महाराष्ट्र हिंसाः सांप्रदायिक हिंसा रुके

बांग्लादेश में हुई घटनाओं के विरोध में त्रिपुरा में भड़की हिंसा की खबरों ने महाराष्ट्र के अमरावती समेत कई जिलों में जिस तरह से कानून व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी कर दी, वह बताता है

Update: 2021-11-17 03:21 GMT

बांग्लादेश में हुई घटनाओं के विरोध में त्रिपुरा में भड़की हिंसा की खबरों ने महाराष्ट्र के अमरावती समेत कई जिलों में जिस तरह से कानून व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी कर दी, वह बताता है कि हम सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रहे हैं। सोशल मीडिया की भूमिका अक्सर ऐसी घटनाओं के असर को फैलाने का काम करती है। ऐसे में पुलिस, प्रशासन और कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। जिस तरह से बांग्लादेश की घटनाओं की प्रतिक्रिया त्रिपुरा में देखने को मिली, उसे तत्काल पूरी ताकत से नियंत्रित करने की जरूरत थी। पुलिस ने हालांकि इसकी कोशिश की और उसे काफी हद तक कामयाबी भी मिली। इस शिकायत में कुछ सचाई भी दिखती है कि त्रिपुरा हिंसा के बारे में सोशल मीडिया पर बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए गए। कई ऐसी फर्जी तस्वीरें और फेक विडियो चलाए गए, जिनका त्रिपुरा की मौजूदा स्थिति से कोई लेना-देना नहीं था। कहीं और या काफी पहले हुई घटनाओं को त्रिपुरा की हालियां घटनाओं से जोड़कर सोशल मीडिया पर चलाया गया।

मगर यह नया चलन ही बन गया है। जब भी, कहीं ऐसी कोई घटना होती है तो उससे जुड़ी फर्जी तस्वीरें-विडियो ट्रेंड करने लगते हैं। ऐसे में पुलिस और स्थानीय प्रशासन को अपनी प्राथमिकता स्पष्ट रखनी चाहिए। अपने क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखना, उसे पथराव, मारपीट या अन्य किसी तरीके से भंग करने की कोशिश कर रहे लोगों को सख्ती से रोकना उनका पहला काम होना चाहिए। त्रिपुरा पुलिस ने जिस तरह से ट्विटर पर सक्रिय लोगों और पत्रकारों के खिलाफ कड़ी धाराएं लगाईं, उससे यह राय मजबूत हुई कि पुलिस सच छुपाना चाहती है और इसीलिए लोगों का मुंह बंद करने का प्रयास कर रही है। गलत सूचनाओं को निष्प्रभावी बनाने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि सही सूचनाओं को विश्वसनीय तरीके से सामने आने दिया जाए। लेकिन त्रिपुरा हिंसा को कवर करने आई महिला पत्रकारों के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद के एक सदस्य की शिकायत पर एफआईआर जैसे कदमों ने इस प्रक्रिया को बाधित ही किया। त्रिपुरा की खबरों पर महाराष्ट्र में हुई हिंसा और ज्यादा गंभीर है।
अगर थोड़ी देर को यह दलील स्वीकार ली जाए कि रजा अकादमी को शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए इजाजत न देना लोकतांत्रिक मान्यताओं के खिलाफ होता, तो भी पुलिस को इतना अंदाजा तो होना ही चाहिए था कि शरारती तत्व मौजूदा माहौल में इन प्रदर्शनों का फायदा उठा सकते हैं। पुलिस और प्रशासन का काम हिंसा भड़काने की कोशिश में लगे लोगों का धर्म और उनकी राजनीति देखना नहीं, उन पर सख्ती से अंकुश लगाना होना चाहिए। महाराष्ट्र पुलिस इस मोर्चे पर कठिन सवालों से घिरी है। बहरहाल, कहने की जरूरत नहीं कि मौजूदा हालात में त्रिपुरा और महाराष्ट्र में हुई घटनाओं से सबक लेते हुए अन्य राज्यों को भी अपनी ओर से पूरी तैयारी रखनी चाहिए ताकि निहित स्वार्थी तत्वों को अपने मंसूबे पूरे करने का कोई मौका न मिल जाए।

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