लीक-लीक गाड़ी चले

‘लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत। लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत’-कहावत को सुन कर ही शायद सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने कविता कही होगी

Update: 2022-05-10 09:28 GMT

'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत। लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत'-कहावत को सुन कर ही शायद सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने कविता कही होगी, 'लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं'। इसीलिए बाईबिल की तर्ज़ पर कहा जाए तो 'धन्य हैं वे जो अंग्रेज़ी के लीक का सहारा लेकर हिंदी की लीक पर न चलने में अखंड विश्वास रखते हैं, ऐसे लोगों को ही सरकारी स्वर्ग में सोने का सिंहासन मिलता है।' फिर सोना चौबीस कैरेट वाला है या नींद वाला, यह पुनः आपके अंग्रेज़ी और हिंदी वाले लीक-लीक पर चलने पर निर्भर करता है। अगर पोस्टिंग कमाई वाली है और आप उससे होने वाली कमाई को मिल-बाँट कर लीक करते हैं अर्थात् मिल-बाँट कर खाते हैं तो ताउम्र सोने के सिंहासन पर बने रहेंगे। नहीं तो आयोडेक्स की पंच लाईन 'आयोडक्स मलिए काम पर चलिए' की तरह सरकारी नौकरी की उम्र बीत जाने तक आवेदन करते रहिए और हिंदी वाले लीक पर चलते रहिए। अब देवधरा में ही देख लीजिए, जिन्हें लीक पर नहीं चलना था वे दसवीं की परीक्षा में बमुश्किल पास होने के बाद भी कांस्टेबल भर्ती की लिखित परीक्षा में मेरिट में रहे। यह तो बुरा हो पेपर लीक होने की बात के लीक होने का।

नहीं तो ये बेचारे कहावत और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कहे अनुसार लीक से हट कर ही चल रहे थे। जहां तक हिमाचल की शरीफ, ईमानदार और डबल इंजिन वाली सरकार का प्रश्न है, उसने तो अपने लोगों के लिए ख़ास प्री-पेड पुलिस भर्ती परीक्षा की व्यवस्था की थी। सरकार की ओर से ट्रांसपरेंसी की पूरी व्यवस्था थी क्योंकि लिखित परीक्षा के बाद नए नियमों के तहत साक्षात्कार तो होना नहीं था। सरकार ने नई व्यवस्था सुनिश्चित कर इन्टरव्यू में सिफ़ारिश की कोई गुँजाईश नहीं छोड़ी थी। कल्याणकारी सरकार तो प्रदेश में चपरासी से लेकर वाइस चांसलर तक की भर्ती में एकदम ट्रांसपरेंट तरीके से अपने बेरोज़गारों को नौकरियाँ देने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्य मंत्री के नाम की तरह अगर भ्रष्टाचार की सर्वत्र जय-जयकार हो रही है, तो इसमें बेचारे वह क्या कर सकते हैं। भ्रष्टाचार और ईश्वर तो संसार के कण-कण में समाए हुए हैं। जो मुख्य मंत्री अपने ओएसडी की सही अर्थों में ज़रूरतमंद और बेरोज़गार पत्नी सहित योग्य बेरोज़गारों को उस विश्वविद्यालय के मॉडल स्कूल में नौकरी न दे सके, जहां प्रोफ़ेसर और वाइस-चांसलर भी ऐसे ही भर्ती किए जाते हैं तो धिक्कार है ऐसे मुख्य मंत्रित्व और पारदर्शी, शरीफ, ईमानदार एवं डबल इंजिन वाली सरकार पर। इसीलिए 'आई हेट धिक्कार, नगरवधु। क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।' वैसे भी पहले जब स्कूल शिक्षा बोर्ड और प्रदेश विश्वविद्यालय जाली प्रमाणपत्र जारी करते रहे और राज्य में मंत्रियों-विधायकों, रसूख़दारों एवं चहेतों को चिटों पर नौकरियाँ बाँटी गईं, तब कौन से पेपर लीक हुए थे।
भले ही पेपर लीक के आरोपियों को मुख्य मंत्री का नाम तक पता नहीं था, लेकिन उनके नाम की तरह संसार में सर्व व्याप्त, सर्व शक्तिमान और सर्व विद्यमान लीक की जानकारी तो थी ही उन्हें। वैसे लीकेज के कई और फ़ायदे भी हैं। राष्ट्रभक्त सरकारें और राजनीतिक दल सर्वे में लीक के सहारे ईवीएम हैक करती हैं। ऑनलाईन साइट्स अपने ग्राहकों का डाटा बेच कर पैसा कमा रही हैं। बहत्तर हूरों के मोह में फँसे मुसलमान की तरह बाज़ार में फंसा आम आदमी हज़ारों ब्रांड और रंग देखकर चौंधिया जाता है। ऐसे में सालों से उनकी सेवा में जुटी वेबसाइट उन्हें बताती हैं कि काली पतलून के साथ किस रंग की शर्ट का कॉम्बिनेशन उन्हें ज़न्नत दिला सकता है। बस ज़रूरत है तो सिर्फ इस बात की कि लीकेज पर डटकर काम किया जाए और उससे घबराने की बजाय उससे काम चलाने पर ध्यान फोकस किया जाए। विश्वगुरू देश के यशस्वी प्रधान मंत्री तो बेचारे कितने दिन अपने मंत्रियों के सहारे अपनी डिग्रियां लीक करवाने पर तुले रहे। कांग्रेस भी पिछले एक दशक से हर चुनाव में हार के बाद समीक्षा बैठक से पहले मीडिया में विश्लेषण की लीकेज के सहारे अपनी हार पचाती आ रही है।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं


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