हैलोवीन डर का उत्सव पर 'डरना मना है'; बहुत मजबूत होती है मनुष्य की स्वयं को बचाए रखने की भावना
हैलोवीन, अमेरिका में मनाया जाने वाला उत्सव रहा है
जयप्रकाश चौकसे । हैलोवीन, अमेरिका में मनाया जाने वाला उत्सव रहा है परंतु अन्य देशों में भी यह विविध ढंग से मनाया जाता है। हमारे हिंदुस्तान के महानगरों में भी यह उत्सव मनाया जाता है। गौरतलब है कि महामारी के कारण सभी उत्सव स्थगित कर दिए गए हैं परंतु इस वर्ष हैलोवीन मनाया जाएगा। फिल्म और टेलीविजन एक्ट्रेस मिनिषा लांबा हैलोवीन के लिए व्यस्त देखी गई हैं और खरीदारी भी उन्होंने की है।
ज्ञातव्य है कि हैलोवीन उत्सव में अजीबोगरीब कपड़े पहने जाते हैं। गोया की गुजरी हुई सदियों में प्रचलित वस्त्र पहन कर उन सदियों को याद किया जाता है। अत: गुजरा हुआ समय गुजरकर भी पूरी तरह भुलाया नहीं जाता। मनुष्य सदियों की माला बनाकर उसके मनकों को हाथ में घुमाता रहता है। प्राय: ऐसी माला में सौ मनके होते हैं परंतु जाने क्यों 99 ही गिने जाते हैं।
मौजूद होते हुए भी गिनती में शुमार नहीं किए जाने वाले मनके को मेरुमणी कहा जाता है। कुछ मालाओं में 108 मनके होते हैं। शायर मिर्जा गालिब की एक रचना में उन्होंने स्वयं को मेरुमणी कहा है, जो मौजूद होते हुए भी गिनती में शुमार नहीं होने की भावना इस तरह जाहिर करते हैं। कुछ काम करने वाले लोगों के जीवन में भी ऐसा समय आता है, जब उनके अपने ही उन्हें नजरअंदाज करने लगते हैं।
कभी-कभी मनुष्य अपने ही घर के कूड़ेदान में पड़ा हुआ पाया जाता है। पढ़े-लिखे लोगों की चुहलबाजी भी अनोखी होती है। मसलन, राम गोपाल वर्मा की फिल्मों के नाम इस तरह हैं 'डरना मना है' और दूसरी फिल्म का नाम है 'डरना जरूरी है'। इस तरह देखें तो मूर्खता भी कई मुखौटे पहनती है। ज्ञातव्य है कि अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्में डर की विभिन्न व्याख्याएं करती हैं। मनुष्य की स्वयं को बचाए रखने की भावना बहुत मजबूत होती है।
इसी भावना के कारण सभ्यता के हर मुश्किल दौर से मनुष्य अपने आपको बचा पाया। भूकंप आए, ज्वालामुखी भड़के, सूखा पड़ा, अतिवृष्टि हुई परंतु मनुष्य अपराजित योद्धा बना रहा है। ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन का प्रारंभ इस बात से किया था कि हम लोगों को सबसे पहले अपने डर पर विजय प्राप्त करना है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयोजित इस सभा में क अंग्रेज आला अफसर भी मौजूद था, जिसकी सुरक्षा के लिए अनेक सिपाही मौजूद थे।
महात्मा गांधी ने उस आला अफसर से पूछा कि उन्हें किस बात का भय है? यह तो उनकी ही हुकूमत का दौर चल रहा है! दरअसल, डर से बड़ा डर का काल्पनिक हव्वा खड़ा किया जाना है। अंधेरे में मनुष्य का पैर रस्सी पर पड़ता है, जिसे सांप समझकर वह मर भी जाता है। राजा साहब की रचना 'द सर्पेंट एंड द रोप' इसी पर प्रकाश डालती है। ज्ञातव्य है कि सूखे हुए कद्दू को काट-छांट कर भी हैलोवीन उत्सव के लिए मुखौटे बनाए जाते थे। वर्तमान में इसके लिए कद्दू का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
मुखौटे बनाने के लिए अब अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल होता है। एक उत्सव ऐसा भी मनाया जाता था जब लड़के अपने शरीर को रंग लगाकर अपने को शेर की तरह प्रस्तुत करते हुए उम्रदराज लोगों से पैसे लेते थे।'गोलमाल' सीरीज की एक फिल्म में पात्र तय करते हैं कि उनमें से एक सदस्य, रीछ जैसे वस्त्र पहनकर खलनायकों को डराएगा। मनोरंजक सीन इस तरह बना कि पड़ोस में चल रहे एक सर्कस का एक रीछ ही वहां आ गया, जिसे पात्र नकली समझते हैं।
फिल्म 'शुभ मंगल सावधान' में नायक-नायिका के सामने प्रेम प्रस्ताव रखने जा रहा है और सड़क पर चल रहे तमाशे के बीच, रीछ उसका पैर पकड़ लेता है। पूरी फिल्म में उसे इस बात की याद बार-बार करवाई जाती है। बहरहाल, डराने का उत्सव हैलोवीन, महानगरों के लोगों का शगल है। आम आदमी तो अपनी ही त्वचा में सिमटा हुआ दुबका रहता है। आम आदमी की पूरी चेतना रोटी में बैठी हुई है। कुछ लोग स्वप्न में ही रोटी खाकर अपनी भूख को शांत कर लेते हैं।