महाराष्ट्र की खिचड़ी दूसरे राज्यों को भी पसंद आएगी? शरद पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाने की मांग में कितना दम!

देश की राजनीति

Update: 2021-03-19 15:53 GMT

देश की राजनीति(Country Politics) में कमजोर पड़ती कांग्रेस (Congress) के चलते अब क्षेत्रीय दलों को एक ऐसे मोर्चे की तलाश है जो NDA से टक्कर ले सके. इसके लिए जो सबसे बड़ा नाम सामने आ रहा है वह है राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के मुखिया शरद पवार (Sharad Pawar) का, जिनका हिंदुस्तान की राजनीति में लंबा-चौड़ा इतिहास है. साल 1956 में गोवा की स्वाधीनता के लिए चलाए जा रहे आंदोलन से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले शरद पवार कभी कांग्रेस का ही हिस्सा थे, हालांकि 1998 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर अपनी एक अलग पार्टी NCP बना ली.


देश में तीसरे मोर्चे (Third Front) की बात तो कई सालों से चल रही थी, लेकिन हाल ही में शिवसेना (Shiv Sena) नेता संजय राउत के बयान से इसने जोर पकड़ लिया है. दरअसल संजय राउत ने कहा कि 'पूरा देश आज हमारी ओर देख रहा है. यूपीए का पुनर्गठन होना चाहिए. हम NDA में नहीं हैं, अकाली दल नहीं है, ममता बनर्जी की पार्टी (TMC) नहीं है. कई ऐसे क्षेत्रीय दल हैं जो ना तो एनडीए का हिस्सा हैं और ना ही यूपीए में हैं. ये दल UPA में क्यों नहीं है यह चर्चा का विषय है. मतलब साफ है कि अगर कांग्रेस यूपीए को लेकर बड़े फैसले नहीं करती है तो शिवसेना और एनसीपी मिलकर तीसरे मोर्चे की दिशा की तरफ सोच सकते हैं.'

कमज़ोर होती कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी पार्टी जो एक समय में देश की सबसे ताकतवर पार्टी भी थी आज एक ऐसी पार्टी बन कर रह गई है जिसका सफाया धीरे-धीरे पूरे देश से होते जा रहा है. हाल ही में आपने देखा होगा कि कैसे कांग्रेस के पिलर जिनके दम पर कांग्रेस आज भी खड़ी है उन्होंने एक G-23 गुट बना लिया है जो कांग्रेस में चुनाव कराना चाहता है. इसमें आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेता शामिल हैं. कांग्रेस के कार्यकर्ता भले ही खुल कर न बोल रहे हों लेकिन राजनीतिक गलियारों में ये बात हमेशा होती है कि कांग्रेस के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण है उसका एक परिवार तक सीमित हो जाना और कहीं न कहीं G-23 के नेता अब इसी के खिलाफ मुखर हो कर बोल रहे हैं. वर्ना गांधी पारिवार के होते कांग्रेस में चुनाव कराने की मांग कौन कर सकता है और इससे पहले अगर चुनाव हुए भी हैं तो महज दिखावे के क्योंकि इनमें गांधी परिवार के खिलाफ कोई खड़ा होने की हिम्मत ही नहीं करता. किसी भी पार्टी के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण उसमे कमजोर होता लोकतंत्र ही होता है.

शिवसेना इससे पहले भी कर चुकी है तीसरे मोर्चे की वकालत
शिवसेना इससे पहले भी दिसंबर 2020 में देश में तीसरे मोर्चे की वकालत कर चुकी है, दरअसल उस वक्त शिवसेना सोनिया गांधी के खराब तबियत को कारण बता कर शरद पवार को UPA का अध्यक्ष बनाने की बात कर रही थी. दरअसल शिवसेना जैसी पार्टियों को लगता है कि राहुल गांधी अभी इन दलों के गठबंधन का नेतृत्व नहीं कर सकते इसलिए वह शरद पवार जैसे किसी सीनियर नेता का नाम सामने लाते रहते हैं. हालांकि, शिवसेना का शदर पवार का ऐसे नाम लेना एक कूटनीति भी है जिसके जरिए वह कांग्रेस को यह बताना चाहती है कि अगर महाराष्ट्र में कांग्रेस ने कुछ गड़बड़ की तो वह NCP के साथ मिल कर सरकार चला लेगी.

शरद पवार का इतिहास
1956 से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करने वाले शरद पवार ने पहली बार 1967 में कांग्रेस के टिकट पर बारामती से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद 1978 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाया. हालांकि जब इन्दिरा गांधी 1980 का चुनाव जीत कर वापस आईं तो उन्होंने इस दल को खारिज कर दिया. इसके बाद शरद पवार ने फिर से कांग्रेस ज्वॉइन की और कांग्रेस प्रेसीडेंसी का पदभार संभाला. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर बारामती से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता. फिर 1999 में उन्होंने मेघालय के मुख्यमंत्री के साथ मिलकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. 2004 में वह UPA सरकार में कृषि मंत्री भी रहे इसके बाद 2005 में वह क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहें. इसके साथ ही शरद पवार 2010 में इंग्लैंड के डेविड मॉर्गन के साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के भी अध्यक्ष चयनित हुए.


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