अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालना केवल केंद्र सरकार की है जिम्मेदारी, कुछ संरचनात्मक करने होंगे उपाय
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में इस आकलन की अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट
आइएमएफ ने इस बारे में कुछ सुझाव देते हुए कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को महामारी जनित संकट से उबारने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक उपायों के साथ ही कुछ संरचनात्मक उपाय भी करने होंगे। कहना कठिन है कि भारत सरकार इन सुझावों पर कितना गौर करेगी, लेकिन इतना तो है ही कि उसे ऐसे कुछ कदम उठाने होंगे, जिनसे अर्थव्यवस्था की मुश्किलें वास्तव में दूर हों। यह सही है कि बीते कुछ महीनों में सरकार के साथ-साथ रिजर्व बैंक की ओर से भी अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी बात बनती नहीं दिख रही है।
बीते दिनों वित्त मंत्री ने केंद्रीय कर्मचारियों को अपने लीव ट्रैवल कंसेशन अर्थात एलटीसी की रकम से ऐसी वस्तुओं की टैक्स रहित खरीद की सुविधा देने वाली एक योजना की घोषणा की, जिन पर 12 प्रतिशत या इससे अधिक का जीएसटी हो। इसके अलावा उन्होंने सभी केंद्रीय कर्मचारियों को 10 हजार रुपये के एडवांस के साथ रुपे कार्ड देने की भी घोषणा की।
ये उपाय कारगर हो सकते हैं, लेकिन उनकी एक सीमा है। उचित यह होगा कि सरकार उन उपायों पर अधिक ध्यान दे, जो उद्योग-धंधों को बल देने के साथ ही रोजगार के अवसर बढ़ाने का काम करें। उचित यह होगा कि सरकार ऐसे पुख्ता उपायों के साथ सामने आए, जिनसे रियल एस्टेट सरीखे रोजगार बढ़ाने वाले सेक्टरों की सुस्ती दूर हो। यदि रियल एस्टेट सेक्टर में तेजी आ सके तो यह अन्य सेक्टरों को भी बल प्रदान करने क साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने में भी सबसे अधिक सहायक होगा।
केंद्र सरकार को अपने स्तर पर निर्माण परियोजनाओं को गति देने का काम भी प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए। ऐसे काम राज्य सरकारों को भी करने होंगे। इसका कोई मतलब नहीं कि वे हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें या फिर यह आभास कराएं कि अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालना केवल केंद्रीय सत्ता की जिम्मेदारी है। संघीय ढांचे वाली व्यवस्था में यह जिम्मेदारी उनकी भी है।