संस्कृति मंत्रालय के जिम्मे कई सारे ऐसे कार्यक्रम हैं जो पिछले कई वर्षों से बहुत धीमी गति से चल रहे हैं। इसमें एक बहुत ही महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है नेशनल मिशन आन कल्चरल मैपिंग एंड रोडमैप। आज से करीब चार-पांच साल पहले इसकी शरुआत हुई थी और तब इसको कला-संस्कृति विकास योजना के अंतर्गत रखा गया था। 2017 से लेकर 2020 तक इस काम के लिए करीब 470 करोड़ रुपए का बजट भी स्वीकृत किया गया था। कुछ दिनों बाद मंत्रालय के संयुक्त सचिव, जो इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का काम भी देखते थे, को इस मिशन का जिम्मा सौंपा गया था।
इस मिशन के उद्देश्य को मोटे तौर पर तीन हिस्सों में बांटा गया था।पहला था, हमारी संस्कृति हमारी पहचान अभियान, दूसरा था सांस्कृतिक प्रतिभा खोज अभियान और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण था कि पूरे देश की सांस्कृति संपत्ति और साधन की खोज करना और उसका एक डेटाबेस तैयार करके एक पोर्टल पर डालना। इस पोर्टल को इतना महात्वाकाक्षी बनाना था कि इसमें एक ही जगह पर देश के सभी हिस्सों के कला रूपों और कलाकारों की जानकारी तो हो ही, उसके सम्मानों के बारे में भी जानकारी मिल सके। कलाकारों से लेकर कला के विभिन्न रूपों की जानकारी वाला ये पोर्टल अगर पूरी तौर पर तैयार हो पाता तो कोरोनाकाल में जरूरतमंद कलाकारों की पहचान हो पाती और उनको सरकारी मदद समय पर मिल पाती। पता नहीं किन वजहों से सांस्कृतिक मैपिंग का ये कार्य अबतक या तो फाइलों में ही अटका हुआ है या बहुत धीमी गति से चल रहा है। नए मंत्री के सामने ये सबसे बड़ी चुनौती है कि वो इस काम में तेजी लाएं।
अगले साल हम देश की स्वतंत्रता की पचहत्तरवीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं और हमें अबतक अपने देश की संस्कृतिक संपत्ति और संसाधन का ही पता नहीं है। जबतक कला संपदा और संसाधन का आकलन नहीं हो पाएगा तबतक संस्कृति को लेकर ठोस योजनाएं बनाना और उसका क्रियान्वयन कैसे संभव हो पाएगा। संस्कृति मंत्रालय का एक और बेहद महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है प्रधानमंत्रियों का म्यूजियम। ये दिल्ली में बनना है। इमारतें तो अपनी रफ्तार से बन जाएंगी, उसकी साज-सज्जा भी हो जाएगी लेकिन उस म्यूजियम में जो फिल्में दिखाई जाएंगी या जो ऑडियो प्रेजेंटेशन होगा उसका स्तर कैसा होगा, इसपर बहुत ध्यान देने की जरूरत पड़ेगी। इन दो चुनौतियों के अलावा उनके सामने नियमित कामकाज की चुनौती है। कई सारे काम अटके हुए हैं जिसकी वजह से साहित्य और कला जगत क्षुब्ध है।
साहित्य अकादमी को छोड़कर अन्य अकादमियों का बुरा हाल है। संगीत नाटक अकादमी में साल भर से अधिक समय से चेयरमैन नहीं हैं, कलाकारों को पुरस्कार नहीं दिए जा सके हैं। ललित कला अकादमी लगातार विवादों में रह रही है। वहां लगभग अराजकता की स्थिति है। चेयरमैन रिटायर हो जाते हैं फिर उनको ही चंद दिनों बाद प्रभार दे दिया जाता है। ललित कला अकादमी के कई मामले अदालत में हैं और उसके पूर्व अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच भी चल रही है। यहां रखे कलाकृतियों का क्या हाल होगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक की नियुक्ति का पेंच अदालत में फंसा है। तीन साल बगैर निदेशक के विद्यालय चला और जब सारी प्रक्रिया संपन्न हो गई तो अब मामला कोर्ट में है। इन जगहों पर प्रशासनिक स्तर पर चूलें कसने की जरूरत है।
शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा धर्मेन्द्र प्रधान को दिया गया है, उनकी छवि अपने कार्य को कुशलतापूर्वक संपन्न करने की रही है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की है। इसके साथ ही राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद को क्रियाशील बनाते हुए उसके पुस्तकों की समीक्षा का काम भी बहुत बड़ा है। वर्ष 2005 में पाठ्यपुस्तकों को तैयार किया गया था, उसके बाद मामूली बदलावों के साथ पुस्तकें रीप्रिंट होती आ रही हैं। इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए सबसे पहले पिछले साल से खाली पड़े निदेशक के पद को भरना होगा ताकि प्रशासनिक कार्य सुचारू रूप से चल सके। स्कूली पाठ्यक्रमों के पुस्तकों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप बनाने के अलावा कॉलेजों के पाठ्यक्रमों को भी नई शिक्षा नीति के हिसाब के करवाने का श्रमसाध्य कार्य करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत केंद्रित शिक्षा की बात की गई है।
पाठ्यक्रम बनाने से लेकर पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने में विद्वानों को चिन्हित करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कला संगीत को बढ़ावा देने की बात की गई है और उसको शिक्षा की मुख्यधारा में लाने पर जोर है। इसके लिए कितने और किस तरह के संसाधनों की आवश्यकता होगी इसका आकलन कर क्रियान्वयन करवाने की चुनौती भी बड़ी होगी। एक महत्वपूर्ण कार्य कॉलेजों और स्कूलों की क्लस्टरिंग का है। ये कार्य विधायी संशोधन की मांग करता है। इसके अलावा इसमें राज्य और केंद्र के अधिकारों का प्रश्न भी उठेगा, उसका हल ढूंढना होगा। इनसे इतर एक प्रसासनिक दायित्व है केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति का। दर्जन भर से ज्यादा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति का पद खाली है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय में युवा मंत्री अनुराग ठाकुर लाए गए हैं। यहां चर्चा सिर्फ संस्कृति से जुड़े विभागों की होगी। अनुराग ठाकुर को विरासत में कुछ समस्याएं मिली हैं, विवाद भी। उसको सुलझाना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। अभी ताजा मामला तो सिनमैटोग्राफी एक्ट में संशोधन का है, इसके अलावा ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म के नियमन के क्रियान्वयन का है। कुछ महीनों पहले मंत्रालय के कई विभागों को मिलाकर एक कर दिया गया था। इनमें फिल्म निदेशालय, प्रकाशन विभाग आदि थे। लेकिन इन विभागों के विलय को मूर्तरूप देना अभी बाकी है। इनमें से एक प्रकाशन विभाग की कार्यशैली का एक उदाहरण काफी होगा। महीनों पहले प्रकाशन विभाग ने प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम के उद्बोधनों का संकलन प्रकाशित किया था।
ये संकलन किसी पुस्तकालय तक पहुंच नहीं पाया है जबकि अपेक्षा थी इसको देशभर के पुस्तकालयों में पहुंचाने की। प्रधानमंत्री से जुड़े संकलन को लेकर अगर ये कार्यशैली है तो बाकी का अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है। इसी विभाग से एक साहित्यिक पत्रिका निकलती है जो लगातार वामपंथियों को अपने कवर पर छापती रहती है लेकिन राष्ट्रीय विचारों को अपेक्षाकृत कम जगह देती है। इस मंत्रालय के कई विभागों में नियुक्तियां लंबित हैं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों को लेकर भ्रम की स्थिति है कि उनका कार्यकाल खत्म हो गया है या नहीं। क्षेत्रीय स्तर पर भी सदस्यों को नामित करने का काम होना है। अभी इन मंत्रियों को पद संभाले तीन चार दिन ही हुए हैं लेकिन उनके सामने अपेक्षाओं का अंबार है। तीनों मंत्रालयों के मंत्री युवा हैं, ऊर्जावान हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वो अपने अपने मंत्रालयों में यथास्थितिवाद को खत्म करेंगे और लंबित पड़े कामों को पूरा करने के अलावा कला और संस्कृति को समृद्ध करने की दिशा में प्रयास करते दिखेंगे।