इसके साथ ही एक अज्ञात सा भय बना रहता है कि कहीं यह सब जो हमारे पास है,ये हमसे छिन न जाए। दरअसल ये सब भौतिक साधन संसाधन जितना जोड़ते हैं, विशेषत: जब दूसरों की कीमत पर जुटाते हैं, और इसके साथ जब नैतिकता से नाता छूट जाता है,और उस दशा में, सब कुछ मिलने के बाद, अक्सर सोचने और व्यवहार का तरीका बदलने लगता है, तो उतने ही हमारे विरोधी और शत्रु पनपने लग जाते हैं। और यहां से दूसरे लोगों से एक अलगाव शुरू होता जाता है। जहां आपके प्रति लोगों का नजरिया बदल जाता है।
जाहिर सी बात है कि संपन्नता से स्वार्थ और दूसरों की अपेक्षा का पैदा होना सभी को अपने से दूर कर देता है। सुख सुविधाओं से युक्त इंसान अपने जीवन को सफल मानता है, लेकिन यह तो कतई नहीं कहेगा कि सफल जीवन वह है, जहां लोग हमें पसंद न करते हों।
दरअसल सफल जीवन वह है जिसमें हमने बहुत से लोगों से जुड़ाव पाया है,ना कि अलगाव। यही नैतिकता का प्रश्न है। यानी जहां हमने धन सम्पदा की बजाय लोगों का स्नेह कमाया है, तो वही सफल जीवन का सार है। इसलिए अगर ऐसे मित्र बनाएं हों जो जीवन में जो हितैषी हों और वे हमारी संगति में रहकर सुख का अनुभव करते हों, फिर इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि हमारे पास कितना धन अथवा बल है। अगर हमारे पास भावनात्मक सहारा होगा, जिससे हमें यह बल मिलेगा कि हम किसी भी स्थिति का सामना कर सकें, तो जीवन में अलगाव नहीं होगा। नैतिकता के दिशा-निर्देश बताते हैं कि किस प्रकार का व्यवहार सुख की ओर ले जाएगा और किससे समस्याएं उत्पन्न होंगी।
जब हम अपने उपलब्ध साधनों से दूसरों का कल्याण कर सकें, उनसे भेद ना रखें, बल्कि ईमानदारी से दूसरों को सुखी बनाना चाहते हैं, तो उन्हें भरोसा होता है कि हम उन्हें नहीं छलेंगे, सताएंगे नहीं और शोषित नहीं करेंगे। यह प्रत्येक मिलने वाले व्यक्ति से हमारी नियति की आधारशिला का काम करता है। वे हमारे साथ निश्चिंत और खुश रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि डरने की कोई बात नही है।
बदले में, हम उनसे अधिक सुख का अनुभव करते हैं। यह कौन चाहेगा कि हम जब भी किसी के पास जाएं तो वे तुरंत सावधान हो जाएं अथवा भय से कांपने लगें! हर किसी को मुस्कराता चेहरा ही स्वागत योग्य लगता है। चूंकि मनुष्य सामाजिक प्राणी है, तो स्वाभाविक है कि हमें जीवित रहने के लिए दूसरों का सहारा और जुड़ाव चाहिए होता है। केवल तब नहीं जब अबोध शिशु हो अथवा नर्सिंग होम में पड़े जर्जर वृद्ध अवस्था में हो, बल्कि आजीवन हमें औरों की सहायता और देखभाल चाहिए होती है।
प्रेमपूर्ण जुड़ाव से जो भावनात्मक सहारा मिलता है, वही जीवन को परिपूर्ण बनाता है। नैतिकता की गहरी समझ हमें हर मिलने वाले से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होती है। यही जीवन की असली सफलता है।