कमला 'ना'पसंद! क्या दूसरे एक्टर्स को भी अमिताभ बच्चन की राह पर नहीं चलना चाहिए?
फिल्मी सितारे कहानियां तैयार करते हैं और उन्हें साकार भी करते हैं. उनकी फिल्मी किरदारों से उनकी छवि बनती है
कमला पसंद पान मसाला के सरोगेट विज्ञापन से खुद को अलग करने पर जानेमाने एक्टर अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को सराहा जा रहा है. दरअसल, कमला पसंद ने अपने उत्पाद को 'सिल्वर-कोटेड इलायची' कहते हुए, एक तरह से सरोगेट विज्ञापन तैयार किया था. यह विज्ञापन पिछले महीने टीवी पर आया, इसमें अमिताभ बच्चन और रणवीर सिंह को बतौर पिता-पुत्र दिखाया गया, जिसमें पिता को क्लासिकल म्यूजिक पसंद होता है, जबकि बेटे को रॉक म्यूजिक. हालांकि, पान मसाला के मामले में दोनों की पसंद एक ही होती है.
23 अक्टूबर को, मुंबई की बस्तियों में किशोरों के कल्याण का काम करने वाली संस्था सलाम बॉम्बे फाउंडेशन ने 'बॉलीवुड के शहंशाह' को 'लोक स्वास्थ्य के हित के लिए अपने सुधारात्मक कदम के लिए' धन्यवाद देते हुए एक वीडियो जारी किया. इसमें कहा गया कि अमिताभ बच्चन का यह कदम दूसरे सेलेब्रिटीज के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है. साथ ही इसमें 'बच्चों और युवाओं की चिंता करने के लिए' अमिताभ बच्चन की सराहना भी की गई.
बता दें कि बीते 10 अक्टूबर को बच्चन ने अपने ब्लॉग में यह घोषणा की थी कि उन्होंने संबंधित ब्रांड के साथ अपना करार खत्म कर दिया है और उनका पैसा भी लौटा दिया है. उनका दावा था कि जब वह इस विज्ञापन से जुड़े थे, तब उन्हें यह नहीं मालूम था कि विज्ञापन 'सरोगेट एडवर्टाइजिंग की श्रेणी' में आता है. नेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर टोबैको इरैडिकेशन (NOTE) ने बच्चन से अपना करार तोड़ने की अपील की थी. अब इस संस्था ने भी उनके फैसले का स्वागत किया है.
इससे पहले भी कई अभिनेता कर चुके हैं पान मसाले का विज्ञापन
लंदन मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी में क्रिएटिव राइटिंग एंड इन्क्लूजन इन द ऑर्ट की प्रोफेसर सनी सिंह ने सांस्कृतिक तौर पर असाधारण व्यक्तित्व और ग्लोबल ब्रांड के संदर्भ में बच्चन की फिल्मी यात्रा और स्टार लाइफ पर रिसर्च किया है. उनकी किताब Amitabh Bachchan (2018) में इस रिसर्च को शामिल किया गया है. वह कहती हैं, "फिल्मी सितारे कहानियां तैयार करते हैं और उन्हें साकार भी करते हैं. उनकी फिल्मी किरदारों से उनकी छवि बनती है. पूरी दुनिया में अमिताभ बच्चन अकेले एक्टर हैं जो सबसे लंबे वक्त तक सुपरस्टार रहे हैं. इसलिए वो जो करते हैं या कहते हैं उसका लोगों पर असर पड़ता है."
पान मसाला का विज्ञापन करने पर बच्चन के फैंस खफा भी हुए, उनको निराशा हुई कि एक पान मसाला के लिए उन्होंने अपनी साख को दांव पर लगा दिया. इसी साल एक्टर महेश बाबू और टाइगर श्रॉफ ने 'पान बहार' का विज्ञापन किया था, जिसे 'हेरीटेज इलाइची' के रूप में पेश किया गया. इस विज्ञापन पर दोनों एक्टर्स के फैंस ने नाराजगी जताई थी. दो साल पहले, अजय देवगन के एक फैन, जो कैंसर का इलाज करा रहे थे, ने एक्टर से अपील की थी कि वो विमल इलाइची का प्रचार न करें. फैंस की तीखी प्रतिक्रिया के बाद भी इन कलाकारों ने, सिवाय अमिताभ बच्चन के, संबंधित विज्ञापनों से खुद को अलग नहीं किया.
सिंह यह बताती हैं कि बच्चन इस तथ्य से वाकिफ हैं कि फिल्मी सितारों को अपनी छवि कैसे संभालनी चाहिए, इसलिए वह फैंस की प्रतिक्रिया को गंभीरता से लेते हैं. वह कहती हैं, "वह बेहद संपन्न पृष्ठभूमि से आने के बावजूद एक एंग्री यंग मैन की छवि बनाने की क्षमता रखते थे. बाद में उन्होंने खुद को नए रूप में पेश किया. 'मोहब्बतें' और 'कभी खुशी कभी गम', जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने बुजुर्ग की भूमिका में नैतिकता का पाठ पढ़ाया. फिर टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' से सब पर छा गए."
क्या अच्छा पैसा मिलेगा तो फिल्मी सितारे किसी भी उत्पाद का विज्ञापन कर लेंगे?
Stoned, Shamed, Depressed: An Explosive Account of the Secret Lives of India's Teens (2020) की लेखिका ज्योत्सना मोहन का तर्क है कि आज युवा वर्ग फिल्मी सितारों की ऑफ-स्क्रीन लाइफ को फॉलो करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनकी कथनी और करनी में फर्क ना हो. यदि फिल्मी सितारे किसी मुद्दे पर 'उपदेश' देते हैं लेकिन करते उससे ठीक उलट हैं, तो नई पीढ़ी उनकी पोल खोलने में देर नहीं लगाती.
वह कहती हैं, "ईमानदारी से कहा जाए तो अमिताभ बच्चन, महेश बाबू और अजय देवगन को तंबाकू से जुड़े उत्पाद के विज्ञापन से मिलने वाले पैसे की जरूरत भी नहीं है. उन्हें ब्रांड को लेकर ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, खास तौर पर तब जब उनके खुद के बच्चे और नाती-पोते हैं."
फैंस अपने पंसदीदा कलाकारों से इतनी उम्मीद क्यों रखते हैं?
Understanding Bollywood: The Grammar of Hindi Cinema (2021), की लेखिका उल्का अंजारिया कहती हैं, "भारत में फिल्मी सितारों का प्रशंसक होना, एक तरह से उनकी पूजा करने जैसा दिखाई पड़ता है, लेकिन यह उपयोगी तरीका नहीं है." वो बॉलीवुड को 'हसरतों का सिनेमा' कहती हैं क्योंकि इसका संबंध "वास्तविक कहानियों या नई रचना से कम होता है, बल्कि इनमें लोगों को हंसाने, रुलाने और साथ गुनगुनाने का काम ज्यादा होता है. गीत या डायलॉग के मुताबिक ही दर्शकों की भावनाएं सामने आती हैं."
Brandeis University में इंग्लिश की प्रोफेसर अंजारिया के मुताबिक, भारतीय दर्शकों का फिल्मी सितारों के साथ गहरी भावनाओं का जुड़ाव होता है, ऐसे में वे फिल्मी किरदार और उस किरदार को अदा करने वाले व्यक्ति को अलग-अलग करके नहीं देख पाते. वह कहती हैं, "कभी-कभी, फैंस स्वयं ही बॉलीवुड की गंभीर इच्छाओं को कलाकारों पर थोप देते हैं और इसे हम अवास्तविक उम्मीद कह सकते हैं."
अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के पितामह की भूमिका में नजर आने लगे हैं
सामाजिक मनोविज्ञान के क्षेत्र से संबंध रखने वाली ब्रांड स्ट्रैटजिस्ट तोरु झावेरी का मानना है कि मीडिया, खेल और मनोरंजन ऐसे 'स्वाभाविक क्षेत्र' हैं, जहां भारतीय फैंस 'दोषरहित चरित्र' की तलाश करते हैं, क्योंकि वो अपने बच्चों के सामने इन्हें रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, इनके रास्ते पर चलने की प्रेरणा देना चाहते हैं. क्योंकि, वो इन्हें प्रतिभा और काबिलियत के प्रतीक मानते हैं.
तोरु झावेरी कहती हैं, "बच्चन भारत के हिंदी भाषी जनमानस का हिस्सा हैं, जो स्क्रीन पर अच्छाई के लिए लड़ते हुए नजर आते हैं. समय के साथ वो बॉलीवुड के पितामह की भूमिका में नजर आने लगे हैं. उनके काम में उनकी उम्र भी झलकने लगी है और उनके फैंस में कई पीढ़ी के लोग शामिल हैं, इसलिए अधिकतर लोग उनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जुड़ाव महसूस करते हैं. इससे उम्मीद और बढ़ जाती है."
अन्य देशों में भी सिनेमा के कलाकारों को आदर्श की तरह देखा जाता है
तीन फिल्मी कलाकार, इरफान खान, शशि कपूर और प्रियंका चोपड़ा की बायोग्राफी लिखने वाले, एंटरटेनमेंट राइटर असीम छाबड़ा का मानना है कि फिल्मी सितारों की ऐसी पूजा एशियाई देशों में ज्यादा देखने को मिलती है. न्यूयॉर्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बतौर डायरेक्टर उन्होंने पाया कि अमेरिकियों के बजाए ऐसा रुझान भारतीयों और जापानी लोगों में ज्यादा देखा जाता है.
हालांकि, झावेरी का तर्क है कि ऐसा सिर्फ भारतीयों के साथ नहीं होता. वह कहती हैं, "दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी सेलेब्रिटियों को व्यक्तिगत और पेशेवर आदर्शों की तरह देखा जाता है. यहां तक कि अमेरिका जैसी खुली संस्कृति में भी सेलेब्रिटीज से उच्च नैतिकता की उम्मीद की जाती है." इसके लिए वह मशहूर कॉमेडियन Ellen DeGeneres का उदाहरण देती हैं, जिन्हें स्क्रीन पर सौम्य नजर आने, लेकिन शो में काम करने वालों के साथ बुरा बर्ताव करने के लिए काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा.
फैंस अपने चहेते कलाकारों पर अपना हक समझते हैं
The Three Khans and the Emergence of New India (2021) की लेखिका और पत्रकार कावेरी बम्जई का मानना है कि भारतीय लोग आइकॉन को गंभीरता से लेते हैं, क्योंकि यहां ऐसे लोग कम हैं. वह कहती हैं, "चूंकि, हम टिकट खरीदकर उनकी फिल्में देखते हैं, इसलिए हमें लगता है कि हम उन पर पैसा लगा रहे हैं. हम मानते हैं कि हमारा उन पर पूरा अधिकार है, चाहे बात उनके राजनीतिक विचारों की हो, ब्रांड के पसंद की हो या फिर सोशल मीडिया पर किए जाने वाले कमेंट की हो."
Confederation of Indian Industry's Women Empowerment Committee की सदस्य बम्जई के मुताबिक, फिल्मी सितारों को जितना अधिक देखा जाता है, उतना ही वे लोकप्रिय होते हैं. परिणाम यह होता है कि उपभोक्ता मानने लगते हैं कि फिल्मी सितारों को उन्हीं ब्रांड का प्रचार करना चाहिए, जिनका वे स्वयं इस्तेमाल करते हैं. जबकि वह कहती हैं कि फिल्मी सितारों से हर किसी चीज के प्रचार की उम्मीद की जाती है, चाहे सरकार के लोक कल्याणकारी विज्ञापन हों या फिर किसी लग्जरी ब्रांड का प्रचार."
अमिताभ बच्चन का कमला पसंद के विज्ञापन को छोड़ना अन्य कलाकारों के लिए सीख है
यह विश्लेषण अमिताभ बच्चन पर फिट होता है, जो विभिन्न प्रकार के ब्रांड का विज्ञापन करते हैं, जिनमें हेयर ऑयल, धूप-अगरबत्ती, चॉकलेट, पेय पदार्थ, चावल, हीरा, पेन, सीमेंट के साथ-साथ विभिन्न सरकारी अभियानों, जैसे पोलियो उन्मूलन, नेत्रदान, स्वच्छ भारत और गुजरात पर्यटन वगैरह भी शामिल हैं. साथ ही वह Twitter और Facebook पर भी सक्रिय रहते हैं.
झावेरी कहती हैं, "फिल्मों की तुलना में बच्चन की छवि विज्ञापनों से ज्यादा उभरकर सामने आई है. विश्वसनीयता, एकता, ईमानदारी, सत्यता- जैसे मूल्यों को उनके चरित्रों से जोड़कर देखा जाने लगा है, जो विभिन्न अफवाहों और स्कैंडल्स के बाद भी ज्यादा खरे नजर आते हैं." उनका सोचना है कि बच्चन के कमला पसंद के विज्ञापन से हटने के फैसले को सेलेब्रिटीज के उस सार्वजनिक जवाबदेही के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जिसमें उन्हें उन उत्पादों का विज्ञापन नहीं करना चाहिए, जिन पर वे स्वयं भरोसा नहीं करते.
विराट कोहली के कोला प्रकरण और कंगना रनौत के फेयरनेस क्रीमों के विज्ञापनों को इनकार करने की घटना को याद करते हुए झावेरी कहती हैं, "बच्चन के कद, और तंबाकू और स्मोकिंग के प्रति उनकी अरुचि को देखते हुए, यह केवल एक क्षणिक मुद्दा था. उन्हें किसी प्रोडक्ट के प्रति वफादार के तौर पर देखना कठिन है, इसलिए लोग इसे केवल एक आर्थिक लेनदेन के तौर पर देखते हैं. मेरा मानना है कि उनके पास अपना कदम वापस लेने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था."