अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 विशेष: क्या हम पूर्वाग्रह को तोड़ रहे हैं?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 विशेष
प्रो. नीलिमा गुप्ता।
दुनिया में स्त्रियों के संघर्ष, उनके मानवीय मूल्यों और आदर्शों के प्रति समर्पण को वैश्विक स्तर पर अनुकरणीय बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है।
वस्तुतः यह महिलाओं के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक उपलब्धियों का उत्स है। ऐतिहासिक सन्दर्भों में महिला दिवस को मनाने की शुरुआत औद्योगिक क्रान्ति के साथ जुडी हुई है जहां दुनिया के उद्योगों के विकास ने महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र करने के बजाए नई आर्थिक संरचनाओं में जकड़ना शुरू किया। वर्ष 1911 में पहली बार ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में 19 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।
रूस ने वर्ष 1930 और 1940 के बीच 23 फरवरी को यह दिन मनाया। संयुक्त राष्ट्र ने अपना पहला आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया, जिसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को कुछ देशों में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर मनाया जाता है।
महिला दिवस और समाज
महिला दिवस अपने उद्विकासीय स्वरुप में जहां एक ओर समाज में विद्यमान विषमतामूलक, हिंसक एवं गैर-लोकतांत्रिक संरचनाओं के प्रतिरोध की वैचारिक दृढ़ोक्ति है वहीँ दूसरी ओर यह महिलाओं के द्वारा किए गए संघर्ष, उनकी उपलब्धियों और दुनिया को बेहतर बनाने में किए गए योगदान को याद करने का दिन है।
आज दुनिया के लगभग सभी देशों में लैंगिक समानता की बात की जा रही है लेकिन राष्ट्रों द्वारा बड़ी प्रगति कर लेने के बावजूद यह विचार एक सपना ही बना हुआ है। वैश्विक आर्थिक सुधारों के बावजूद लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर हैं और आने वाले दिनों में यह स्थिति और भयावह हो सकती है।
आंकड़े बताते है कि महिला-पुरुष आमदनी में पर्याप्त विषमता है। महिलाएंं पुरुषों की तुलना में 23 प्रतिशत कम कमाती हैं। आबादी के लिहाज से देखे तो हम पाते है कि महिलाएं दुनिया की आधी आबादी के रूप में है, वहीँ महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी केवल 24 प्रतिशत है ।
यह भी दिलचस्प है कि उत्तर कोरिया में महिला साक्षरता दर 100 प्रतिशत है। पोलैंड, रूस और यूक्रेन में 99.7 प्रतिशत, इटली में 99, सर्बिया में 97.5, चीन में 95.2 और यहां तक कि हमारे पड़ोसी छोटे देश श्रीलंका में यह 91.0 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 65.8 प्रतिशत है। कुछ पड़ोसी देशों में महिला साक्षरता दर और भी कम है जैसे-पाकिस्तान में 46.5, अफगानिस्तान में 29.8, चाड में 14 और नाइजर में 11 प्रतिशत महिला साक्षरता दर है।
इसी तरह महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर नेपाल में 81.4, वियतनाम में 72.73, सिंगापुर में 61.97, यूके में 58.09, यूएसए में 56.76, सर्बिया में 47.92 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण आधारित देश होते हुए भारत में यह दर केवल 20.7 प्रतिशत है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, भारत में महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाने के लिए जागरूकता, प्रयास और श्रम प्रेरणा का आह्वान करता है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2022 का ध्येय वाक्य 'ब्रेक द बायस' है अर्थात पूर्वाग्रहों को तोड़ना।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2022 और ध्येय
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2022 का ध्येय वाक्य 'ब्रेक द बायस' है अर्थात पूर्वाग्रहों को तोड़ना। हम सभी यह जानते हैं कि समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों को तोड़े बगैर एक समतामूलक, समावेशी और न्यायसंगत समाज का निर्माण नहीं हो सकता है। इसके लिए हम एक पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता और भेदभाव से मुक्त दुनिया की कल्पना करना चाहते हैं, जहां समानता एक जीवन मूल्य के रूप में समाज को निर्देशित करे।
ऐसी दुनिया लैंगिक समानता की दुनिया होगी। हम साथ मिलकर महिलाओं की समानता का निर्माण कर सकते हैं और सामूहिक रूप से पक्षपात को दूर कर सकते हैं। आज का परिदृश्य बताता है कि हम सभी अपने विचारों और कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं।
हमें अपने समुदायों, अपने कार्यस्थलों, अपने विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में पूर्वाग्रहों को तोड़ना होगा। आइए हम इस पूर्वाग्रह को इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर और उसके बाद भी तोड़ने का संकल्प लें। पूर्वाग्रह अचेतन हो या जानबूझकर, इससे महिलाओं के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है।
पूर्वाग्रहों की मौजूदगी को केवल महसूस कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रत्येक अवसर पर हमें लैंगिक पूर्वाग्रह, भेदभाव और रूढ़िबद्धता को तोड़ने के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
इस वर्ष 'ब्रेक द बायस' पूर्वाग्रह को दूर करने, रूढ़िवादिता को तोड़ने, असमानता और भेदभाव को समाप्त करने की प्रतिबद्धता दिखाने के लिए प्रतीक रूपक है। समाज में बदलाव लाने के लिए हमें चुनौतियों को स्वीकार करना होगा और महिलाओं की उपलब्धियों को महत्त्व देने के लिए कदम उठाने होंगे। महिलाओं की समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए लैंगिक समानता की पैरवी करनी होगी और महिला केंद्रित विकास के लिए भी आवश्यक कदम उठाने होंगे।
गौरतलब है कि कोविड-19 के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता के रूप में लगभग 70 प्रतिशत की भागीदारी महिलाओं ने ही निभाई है । आज महिलाएँ अपनी सूझबूझ से सभी चुनौतियों, जिम्मेदारियों आदि का सामना कर रही हैं। आज आवश्यकता इस बात कि है कि हम स्वीकार करें कि महिलाएं प्रतिभाशाली हैं, वे उपलब्धियां हासिल कर सकती हैं, और वे जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल हो सकती हैं।
दरअसल, यह तब ही संभव होगा जब वह अपने को पुरुषों से कमतर न आंकें। उन्हें यह समझना होगा कि वे किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है वे अपने अधिकारों के संतुलन तथा समानता, निष्पक्षता के लिए कार्य कर सकती हैं । जो महिलाएं आगे बढ़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं उनके समान कोई ताकतवर नहीं है।
महिलाओं ने सफलता की पराकाष्ठा तक पहुंचने के लिए पूर्वाग्रहों को तोड़ा है
इतिहास, समय और महिलाएं
अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो कई महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में सम्मान हासिल किया है। मैरी क्यूरी को 1903 में भौतिकी के लिए और 1911 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी बेटी आइरीन क्यूरी को भी 1935 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सरोजिनी नायडू जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानी रहीं और उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर काम किया और भारत कोकिला के नाम से विख्यात थीं, उन्हें भारत रत्न जैसे सम्मान से नवाजा गया। भारतीय स्त्रियों की साहस गाथा बहुत लंबी है।
झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। पुनीता अरोड़ा भारतीय सेना की पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल बनीं। श्रीमती प्रतिभा पाटिल को प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त है।
शकुंतला देवी का नाम उनकी गणितीय उत्कृष्टता के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया था। श्रीमती किरण बेदी पहली महिला आईपीएस अधिकारी के रूप में सुविख्यात हैं। अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला कल्पना चावला भारतीय मूल की ही थीं।
दो बार माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की पहली महिला संतोष यादव ने देश का नाम ऊंचा किया। राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज मैरी कॉम हैं।
अरून्धती भट्टाचार्य स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की पहली महिला चेयरमैन बनी। आज भारतीय महिलाओं ने व्यवसाय के क्षेत्र में भी अपना परचम लहराया है। इसमें विशेष रूप से बायोकान की चेयरमैन किरन मजूमदार शॉ, अमेज़ोन की बोर्ड मेम्बर इन्दिरा नूई और हाल ही में शेयर मार्केट में तहलका मचाने वाली नाइका की संस्थापक अध्यक्ष फाल्गुनी नायर के नाम उल्लेखनीय हैं ।
निस्संदेह इन सभी महिलाओं ने सफलता की पराकाष्ठा तक पहुंचने के लिए पूर्वाग्रहों को तोड़ा है लेकिन इस तरह की यात्रा को अधिक से अधिक महिलाओं को तय करना होगा।
वस्तुत: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जागरूकता का दिन है, प्रतिबद्धता का दिन है, भेदभाव को अस्वीकार करने और महिलाओं को एक समान क्षेत्र में लाने के लिए असमानता को दूर करने का दिन है, जहां प्रत्येक महिला सम्मानित, आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बन सके।
इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आइए हम महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने का संकल्प लें। वे हमारे देश की शक्ति हैं और देश की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने में भी समान रूप से सक्षम हैं। मातृशक्ति के सशक्तिकरण से ही राष्ट्र की आत्मनिर्भरता और विश्वगुरु की पुनर्प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।