रोशनी कीजिए, शोर नहीं

सच पूछा जाए तो यह दीपावली तय कर देगी कि हम लोगों ने प्रदूषण कम करने के अभियान को कितनी गंभीरता से लिया है। दीपावली के दिन हम लोग पटाखे फोड़ कर अपनी खुशियों का इजहार करते हैं।

Update: 2022-10-10 06:07 GMT

Written by जनसत्ता; सच पूछा जाए तो यह दीपावली तय कर देगी कि हम लोगों ने प्रदूषण कम करने के अभियान को कितनी गंभीरता से लिया है। दीपावली के दिन हम लोग पटाखे फोड़ कर अपनी खुशियों का इजहार करते हैं।

परेशानी की बात यह है कि ऐसा करके हम अनावश्यक शोर पैदा करने के साथ-साथ जल, थल और नभ, सभी को प्रदूषित करते हैं। दीपावली की रात हमारी हवा में पटाखों से निकले जहरीले रसायन सांस संबंधी बीमारियों को पैदा करते हैं। हम सभी जानते हैं कि दीपावली की अगली सुबह गलियां, मोहल्ले और सड़कें पटाखों के जलने से पैदा हुए कचरे से भरे रहते हैं।

एक दिन स्वच्छता कार्यक्रम में भाग लेने से देश न तो स्वच्छ होगा और न ही प्रदूषण मुक्त। इसके लिए तो हमें हर समय यह ध्यान रखना होगा कि हम कोई ऐसा काम न करें, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित करने में बाधा पैदा होती है। बढ़ते हुए प्रदूषण और विषाणुओं के बढ़ते हमलों के चलते तो हमें अब और भी अधिक सावधानी बरतनी चाहिए।

देश में कर्ज महंगा होने से जहां नए निवेश कम हो रहे हैं, वहीं रेपो रेट भी तीन साल के उच्च स्तर पर पहुंच जाने से ब्याज दर में वृद्धि से सकल घरेलू उत्पाद के विकास में क्रमश: कमी हो रही है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार महंगाई रोकने में जुटे हैं, लेकिन अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिल रही, क्योंकि डालर के मुकाबले रुपया कमजोर, राजकोषीय और वित्तीय घाटा भी उच्च स्तर पर तथा औद्योगिक रफ्तार सुस्त होने के साथ रियल इस्टेट क्षेत्र में उछाल नहीं दिख रहा है। सभी प्रकार के कर्जे महंगे होने से कर्जदार को ब्याज और किश्त चुकाने में मुश्किलें आ रही है।

अर्थव्यवस्था के सभी संकेतांक उत्साहवर्धक नहीं होने से आरबीआइ भी सरकारी आर्थिक नीति से संतुष्ट नहीं है। सावधि जमा योजना पर ब्याज में कमी से बैकों में जमा राशि कम हो रही है। इसके बावजूद मुफ्त की रेवड़ी बांटना जारी रखना राष्ट्रहित में नहीं होगा, क्योंकि लोगों को चाहिए रोजगार। संपादकीय 'असंतोष का अर्थ' (4 अक्तूबर) में भी महंगाई और बेरोजगारी पर चिंता का उल्लेख है। इसी तरह नितिन गडकरी की टिप्पणी 'देश संपन्न, किंतु यहां के लोग गरीब' मायने रखती है। सरकार को सच से सामना करना ही होगा।

भारत में सरकार ने गरीबों व वंचितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं बनाई हैं। सरकार तो यह भी दावा करती है कि फलां कानून या नीति लागू होने से बेरोजगारी, महंगाई व भुखमरी शीघ्र खत्म होगी और देश में कोई भी परिवार भूखा नहीं सोएगा। अगर सरकारी आंकड़ों को उठाकर प्रस्तुत किया जाए तो कई हजार लोग भुखमरी के कारण जान गंवाते हैं, रोजगार के लिए पलायन करते हैं और महंगाई के कारण बर्बाद होकर सड़क पर खड़े होकर भीख मांगने लगते हैं।

बता दें कि भारत को विकसित देशों की तर्ज पर आगे बढ़ाने का सपना देखा जा रहा है, लेकिन जब तक महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, भुखमरी आदि का खात्मा कर आधार मजबूत नहीं किया जाएगा, तब तक हर विकास योजना की नींव ढहती नजर आएगी। सरकार को इस ओर ठोस कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।


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