IPL 2022: एमएस धोनी भावनाओं में बहकर भविष्य की योजना बनाने से कैसे चूक गये?

ऑक्शन में भी भारी भूल का खामियजा भुगत रही है टीम

Update: 2022-04-12 10:06 GMT
पहले 4 मैचों में 4 हार. चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) ने अपने आईपीएल के इतिहास में कभी भी इतनी खराब शुरुआत नहीं की थी और मंगलवार को अगर रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के खिलाफ फिर से उसे हार मिलती है तो इसका मतलब होगा कि टूर्नामेंट में प्लेऑफ की उम्मीदों का खत्म होना. ऐसा चेन्नई के साथ सिर्फ 2020 में हुआ था, लेकिन चेन्नई की ऐसी बुरी हालत के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? अगर पिछले डेढ़ दशक में चेन्नई की हर कामयाबी के लिए एमएस सिंह धोनी को श्रैय दिया जाता है तो ये उचित नहीं होगा कि आज अगर वही टीम जूझ रही है तो धोनी के फैसलों पर भी आलोचनाओं की उंगलियां उठे?
सवाल ये उठता है कि क्या धोनी ने नये सीजन के शुरु होने से ठीक दो दिन पहले कप्तानी छोड़कर टीम का बेड़ा गर्क कर दिया? कहने का मतलब ये है कि क्या धोनी का वो फैसला सही था? धोनी के फैसले की पीछे कोई भी दलील रही हो, लेकिन रवींद्र जडेजा को अचानक से ही कप्तानी की जिम्‍मेदारी देना और फिर व्यवहारिक तौर पर कप्तानी अपने हाथ में ही रखने से उनकी टीम को नुकसान तो हुआ ही है. जडेजा जैसा ऑलराउंडर हमेशा मैदान पर खोया खोया दिखता है. वो कप्तान है या उप-कप्तान या फिर कप्तान की खड़ाऊ लेकर घूम रहा है ये हर किसी की समझ से परे है.
ऑक्शन में भी भारी भूल का खामियजा भुगत रही है टीम
बात सिर्फ जडेजा की कप्तानी के मसले तक ही सीमित नहीं है. चेन्नई ने इस बार ऑक्शन में भी भारी भूल की है और सबसे परेशान करने वाली बात है कि संघर्ष का ये सिलसिला सिर्फ इस साल की बात न होकर अगले तीन सालों के लिए संघर्ष का रास्ता हो सकता है. निरंतरता बरकरार रखने के चक्कर में चेन्नई ने रॉबिन उथप्पा, अंबाती रायुडू और ड्वेन ब्रावो पर भरोसा बनाये रखा. ऑक्शन के दौरान चेन्नई हर हालत में इन खिलाड़ियों को फिर से वापस बुलाने के लिए बेकरार दिखी. पिछले कई सालों से चेन्नई के उम्रदराज खिलाड़ियों का मजाक उड़ता रहा और 2020 में चेन्नई ने इसका खामियाज भी भुगता, लेकिन पिछले साल चमत्‍कारिक तरीके से चेन्नई की टीम ने सभी धारणाओं को ध्वस्त करते हुए चैंपियन बनने में कामयाब हुई. लेकिन, जीत का वही फॉर्मूला तो लगातार काम नहीं कर सकता है. खासकर आईपीएल जैसे फॉर्मेट में, जहां पर टीम हर रोज नया दांव फेंकती है और नये प्रयोग करती है.
चेन्नई से एक और बड़ी गलती हुई फाफ डु प्लेसी जैसे ओपनर और अनुभवी खिलाड़ी का टीम से निकलना. पिछले साल डु प्लेसी ने ऋतुराज गायकवाड के साथ मिलकर इतनी कामयाब जोड़ी बनायी कि लगभग 70 फीसदी रन इन्हीं दोनों बल्लेबाज़ों ने बनाये थे. आज डु प्लेसी इस टीम के साथ नहीं है और गायकवाड़ संघर्ष कर रहें है तो पूरी टीम बुरी तरह से एक्सपोज होती दिख रही है. पहले ही शेन वॉटसन का अनुभव इस टीम से हट चुका था और सुरेश रैना भी अपने पराक्रम के दौर से बाहर जा चुके थे और उन्हें टीम में शामिल नहीं करने का फैसला सही था. लेकिन, धोनी भविष्य की योजना बनाने के समय शायद इस बार चूक गये.
जडेजा को नये विचारों वाले एक कोच की जरुरत
अगर चेन्नई ने कप्तान बदला है तो शायद वक्त कोचिंग स्टाफ बदलने का भी आ गया है. अगर धोनी के लिए न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफन फ्लेमिंग कोच के तौर पर सबसे बेहतरीन जोड़ीदार थे और जडेजा को शायद अब नये विचारों वाले एक कोच की जरुरत हो. इस टीम के बॉलिंग कोच एल बालाजी की बात करें या फिर गेंदबाजी सलाहकार एरिक सिमंस की, हर कोई चेन्नई से लंबे समय से जुड़ा है और हर किसी को धोनी की शैली में काम करने की आदत है. ऐसे में नये कप्तान के साथ एक नया अध्याय लिखना इतना आसान नहीं होता है. इंटरनेशनल टीमों में भी यही ट्रैंड दिखता आ रहा है कि कप्तान के बदलने के साथ-साथ कोचिंग स्टाफ भी बदलता है.
चाहर पर जरुरत से ज़्यादा मेहरबानी और भरोसा रखने का खामियाजा
दीपक चाहर पर जरुरत से ज्‍यादा मेहरबान होना और उन पर भरोसा रखने का खामियाजा भी चेन्नई को इस सीजन भुगतना पड़ रहा है. ये सच है कि चाहर धोनी की पसंद हैं और जबरदस्त तरीके से कामयाब रहें है, लेकिन सिर्फ उनको टीम में शामिल करने के लिए 14 करोड़ रुपये खर्च करना अब चेन्नई को खल रहा होगा. खासकर, ये देखते हुए चाहर के छोटे करियर में ये बात कई बार देखने को मिली है कि फिटनेस के मामले में उन्हें परेशानी से जूझना पड़ा है.
स्थानीय खिलाड़ियों को टीम में शामिल करने से कतराती क्यों हैं चेन्नई
इतना ही नहीं ये बेहद अजीब सी बात है कि शुरुआती दौर में जिस फ्रेंचाइजी ने आर अश्विन, एस बद्रीनाथ, मुरली विजय और बालाजी जैसे तमिलनाडु औऱ चेन्नई के खिलाड़ियों पर भरोसा दिखाया. वही टीम इस दौर में अपने स्थानीय खिलाड़ियों को टीम में शामिल करने से कतराती है. ऑक्शन के दौरान चेन्नई के पास मौका था वो अश्विन और दिनेश कार्तिक की घर-वापसी करा सकते थे जो इस सीजन बैंगलोर और राजस्थान रॉयल्स के लिए छाये हुए हैं. इतना ही नहीं वाशिंगटन सुंदर और टी नटराजन जैसे खिलाड़ी जो टीम इंडिया के लिए भविष्य के खिलाड़ी के तौर पर देखे जा रहें हैं, उन्हें भी चेन्नई सुपर किंग्स ने टीम में शामिल करने पर खासा उत्साह नहीं दिखाया. शाहरुख खान और साई सुदर्शन जैसे स्थानीय खिलाड़ी भी दूसरी टीमों के लिए अहम खिलाड़ी की भूमिका निभा रहें हैं.
पेशेवर सोच के ऊपर भावनाओं को तरजीह
कुल मिलाकर देखा जाए तो चेन्नई की टीम ने 2022 में पेशेवर सोच के ऊपर भावनाओं को तरजीह दी. ये सच है कि मुंबई इंडियंस की तरह ये टीम भी अच्छे-बुरे हर तरह के समय में अपने खिलाड़ियों के साथ अपनी निष्ठा बरकरार रखती हो और शायद यही वजह है कि आईपीएल की दो सबसे कामयाब टीमों में इनकी गिनती होती है. लेकिन, हम लोग उस दौर में जी रहें है जहां हर पल रणनीति बदलती है और नतीजे बदलते है और खासकर आईपीएल में 2 नई टीमों के आने से कई समीकरण पहले से ही बदलने की उम्मीदें थी. ये बात चेन्नई जैसी अनुभवी टीम नहीं देख पायी, इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है) 
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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