जोखिमों के बीच निवेशक
वर्ष 2021-22 में आए तिरसठ निर्गमों में से उन्नीस अपने जारी मूल्य से नीचे जाकर सूचीबद्ध हुए थे। अर्थात तीस फीसद निर्गम तो पहले दिन ही निवेशकों को उनकी लागत भी नहीं दिलवा पाए।
परमजीत सिंह वोहरा; वर्ष 2021-22 में आए तिरसठ निर्गमों में से उन्नीस अपने जारी मूल्य से नीचे जाकर सूचीबद्ध हुए थे। अर्थात तीस फीसद निर्गम तो पहले दिन ही निवेशकों को उनकी लागत भी नहीं दिलवा पाए। यह निवेशकों के हितों पर बड़े कुठाराघात से कम नहीं है।
शेयर बाजार की मजबूती अर्थव्यवस्था में विकास के सकारात्मक रुख का प्रतीक होती है। अगर शेयर बाजार नित नई ऊंचाइयां छूता है तो यह विदेशी निवेशकों को भी आकर्षित करने का बड़ा जरिया होता है। बीते कुछ वर्षों से आम निवेशकों का भी रुझान इस तरफ बढ़ा है। छोटे निवेशकों को लग रहा है कि अब अर्थव्यवस्था की बागडोर निजी क्षेत्र के हाथों में रहेगी, इसलिए वे अपनी बचत को शेयर बाजार में लगा कर सुरक्षित भविष्य का सपना देखने लगे हैं।
यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में भारत में छोटे निवेशकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। आर्थिक समीक्षा 2022 के अनुसार भारतीय शेयर बाजार में वर्ष 2019 की तुलना में व्यक्तिगत निवेशकों की संख्या लगभग छह प्रतिशत बढ़ी है और वित्त वर्ष 2021-22 में यह लगभग पैंतालीस प्रतिशत थी। इसी दौरान डीमैट खाते खोलने के आंकड़ों में भी आश्चर्यजनक वृद्धि हुई, जो पिछले वित्त वर्ष में यह छब्बीस लाख प्रति माह से भी अधिक रहे थे।
आम निवेशक की प्राथमिकता म्यूच्युअल फंड और कंपनियों के नए निर्गमों (आइपीओ) में निवेश करना ही रहती है। इसकी कुछ वजहें हैं। पहली तो यही कि आम निवेशक शेयर बाजर की अप्रत्याशित उठापटक से बचना चाहता है। दूसरी वजह यह कि वह निवेश के किसी एक विकल्प में बंधे नहीं रहना चाहता। तीसरा, आइपीओ में निवेश करने से पहले वह कंपनी के क्रियाकलापों तथा भविष्य के बारे में विश्लेषण को आधार बना कर ही निवेश करना चाहता है।
आइपीओ के लिए पिछला वित्त वर्ष (2021-22) खासतौर से महत्त्वपूर्ण रहा। इस दौरान कुल तिरसठ आइपीओ बाजार में आए, जो अपने में एक बड़ा आंकड़ा कहा जा सकता है। वर्ष 2021 से तीन साल पूर्व तक कुल निर्गमों की संख्या से ज्यादा निर्गम अकेले 2021 में ही आ चुके थे। वर्ष 2018 में पच्चीस, वर्ष 2019 में सोलह और वर्ष 2020 में अठारह निर्गम आए थे।
इस तरह देखा जाए तो 2021 से पहले के तीन सालों में कुल उनसठ निर्गम ही आए। इस संदर्भ में यह बात भी समझना जरूरी है कि शेयर बाजार में प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार दोनों एक दूसरे की गति से प्रभावित होते रहते हैं। अगर द्वितीयक बाजार दिन-प्रतिदिन के हिसाब से नई ऊंचाइयां छू रहा है तो प्राथमिक बाजार में आइपीओ की बाढ़ आने लगती है।
वहीं अगर प्राथमिक बाजार में तेजी का रुख रहता है, तो द्वितीयक बाजार में भी तेजी रहती है। इसे हम वर्ष 2021-22 में बड़ी स्पष्टता के साथ देख सकते हैं। एक अप्रैल 2021 को बंबई शेयर बाजार सूचकांक जहां 50029 पर बंद हुआ था, वहीं एक अप्रैल 2022 तक यह 9247 अंकों की वृद्धि के साथ उनसठ हजार का आंकड़ा पार कर चुका था।
पूरे वर्ष में नीचे के स्तर पर यह सैंतालीस हजार के आसपास था, तो वहीं अधिकतम ऊंचाई 61700 के आसपास भी देखी गई। इसी संदर्भ में अगर पिछले वित्तीय वर्ष में नए निर्गमों की वृद्धि दर देखें, तो यह रिकार्ड स्तर पर थी। कहने का मतलब यह है कि द्वितीयक बाजार में दस हजार अंकों की वृद्धि हुई और इसी कारण बड़ी संख्या में नए निर्गम बाजार में आए।
शेयर बाजार की चाल को लेकर निवेशक चाहे जितना विश्लेषण करते रहें, फिर भी वे धोखा खा ही जाते हैं। पिछले वित्त वर्ष में बड़ी संख्या में नए निर्गम आने को लेकर किए गए आर्थिक विश्लेषण से यह भी स्पष्ट हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की पटरी पर चल निकली है, क्योंकि कंपनियां खासी पूंजी जुटा रही हैं। परंतु इन सबके बीच में क्या शेयर बाजार से एक आम निवेशक को फायदा हुआ, यह सवाल भी अपनी जगह बना है।
और इसका जवाब है- बिल्कुल नहीं। इस संदर्भ में गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2021-22 में आए तिरसठ निर्गमों में से उन्नीस अपने जारी मूल्य (इश्यू प्राइस) से नीचे जाकर सूचीबद्ध हुए थे। अर्थात तीस प्रतिशत निर्गम तो पहले दिन ही निवेशकों को उनकी लागत भी नहीं दिलवा पाए। यह निवेशकों के हितों पर बड़े कुठाराघात से कम नहीं है।
इसके अलावा वर्तमान समय तक कुल चौबीस कंपनियां अपने जारी मूल्य से नीचे शेयर बाजार के सेकेंडरी बाजार में कारोबार कर रही हैं। यानी कि अड़तीस प्रतिशत निर्गम जो 2021-22 में आए थे, वे वर्तमान में अपनी लागत से नीचे हैं। इनमें से कुछ कंपनियां ऐसी हैं, जिनके अंतर्गत सूचीबद्धता भी लागत से नीचे हुई और आज तक वे सेकेंडरी बाजार में लागत से नीचे ही कारोबार कर रही हैं। इससे स्पष्ट है कि इन कंपनियों के निवेशकों के पास अपनी लागत को निकालने का कोई मौका ही नहीं है, मुनाफा तो बहुत दूर की बात है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आम निवेशकों को आइपीओ में निवेश करने से भी बचना चाहिए? क्या यह सब एक आम निवेशक के लिए बहुत बड़ा घाटे का सौदा नहीं है? हकीकत में आम निवेशक आइपीओ को प्राथमिकता देना चाहता है, क्योंकि वह कंपनी के क्रियाकलापों का अध्ययन करके समझता है, लेकिन इन सबके बावजूद अगर उसे घाटा उठाना पड़ता है तो इसके पीछे जिम्मेदार कौन है? पिछले वित्तीय वर्ष में एक नामी-गिरामी स्टार्टअप जब आइपीओ लाकर पूंजी बाजार में उतरा, तो उसे लेकर निवेशकों में भारी उत्साह था।
लेकिन सूचीबद्धता वाले दिन ही शेयर पर अट्ठाईस प्रतिशत का घाटा हुआ और अभी वह अपने निर्गम मूल्य से चौहत्तर प्रतिशत नीचे बना हुआ है। इससे स्पष्ट है कि उस कंपनी में जिसने निवेश किया होगा, उसका पैसा आज छब्बीस प्रतिशत के बराबर रह गया। ऐसे निवेश से निवेशक खौफ में आ जाते हैं।
सवाल है कि क्या इस तरह के आर्थिक नुकसान निवेशकों का आत्मविश्वास नहीं तोड़ते? अर्थव्यवस्था में खूब तेजी आ रही हो या शेयर बाजार भी नई ऊंचाइयों पर चल रहा हो, उसके बावजूद क्या ऐसी मार झेल चुका निवेशक शेयर बाजार में लौटना चाहेगा? बैंक ब्याज दरों में पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिरावट आ रही है। ऐसे में आम निवेशकों को उम्मीदें शेयर बाजार से हैं। पर जब निवेशक बाजार में चोट खा जाते हैं तो सवाल उठता है कि उनके लिए निवेश का विकल्प क्या है? इस संदर्भ में यह भी समझना होगा कि इन सबसे विदेशी निवेशक भी आशंकित होंगे और निवेश करने से कतराएंगे।
यह नवाचारी उद्योगों (स्टार्टअप) का दौर है। ऐसे उद्योगों की भविष्य की सफलता पूंजी बाजार पर टिकी है। लेकिन नए निर्गम इसी तरह लगातार असफल होते रहे तो ये उद्योग करेंगे क्या? इससे उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के प्रयासों को धक्का लगना स्वाभाविक है। प्रौद्योगिकी के युग में व्यापार करने के नए नए-नए माडल विकसित हो रहे हैं, जिसमें वित्तीय पूर्वानुमानों व मुनाफे की गणना का आकलन पुराने समय के प्रचलित ढंगों से अलग है। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए रियायती दरों पर सामान बेचा जाता है।
नामी-गिरामी शख्सियतें इनमें अपना निजी निवेश करके तात्कालिक पूंजी की आवश्यकताओं तो सशक्त बना देती हैं, परंतु यह सब आम निवेशक को फायदा पहुंचाने के लिहाज से शेयर बाजार में लगातार असफल हो रही हैं। शेयर बाजार में आम निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियंत्रण व पारदर्शी व्यवस्था को और विकसित करने की जरूरत है। यह सब विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। वरना यह एक आम चर्चा बनती चली जाएगी कि शेयर बाजार में एक साथ तिरसठ आइपीओ आना वर्ष 2021-22 के लिए बहुत बड़ा घाटे का सौदा रहा।