Ladakh Standoff: भारत की चीन को दो टूक, बवाल और बिजनेस दोनों नहीं चलेगा

‘सीमा पर तनाव और आपसी सहयोग दोनों एक साथ मुमकिन नहीं है,’

Update: 2021-05-21 14:51 GMT

ओम तिवारी। 'सीमा पर तनाव और आपसी सहयोग दोनों एक साथ मुमकिन नहीं है,' विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों पर बिलकुल दो टूक अंदाज में अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. जयशंकर ने कहा कि दोनों देश आज ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां तनाव खत्म किए बिना कारोबारी सहयोग का कोई औचित्य ही नहीं बनता. बात बिलकुल वाजिब है. बॉर्डर पर शांति के बैगर बिजनेस आखिर कैसे मुमकिन है? लद्दाख सेक्टर में आज भी उत्तरी और दक्षिणी पैंगोंग लेक इलाके को छोड़कर गतिरोध के हालात वाले बाकी सभी क्षेत्रों में भारत और चीन की सेना आमने सामने खड़ी है. फरवरी में डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू तो हुई लेकिन सीमा पर शांति की बहाली के लिए लद्दाख के दूसरे इलाकों से भी चीनी सैनिकों का पीछे हटना जरूरी है. जिसके बाद ही भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों में बात आगे बढ़ सकती है.


गौरतलब है कि चीन व्यापार और निवेश के क्षेत्र में भारत से सहयोग की मांग कर रहा है. चीनी नेतृत्व चाहता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले एक साल से बने हालात को दरकिनार कर भारत कोराबारी रिश्तों पर अपना ध्यान केंद्रित करे. लेकिन एस. जयशंकर ने गुरुवार को एक मीडिया हाउस को दिए गए इंटरव्यू में भारत की प्राथमिकता और शर्तें साफ लफ्जों में चीन के सामने रख दी.

हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा, डेमचोक और डेपसांग में PLA अब भी मौजूद
उधर, इससे एक दिन पहले सेना प्रमुख एम. एम. नरवणे ने मीडिया को बताया कि भारत सीमा पर चीन की हर हरकत पर लगातार नजर रख रहा है. पूर्वी लद्दाख के इलाके में अब भी करीब पचास से साठ हजार भारतीय सैनिक तैनात हैं. चीन ने वादे के मुताबिक डिसइंगेजमेंट के कदम तो उठाए हैं लेकिन बात डिएस्केलेशन तक नहीं पहुंची है. क्योंकि हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेमचोक इलाकों में चीनी सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं है. डेपसांग के मैदानों में पीएलए ने अब भी रास्ता रोक रखा है, जिससे भारतीय सैनिक इस इलाके में गश्त नहीं लगा पा रहे हैं.

जाहिर है पैंगोंग झील की तरह जब तक पूर्वी लद्दाख के बाकी क्षेत्रों में भी डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी, सरहद पर तनाव की स्थिति बनी रहेगी. चीन के जवाब में भारत के जाबांज भी LAC पर मुस्तैद रहेंगे. भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की 12वीं दौर की बातचीत 9 अप्रैल को हुई, लेकिन इसमें फ्रिक्शन प्वाइंट्स को लेकर कोई रास्ता नहीं निकल पाया. अब नजर वर्किंग मेकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) की अगली मीटिंग पर बनी है. हालांकि चीन ने माहौल में बदलाव के कोई संकेत नहीं दिए हैं.

सीमा पार चीन का निर्माण कार्य जारी, भारत में भी पूरी तैयारी
इससे ठीक उलट, पिछले दिनों सरहद के पार पीएलए की हलचल अचानक बढ़ गई. चीनी सेना यहां अपने सालाना सैन्य अभ्यास के लिए जुटी थी. इसके अलावा सड़क, हेलीपैड समेत सामरिक तैयारियों से जुड़े सभी निर्माण कार्य लगातार जारी हैं. लेकिन सेना प्रमुख नरवणे ने बताया कि पूर्वी लद्दाख में हालात पूरी तरह काबू में हैं. चीन की तरह भारत भी अपने क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने में जुटा है. चीन की तरफ से न तो फरवरी में हुए डिसइनगेजमेंट का उल्लंघन हुआ है, न ही किसी और अवहेलना की खबर है. नरवणे ने उम्मीद जताई कि दोनों पक्षों में बने विश्वास के बूते शायद आने वाले दिनों में गतिरोध का समाधान भी निकल आए.

हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन पर सीधा आरोप लगाया कि वह 1988 की आम सहमति से भटक गया है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीजिंग दौरे में सीमा पर शांति के लिए दोनों देश में जो आम सहमति बनी थी चीन ने उसको किनारे रख दिया. जबकि 1988 की आम सहमति की बदौलत ही भारत और चीन में 1993 और 1996 के सीमा समझौते हुए, जिससे करीब तीन दशकों तक LAC पर अमन और शांति बनी रही. जयशंकर ने साफ कर दिया कि चीन के साथ भविष्य में भारत के संबंध कैसे होंगे यह आम सहमति पर बीजिंग के अमल पर ही निर्भर करता है.

भारत-चीन के बीच 1988 की आम सहमति की अहमियत
दरअसल, राजीव गांधी का चीन दौरा कई मामलों में ऐतिहासिक था. 1954 में पंडित नेहरू के बाद किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली बीजिंग यात्रा थी. 34 साल के लंबे अंतराल में भारत और चीन के बीच 1962 की जंग के अलावा 1967 और 1987 में सिक्किम और अरुणाप्रदेश के इलाकों में दो-दो बार सैन्य संघर्ष की नौबत आ चुकी थी. 1988 के दौरे ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों को नया आयाम दिया. एक बार फिर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पंचशील सिद्धांतों के आधार पर भारत और चीन में नए संबंधों की नींव रखी गई.

उस वक्त दोनों देशों में सीमा से जुड़े विवादों को शांतिपूर्ण और दोस्ताना माहौल में सुलझाने की आम सहमति बनी. सरहद से लेकर अर्थव्यवस्था, कारोबार, विज्ञान और टेकनॉलोजी के क्षेत्र में ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप तैयार किए गए. तिब्बत के मसले पर आपसी गलतफहमी दूर करने की कोशिश हुई. यह भी तय हुआ कि सीमा पर बड़ी तादाद में सैनिकों की मुस्तैदी नहीं की जाएगी और दोनों देशों के बीच सरहद पर यथास्थिति बनी रहेगी. लेकिन जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने याद दिलाया पिछले साल चीन ने 36 साल पुरानी इस आम सहमति को तब नजरअंदाज कर दिया जब पूर्वी लद्दाख के इलाकों में पहले तो पीएलए के सैनिक सीमा लांघ कर अंदर घुस आए, फिर पैंगोंग त्सो से लेकर डेप्सांग तक भारतीय इलाकों में घुसपैठ को अंजाम देकर LAC पर यथास्थिति (Status Quo) को बदलने की कोशिश की. जिससे दोनों देशों में टकराव के हालात बन गए, गलवान घाटी में खूनी संघर्ष की नौबत आई गई.

भारत ने चीन को जमीनी हकीकत का आईना दिखाया
इसमें कोई संदेह नहीं कि एस. जयशंकर ने अपने ताजा बयानों से चीन को जमीनी हकीकत का आईना दिखाया है. भारत के आम लोगों में चीन के प्रति आक्रोश अभी खत्म नहीं हुआ है. जनता ने सड़कों पर उतरकर चीनी सामानों का बॉयकॉट शुरू किया तो सरकार ने बीजिंग के साथ व्यापारिक साझेदारी की समीक्षा कर कई सख्त फैसले लिए. जहां 2019 में दोनों देशों के बीच 85.47 बिलियन डॉलर कारोबार हुआ, 2020 में जनवरी से दिसंबर के बीच यह आंकड़ा घटकर 77.67 बिलियन डॉलर तक आ गिरा.

हालांकि तब भी चीन और भारत के बीच कारोबार के आंकड़े भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड के आंकड़ों से ज्यादा थे. जाहिर है अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती व्यापारिक नजदीकियों को देखते हुए चीन घबरा गया है. बीजिंग सरकार अमेरिका के हाथों भारत में अपना बाजार खोना नहीं चाहती, इसलिए बॉर्डर पर टेंशन के बावजूद वह भारत के साथ बिजनेस बढ़ाना चाहती है. लेकिन भारत ने अपनी लक्ष्मण रेखा खींच दी है.

चीन पर अमेरिका का दबाव, जिनपिंग का नया दांव
चीन की अड़ियल नीति का जवाब देकर भारत बीजिंग पर आर्थिक, सामरिक और अतंरराष्ट्रीय दबाव बनाने में कामयाब रहा है. अमेरिका के साथ जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश खुलकर भारत के साथ खड़े हैं. चीन पर नकेल कसने के लिए चार देशों के बीच क्वॉड डायलॉग लगातार जारी है. डोनाल्ड ट्रंप के बाद अमेरिका में सरकार तो बदली लेकिन नीति नहीं बदली है. ट्रंप और पॉम्पियो की तरह बाइडेन और ब्लिंकन भी चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ मुखर नजर आ रहे हैं.

जो बाइडेन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के एक महीने के अंदर चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख में पैंगोग लेक से पीछे हटने का ऐलान कर दिया. लेकिन इसके दो महीने बाद भी चीन बाकी इलाकों से अपनी सेना हटाने का नाम नहीं ले रहा है. कई जानकार मानते हैं कि यह अमेरिकी दबाव में शी जिनपिंग सरकार का दांव था. लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ है. दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ता जा रहा है. पड़ोसी देशों पर बीजिंग की हेकड़ी के जवाब में अमेरिका ने अपने जंगी जहाजों की तैनाती बढ़ा दी है. दोनों तरफ से बयानों के दौर जारी हैं. लेकिन चीन जानता है कि अमेरिका से सीधी टक्कर उसके लिए घातक साबित हो सकती है. इसलिए बहुत मुमिकन है कि ड्रैगन आगे अपना दांव पलट सकता है. मौका देखकर अपने पैर पीछे खींच सकता है. समंदर में तापमान कम हुआ तो लद्दाख के हिमालयी क्षेत्रों में भी यथास्थिति बहाल होने के रास्ते निकल सकते हैं. क्योंकि सुपरपावर नंबर वन बनने की चाहत रखने वाले चीन के लिए बिजनेस बहुत मायने रखता है.
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