बड़े-बड़े चुनावी दावे सभी दल करते हैं, बीजेपी भी करती है. कभी दावा सही हो जाता है और कभी गलत भी. मसलन, अमित शाह ने 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के लिए 300+ सीट पर जीत का दावा किया था और बीजेपी 303 सीट जीतने में सफल रही थी. उसके कुछ महीनों बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में अमित शाह ने 90 में से 75+ का दावा किया था, पर बीजेपी मात्र 40 सीटों पर ही सफल रही.
अमित शाह के दावे में कितना दम
पश्चिम बंगाल में अमित शाह का 294 सीटों में से 200+ सीटों पर जीत का दावा किसी के गले उतर नहीं रहा था. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मात्र तीन सीटें ही जीत पायी थी और 2011 में बीजेपी का खाता भी नहीं खुल पाया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी का प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा था, लेकिन लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में बड़ा फर्क होता है. 2019 के आमचुनाव में जनता को नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी के बीच किसी एक को प्रधानमंत्री चुनना था, पर मौजूदा विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की जनता को यह फैसला करना है कि क्या उन्हें एक बार फिर से ममता बनर्जी ही मुख्यमंत्री के रूप में चाहिए या फिर प्रदेश में बदलाव की जरूरत है.
ऐसे में अमित शाह का 200+ वाला दावा मात्र बयानबाजी ही दिख रहा था. पर ममता बनर्जी की हरकतों और बयानों से अब लगने लगा है कि शाह का दावा शायद बेबुनियाद नहीं था. दीदी रोज नए शगूफे छोड़ रही हैं जिससे ऐसा लगने लगा है कि उन्हें सत्ता खोने का भय सताने लगा है. पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावों के बीच बांग्लादेश के दौरे से उन्हें तकलीफ हुई, फिर जिस दिन कहीं चुनाव हो रहा हो वहां से कहीं और दूर जहाँ अगले चरण में चुनाव होने वाला हो वहां हो रहे मोदी की रैली को उन्होंने गैरकानूनी और आचार संहिता का उल्लंघन करार देते हुए चुनाव आयोग से शिकायत कर दी. बौखलाहट में उन्होंने धर्म के नाम पर वोट की मांग कर डाली जिसके परिणामस्वरूप चुनाव आयोग ने उनपर 24 घंटे का बैन लगा दिया.
ममता बनर्जी के अजीब मांगों की लिस्ट
कुछ दिन पहले दीदी ने चुनाव आयोग से बड़ी अजीब मांग कर डाली कि बाकी के बचे सभी सीटों पर कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के कारण एक ही दिन में मतदान करवाया जाए, जिसे चुनाव आयोग ने ठुकरा दिया. और शुक्रवार को दीदी ने चुनाव आयोग से ऐसी मांग कर डाली जिससे अब साफ़ लगने लगा है कि डर का भूत दीदी के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा है.
शुक्रवार को नोआपारा के एक चुनावी सभा में दीदी उसी अंदाज़ में पहुंची, पैर में प्लास्टर और व्हीलचेयर पर बैठकर. उनके पैर में चोट लगी थी, इस घटना को हुए सात सप्ताह का समय गुजर चुका है. अगर हड्डी टूटी भी तो सात सप्ताह का समय पर्याप्त होता है हड्डी जुड़ने के लिए. दीदी की हड्डी टूटी भी नहीं थी, पर व्हीलचेयर पर बैठ कर और पैर में प्लास्टर लगाकर जनता के बीच जाने से उन्हें लगता है कि उन्हें जनता की सहानुभूति मिलेगी. लगता तो यही है कि उनका प्लास्टर अब चुनाव समाप्ति यानी 29 अप्रैल के बाद ही खुलेगा.
नोआपारा में ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग से मांग कर दी कि आयोग प्रदेश में बिना कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट के दूसरे प्रदेश से किसी के प्रवेश पर तुरंत प्रतिबन्ध लगा दे. बात वहीं नहीं रुकी. दीदी ने आरोप लगाया कि गुजरात समेत दूसरे प्रदेशों से हजारों की संख्या में बीजेपी के कार्यकर्ता पश्चिम बंगाल में आ रहे हैं और अपने साथ कोरोना संक्रमण को भी ला रहे हैं.
पहले भी हुए हैं सात चरणों में चुनाव
तो क्या यह मान लिया जाये कि जो बीजेपी के सभाओं में बिना मास्क के आता है उन्हें ही सिर्फ करोना संक्रमण का खतरा होता है और जो उनकी सभाओं में आते हैं वह सभी सुरक्षित होते हैं? अगर ममता बनर्जी को जनता के जान की इतनी ही चिंता थी को क्यों नहीं समय रहते दीदी ने चुनाव आयोग से चुनाव नहीं कराने की शिफारिश की? अगर राष्ट्रपति शासन लग भी जाता और चुनाव छह महीने के लिए टल भी जाता तो कौन सा भूचाल आ जाता? एक और रास्ता था कि चुनाव को स्थगित कर के एक सर्वदलीय सरकार का गठन हो सकता था. पर दीदी को चुनाव समय से और मनमुताबिक तरीके से चाहिए था.
2016 में जब कोरोना नहीं था तब भी पश्चिम बंगाल में सात चरणों में चुनाव हुआ था, पर दीदी को उससे कोई ऐतराज़ नहीं था. इस बार अगर आठ चरणों में चुनाव हो रहा है तो उन्हें क्यों परेशानी होने लगी है, जबकि चुनाव आयोग ने साफ़ कर दिया था कि यह फैसला मतदान केन्द्रों पर भीड़ कम करने के इरादे से लिया गया है.
ममता बनर्जी के बौखलाहट से वोटर्स की बीच जाएगा गलत संदेश
चुनावों में जीत और हार का फैसला बहुत कुछ इस अवधारणा पर निर्भर करता है कि चुनाव कौन जीत रहा है. लगता है कि दीदी ने फ्लोटिंग वोटर्स को साफ़ संकेत दे दिया है कि इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की हार हो रही है. बीजेपी का काम वह अपनी बौखलाहट में आसान करती दिख रही हैं.