कानूनी तर्क : पति के जीने का अधिकार.. घृणा फैलाते विमर्शों ने हमें कहां पहुंचा दिया
आरोप के मुताबिक, वह पति के बीमे की राशि हथियाना चाहती थीं।
अपने पति डेनियल ब्रोफी की हत्या के आरोप में हाउ टू मर्डर योर हस्बैंड (अपने पति को कैसे मारें) की लेखिका नैंसी क्राम्पटन ब्रोफी को पच्चीस साल की सजा सुनाई गई है। इसमें उन्होंने पति को मारने के तौर-तरीके बताए थे। इसमें बंदूक से लेकर चाकू या जहर से मारने या किसी हत्यारे का सहारा लेने तक की बातें शामिल हैं। पच्चीस साल जेल में रहने के बाद ही उन्हें जमानत मिल सकती है। इस वक्त वह इकहत्तर साल की हैं। अदालत में बताया गया कि उन्होंने अपने पति को उसके दफ्तर में गोली मार दी। आरोप के मुताबिक, वह पति के बीमे की राशि हथियाना चाहती थीं।
अदालत में नैंसी ने कहा कि उन्हें कुछ याद नहीं, वह बेकसूर हैं। पर अदालत ने उनकी और उनके वकीलों की बातें नहीं मानी। यह भी पता चला कि नैंसी ने हत्या के लिए हैंडगन खरीदी थी। हालांकि दलील दी गई कि हैंडगन उन्होंने किताब लिखने की तैयारी के लिए खरीदी थी। नैंसी की दो किताबें हैं-द रांग लवर और द रांग हस्बैंड। लेकिन जब उन्होंने 2011 में हाउ टू मर्डर योर हस्बैंड लिखा, तब वह ज्यादा मशहूर हुईं। अपनी रक्षा करना, अपने खिलाफ हुए अन्याय के विरोध में आवाज उठाना जायज है, लेकिन पति को मारने की वकालत करना भला कैसे जायज ठहराया जा सकता है!
घृणा फैलाते विमर्शों ने हमें कहां पहुंचा दिया है कि अपने अलावा हम और किसी की सुनना ही नहीं चाहते। पति को मारने की बात करने वाला निबंध आखिर कैसे छप गया? क्या इसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति का अधिकार कहते हैं? या अमेरिकी सरकार और दुनिया को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाने वाले मानवाधिकार संगठन सो रहे थे? कायदे से लेखिका पर ही नहीं, बल्कि उन सभी पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, जो ऐसे घृणा फैलाते हैं, क्योंकि इंटरनेट पर ऐसी बहुत-सी किताबें हैं, जो घृणा फैलाती हैं और आसानी से मंगाई जा सकती हैं
गौरतलब है कि यह मुकदमा अमेरिका में चला, जहां कानून लिंग-निरपेक्ष (जेंडर न्यूट्रल) है और अपराधी चाहे स्त्री हो या पुरुष, उसे सजा दी जा सकती है। अपने यहां अगर ऐसा होता, तो कानून इतना एकपक्षीय है कि यह मान लिया जाता कि पता नहीं, इस बेचारी स्त्री को अपनेपति के हाथों क्या कुछ झेलना पड़ा होगा और शोषण से मुक्ति के लिए उसने गुस्से में पति की हत्या का रास्ता चुना, इसलिए उसे माफ कर देना चाहिए। अपने यहां चलाया जाने वाला विक्टिम कार्ड नैंसी का बहुत बड़ा सहारा बनता। उसे न केवल समाज, बल्कि कानून की भी सहानुभूति मिलती और शायद ही सजा होती।
कानून की एक पक्षीयता अक्सर किसी को न्याय देने के मुकाबले, अन्याय करने का एक बड़ा हथियार बन जाती है। अपने देश में अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि महिला कानूनों के दुरुपयोग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। जांच एजेंसियां और अदालतें बार-बार इस बारे में चेता भी रही हैं। नैंसी के वकीलों ने भी उसे सताई हुई स्त्री दिखाने की कोशिश की, मगर अदालत ने उनकी एक न सुनी। सोचने की बात यह है कि अगर पत्नी के बहुत से कानूनी अधिकार हैं, तो पति के पास ये अधिकार क्यों नहीं हैं। या पति या मित्र होने भर से कोई पुरुष इतना बड़ा अपराधी बन जाता है कि उसके जीने के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं? क्या पुरुषों के मानव अधिकार नहीं? क्यों भला?
इन दिनों एक बात काफी सुनाई देती है कि सारे पुरुष एक जैसे होते हैं। इस एक जैसे के तर्क में पुरुषों को एक तरह से राक्षस की भांति बताया जाता है, और स्त्रियां मानो जन्म से मृत्यु तक सिर्फ सताई जाती हैं और प्रकारांतर से देवियां होती हैं। ये देवी और राक्षस होने के तर्क कानून से क्यों पोषित होने चाहिए? अगर ऐसा होता रहेगा, तो हो सकता है कि अपने देश में भी ऐसी पुस्तकें लिखी जाने लगें और वे खूब बिकें भी और समाज का एक वर्ग उन्हें समर्थन भी देने लगे। इसलिए अब समय आ गया है कि अपने यहां के महिला कानूनों पर नए सिरे से विचार किया जाए। उन्हें जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए, ताकि वे सताई गई स्त्रियों के साथ-साथ सताए गए पुरुषों को भी न्याय दे सकें।
सोर्स: अमर उजाला