बाबुओं छोड़ो सब और बेचों खरबपतियों को!

बाबुओं के हाथ में देश दे करके हम क्या करने वाले हैं?

Update: 2021-02-13 14:44 GMT

भारत की नौकरशाही याकि आईएएस बाबुओं की फौज को बुधवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में जो आईना दिखाया वह आजाद भारत की इतिहासजन्य घटना है। क्या गजब वाक्य कि क्या-सबकुछ बाबू ही करेंगे? आईएएस बन गया मतलब वह फर्टिलाइजर का कारखाना भी चलाएगा, आईएएस हो गया तो वह हवाई जहाज भी चलाएगा। यह कौन सी बड़ी ताकत बना कर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश दे करके हम क्या करने वाले हैं?


सोचें, आईएएस अफसरों को लोकसभा में प्रधानमंत्री ने 'बाबू' कहा। सन् 2016 में आईएएस एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष ने 'बाबू' शब्द को गाली समान कहा था। और 2021 की 11 जनवरी को भारत के प्रधानमंत्री ने 'बाबू' शब्द के हवाले संसद में कहा- आईएएस हो गया तो वह हवाई जहाज भी चलाएगा। यह कौन सी बड़ी ताकत बना कर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश दे करके हम क्या करने वाले हैं?

अपना मानना था, है और रहेगा कि नरेंद्र मोदी अपने आपको सर्वज्ञ मानते हैं। वे गुजरात में मुख्यमंत्री पद के समय से अनुभव के साथ कुछ चुनिंदा बाबुओं को छांट उनके जरिए राज करते हैं। उनका बाबुओं की काबिलियत, क्षमता आदि के बारे में वैसा ही आकलन है जैसे गुजरात के आम व्यापारी वर्ग की सोच में है। बिजनेस, कारोबार, उद्योग में बाबुओं से क्या बन सकता है, इसका नरेंद्र मोदी को दो टूक अनुभवहै। तभी कोरोना के महामारी काल के वक्त को अवसर बना कर सरकारी कारखानों को बेचने और आर्थिकी में स्ट्रक्चरल याकि संरचनात्मक परिवर्तन का लक्ष्य बना सब कुछ यहां तक की खेती भी उन चुनिंदा खरबपतियों को सुपुर्द करवाने का रोडमैप बना है और संकल्प हुआ है कि कुछ हो जाए झुकना नहीं है।

लोकसभा में प्रधानमंत्री का भाषण इस नाते भी दो टूक संकल्प बतलाने वाला है कि राहुल गांधी भले कहें कि हम दो हमारे दो और आम आदमी में अंबानी-अडानी की चर्चा हो लेकिन बाबुओं जान लो इस सबका कोई अर्थ नहीं है हमें दस-बीस वे सुपर खरबपति बनाने हैं और इनका ऐसा एकाधिकार बनाना है कि ये खरबपति से शंखपति होते जाएं और अगले पांच साल में ऐसे पांच छह शंखपति अंबानी-अडानी हों, जिससे दुनिया में उनका दबदबा बने और भारत के 138 करोड़ लोगों के बाजार की कमाई विदेशियों को ललचा जाए। तमाम वैश्विक कॉरपोरेट तब अंबानी-अडानी एंड पार्टी के जरिए भारत में कमाई करें। अंबानी-अडानी का स्वदेशी मंच और उनके पीछे कमाई करती वैश्विक कंपनियां। सवाल है कि बाबू लोग क्या सरकारी संपदा बिकने देंगे? इसी चिंता और दो टूक मैसेज देने के लिए लोकसभा में प्रधानमंत्री ने बाबुओं को मैसेज दे दिया। तब मंत्री और सचिव सब फटाफट बेचने के मिशन में क्या नहीं जुटेंगे? क्या किसी में सवाल करने की हिम्मत है? कोईविरोध कर सकता है? फिर जब किसान अक्टूबर आते-आते दम तोड़ देंगे तो आगे विरोध की हिम्मत किसी की नहीं बचेगी। न जनता के पैसे की एलआईसी का निजीकरण अटकेगा और न रेलवे का निजीकरण। भाजपा या संघ में तो खैर विरोध, आपत्ति का सवाल ही नहीं!


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