अतीत के सबक, इस ग्लोबल विलेज बनी दुनिया के लिए राह बताते हैं
इतिहासकारों का यह भी निष्कर्ष है कि किसी युद्ध का शृंखलाबद्ध असर होता है
हरिवंश का क़ॉलम:
इतिहासकार विल डुरांट (1950) ने कहा था कि दुनिया ने गुजरे 3421 सालों में महज 268 वर्ष ही युद्ध मुक्त देखे हैं। इतिहासकारों का यह भी निष्कर्ष है कि किसी युद्ध का शृंखलाबद्ध असर होता है। युद्ध की लौ एक बार जलती है, तो शुरू करने वाले (कर्ता) के हाथ में परिस्थितियां नहीं रहतीं। इसके परिणाम, प्रभाव और अंत, संसार के हालात तय करते हैं। इसलिए विश्लेषक अब बताने लगे हैं कि इसकी आंच व लपटें यूरोप में भी फैल सकती हैं।
टाल्सटाय 'वार एंड पीस' में कहते हैं युद्ध में रणनीतिकार हर आगत-अनागत की कल्पना करते हैं। वैसी रणनीति बनाते हैं, पर युद्ध का फैसला तो अरबों अकल्पनीय संभावनाएं तय करती हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने अचानक अपनी विदेश नीति में बड़ा परिवर्तन किया। 27 फरवरी को बर्लिन में एक लाख से अधिक लोगों ने युद्ध विरोधी प्रदर्शन किया। दिसंबर (2021) में जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ सत्ता में आए।
यूक्रेन स्थिति पर आपात संसदीय सत्र बुलाकर जर्मन सेना के बजट में अतिरिक्त 84 बिलियन पाउंड बढ़ोतरी की। केनेडी ने चेताया था कि मानव इतिहास, युद्ध के ऐसे 'सबकों' से भरे हैं, पर मानव ने सीखा नहीं है। पहले विश्व युद्ध में एक करोड़ से अधिक लोग मरे दूसरे विश्व युद्ध में 5.5 करोड़ लोगों की मौत हुई। 3.5 करोड़ इंसान जख्मी हुए। 30 लाख लोग लापता हो गए। इस कारण 20वीं सदी के ऐतिहासिक नायकों ने संसार को अतीत से सीखने की सलाह दी।
19वीं व 20वीं सदी के संसार ने युद्धों का संहार देखा। प्रलय का पश्चाताप किया। इसलिए आइंस्टीन ने दुनिया के नागरिकों से सीधे कहा, दुनिया की जनता अगर युद्धों के प्रति सचेत हो जाए, तभी युद्ध खत्म होंगे। इसलिए सिर्फ महात्मा गांधी ने ही नहीं, संसार के इतिहास पुरुषों, चिंतकों-लेखकों ने युद्धों के प्रति संसार को बार-बार सावधान किया। विचारकों का एक वर्ग मानता है कि दुनिया में ये संघर्ष नहीं होते, तो आज इंसान धरती को स्वर्ग बना चुका होता।
आधुनिक प्रगति, भौतिक विकास या उपलब्धियां मानव ज्ञान की देन हैं। इस अर्थ में पत्थर युग से इंसान इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में है। पर सवाल मानव मन के बदलाव का बना हुआ है। संसार के श्रेष्ठ राजनयिकों, युद्ध के जानकार इतिहासकारों ने इन परिस्थितियों की कल्पना की है, जब युद्ध की जमीन तैयार होती है। सही कारण- मसलन द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी का रुख। वाजिब हक मारना- भारतीय संदर्भ में समझें, वनवास के बाद भी पांडवों को हक न मिलना।
ईमानदार इरादा- जरासंध के सामने कृष्ण ने 16 बार युद्ध का मैदान छोड़ा। रणछोड़ कहलाए। अंत में अवश्यंभावी होने पर बिना शोर-शराबे के जरासंध का अंत किया। सफल होने की औचित्यपूर्ण संभावना- यह पुराने समय में साम्राज्य विस्तार या सीमा विस्तार से जुड़ा है। आधुनिक संसार में अप्रासंगिक है।
नैतिक रूप से जायज प्रसंग- मसलन द्वितीय विश्व युद्ध में विचारधाराओं के परे ब्रिटेन, रूस व अमेरिका की एक साथ मोर्चाबंदी। भविष्य देखने की राह, इतिहास के पन्नों से मिलती है। इसलिए नेपोलियन ने सेंट हेलेना (जहां बंदी थे) में कामना की, काश मेरी संतान इतिहास पढ़े। कारण, यही एक मात्र सच्चा मनोविज्ञान है और इकलौता सही दर्शन भी। इसलिए अतीत के सबक, इस ग्लोबल विलेज बनी दुनिया के लिए राह बताते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)