धंधे कैसे फल-फूल सकते हैं, जहां राजनीतिक हिंसा को सत्ता की शह मिलती हो? ध्यान रहे कि बंगाल पहले ही उद्योगों के लिए कब्रगाह बना हुआ है। चुनावी विजय विनम्रता की मांग करती है, लेकिन ममता राजनीतिक विरोधियों के प्रति अपनी कटुता का प्रदर्शन करने के साथ केंद्र के साथ टकराव की राह पर भी चल रही हैं। वह केवल राज्यपाल के आदेशों-अपेक्षाओं की अनदेखी ही नहीं कर रही हैं, बल्कि एक ऐसे समय हर मसले पर केंद्र से तकरार कर रही हैं, जब महामारी से निपटना उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। वह पहले से केंद्र के साथ झगड़ती रही हैं। यदि यह सिलसिला थमा नहीं तो बंगाल का और नुकसान होना तय है।


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