भारतीय शाकाहार की धारणा पवित्रता और धर्म से है पर अपना भोजन चुनने की आजादी का क्या ?

इस नवरात्रि पर साउथ दिल्ली के मेयर का मौखिक आदेश चर्चा में आ गया कि इन नौ दिनों में मांस की दुकानें बंद रहेंगी

Update: 2022-04-10 08:00 GMT
अनिमेष मुखर्जी।
इस नवरात्रि (Chaita navratri) पर साउथ दिल्ली के मेयर का मौखिक आदेश चर्चा में आ गया कि इन नौ दिनों में मांस की दुकानें बंद रहेंगी. उन्होंने तो यह तक कह दिया कि 99 प्रतिशत लोग प्याज़ लहसुन भी नहीं खाते. अब नियम कायदों पर जाएं, तो भारत में इस तरह के आदेश संवैधानिक नहीं कहे जा सकते. संवैधानिक रूप से स्थिति यह है कि भले 99 प्रतिशत आबादी शाकाहारी (vegetarian) हो जाए, तब भी एक प्रतिशत के अल्पसंख्यक समुदाय (Minority Community) को अपनी परंपरा के हिसाब से भोजन चुनने की आज़ादी होगी. इसलिए, प्याज़ लहसुन से जुड़ी धार्मिक परंपराओं पर बात करते हैं.
मेयर साहब ने कहा कि लोग प्याज़ लहसुन तक नहीं खाते. तो उनकी बात में एक सच था कि नवरात्रि के दौरान कई जगहों पर लोग प्रसाद के रूप में भी नॉनवेज खाते हैं, लेकिन प्याज़-लहसुन नहीं खाते. नवरात्र में जिन स्थानों पर पशु बलि दी जाती है उस मांस में प्याज़ लहसुन नहीं पड़ता. प्याज़ लहसुन से दूरी का आलम यह है कि सन् 2008 में तमिलनाडु के तिरुमाला में प्याज़ लहसुन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठ चुकी है. हालांकि, भारतीय संस्कृति में हर अपवाद मौजूद है. इसीलिए, राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में गोगाजी का मंदिर है जहां प्याज़ का प्रसाद चढ़ता है. वहीं श्रीलंका के कई तमिल मंदिरों के भोग की रेसिपी में लहसुन होता है.
लहसुन-प्याज़ और धर्म
प्याज़-लहसुन को लेकर दुनिया के हर धर्म में कोई न कोई निर्देश मौजूद है. खासतौर से लहसुन को लेकर तो बहुत कुछ कहा गया है. दरअसल एलियम सीपा और एलियम सैटाइवम नाम की इन दो सब्ज़ियों की महक ही इनके प्रति बने पूर्वाग्रह का कारण है. ठीक वैसे ही जैसे हींग की महक के चलते इसे शैतान का गोबर कहा जाता है. अब हिंदू मिथकों के अनुसार समुद्रमंथन में जब राहु ने अमृत पिया और भगवान विष्णु ने उसका गला काटा, तो उसके गले से दो बूंदे छलक कर धरती पर गिरीं और प्याज़ लहसुन बनीं. ये अमृत से पैदा हुई हैं, तो इनमें कई अच्छे गुण हैं, जबकि यह राक्षस के गले से उपजी हैं, तो इनको भोग में नहीं चढ़ाया जा सकता. वहीं, गीता के सत्रहवें अध्याय के दसवें श्लोक में दुर्गन्धयुक्त भोजन को तमोगुणी लोगों की पसन्द बताया है और तमोगुणी की अधोगति होती है. इसलिए वैष्णव इनसे बचते हैं. रोचक बात यह है कि नवरात्रि शाक्त परंपरा का त्योहार है, जबकि इसपर जो नियम लागू हो रहे हैं वे वैष्णव हैं. इस्लाम की हदीस में भी कच्चा प्याज़-लहसुन खाकर मस्जिद जाने से बचने को कहा गया है कि इससे फ़रिश्ते नाराज़ हो जाते हैं. इसका भी कारण इनकी महक है. ईसाई मान्यता है कि शैतान का पहला कदम जब धरती पर पड़ा तो वहां लहसुन पैदा हुआ. इसलिए इसकी प्रवृत्ति शैतानों वाली. वैसे यूरोप में इसके उलट यह मान्यता भी है कि लहसुन डर और वैंपायर वगैरह से बचाता है. जैन धर्म में खाने-पीने को लेकर सबसे कठोर नियम हैं. उनमें प्याज़-लहसुन के साथ-साथ गाजर जैसी तमाम चीजों की मनाही है. इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि ये ज़मीन के अंदर उगती हैं, इसलिए इनसे बचना चाहिए, क्योंकि इनमें कई सूक्ष्म जीव होते हैं. सूक्ष्म जीवों वाली बात तो वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं है. ज़मीन के अंदर उगने वाली हल्दी का इस्तेमाल हर शुभ काम में भरपूर होता है और उसके इस्तेमाल की मनाही भी नहीं है. क्योंकि शायद हल्दी का रंग अच्छा लगता है और उसकी महक परेशान नहीं करती.
लहसुन के मुरीद भी कम नहीं
एक ओर जहां प्याज़ लहसुन की महक के चलते इसे निषिद्ध मानने वालों की कमी नहीं, तो इसके औषधीय गुणों के चलते इसके गुणगान करने वाले भी बहुत हैं. कोरियन मिथकों के मुताबिक एक मादा रीछ ने 21 दिन तक रोज़ सिर्फ़ 21 लहसुन खाए. इसके बाद वो एक महिला में बदल गई और उसने एक प्रतापी शासक को जन्म दिया. वहीं प्राचीन मिस्र में पुरोहित ममी में प्याज़-लहसुन भरते थे. यहां तक कि पिरामिड बनाने वाले मज़दूरों को भी भरपूर लहसुन खिलाया जाता था. ग्रीक ऐथलीट एरिना में उतरने से पहले ढेर सारा लहसुन खाते थे. वहीं रोमानियन शादी में सुहागरात से पहले दूल्हे की नाभि पर लहसुन बांधा जाता था. आयुर्वेद में भी पिछले 5000 सालों से इनकी तारीफ़ की जा रही है. हां, वेदों में इन सब्ज़ियों का ज़िक्र नहीं मिलता. वैसे सबसे ज़्यादा प्याज़ लहसुन का इस्तेमाल चीन और उसके आस-पास ही होता है. चीन के ताज़े लहसुन को काफ़ी अच्छा माना जाता है. यहां तक कि पिछले कुछ सालों में चीन से तस्करी करके लहसुन लाने के चलते लोगों को जेल तक हुई है.
आज का खानपान और प्याज़ लहसुन
प्याज़ और लहसुन को लेकर तमाम धार्मिक मान्यताएं और इसकी महक की वजह से इनसे दूरी बनाना एक निजी पसंद का मुद्दा है. लेकिन हकीकत यह है कि आज की हमारी जीवनशैली को देखते हुए इन्हें अपने खाने में शामिल करना एक समझदारी वाला विकल्प है. हमने अपनी जीवनशैली के चलते दिल से जुड़ी तमाम समस्याओं और डायबीटीज़ के बढ़ते मामले देखे हैं. ऐसे में लहसुन एक नैचुरल ब्लड थिनर है यानी एक ख़ून को पतला करता है, जिन लोगों को कोलोस्ट्रोल या हृदय की धमनियों में रुकावट की समस्या है उनके लिए लहसुन बहुत लाभकारी है. जबकि प्याज़ में काफ़ी ज़्यादा क्रोमियम होता है. क्रोमियम, ब्लड शुगर को बनाए रखने में मदद करता है. और डायबटीज़ से बचाता है. बेहतर रहेगा कि इन्हें खाने में सलाद, चटनी या किसी और तरीके से शामिल किया जाए, ताकि तनाव भरी ज़िंदगी में कोलेस्ट्रॉल और डायबटीज़ का खतरा कुछ कम हो. हां, अगर लगता हो कि सच में किसी राक्षस के गला कटने या किसी के ज़मीन पर पैर रखने से कोई सब्ज़ी पैदा हो सकती है, और उससे पवित्रता खतरे में आ सकती है, तो दूसरी बात है.
मांसाहारियों का देश और वैष्णव पवित्रता
बात खत्म करने से पहले, भारतीयता के साथ शाकाहार को जोड़ने और उसे थोपने पर भी बात कर लेते हैं. जिस तरह लहसुन-प्याज़ न खाना धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. उसी तरह, भारतीय शाकाहार की धारणा में अधिक योगदान सात्विक्ता और धार्मिक पूर्वाग्रहों का है. जीव हिंसा और सर्वाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट की बहस एक अलग मुद्दा है, लेकिन जब लोग प्याज़ लहसुन तक नहीं खाते बताते हैं, तो कहीं न कहीं अवचेतन में धार्मिक मान्यता के चलते उपजी कथित पवित्रता का भाव होता है. जबकि हकीकत यह है कि आधिकारिक डेटा के मुताबिक भारत मांसाहारियों का देश है. भारत की 70 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी मांसाहारी है. हालांकि, इसमें बड़ी संख्या में लोग रोज़ सामिष भोजन नहीं करते और यह प्रतिशत समय के साथ थोड़ा सा कम हुआ है. यानि, पहले के मुकाबले लोग धीरे-धीरे वेजिटेरियन या वीगन बन रहे हैं. इसके बावजूद भारत की छवि एक शाकाहारी देश की है. इसके दो कारण हैं एक तो भारत का शाकाहारी भोजन बेहद विविधतापूर्ण और स्वादिष्ट है. मशहूर शेफ़ और टीवी प्रेज़ेंटर एंटोनी बोर्डेन कहा करते थे कि भारत ही एकमात्र देश है जहां वे पूरे हफ़्ते शाकाहारी भोजन कर सकते हैं. दूसरा कारण उत्तर भारत का वैष्णव कथित पवित्रता का कॉन्सेप्ट और उसे ही भारतीय मानना है. इस असर का एक दूसरा आसान उदाहरण हिंदी को राष्ट्रभाषा मानने वाला विवाद है. तमिल और दूसरी भाषाएं बोलने वाले तुरंत ही इसके विरोध में आ जाते हैं, और बहुत से हिंदी बोलने वालों को लगता है कि पूरे भारत की भाषा हिंदी है और होनी चाहिए. सिर्फ़ तथ्यों पर बात करें तो तमिल सबसे प्राचीन और बिना किसी विदेशी मिलावट वाली प्रमुख भाषा है. साहित्य के मामले में बांग्ला और मराठी हिंदी से कोसों आगे हैं. जबकि खड़ी बोली हिंदी को भारतेंदु से लेकर अब तक दो सौ साल भी नहीं हुए हैं.
दक्षिण दिल्ली के मेयर ने जो मांग की उस तरह की बातें दिल्ली में पहली बार नहीं हुई है. कहते हैं न कि आसमान के नीचे कुछ भी नया नहीं है. दिल्ली ने इमरजेंसी के दौर में इस तरह की घटनाएं देखी हैं और तुर्कमान गेट के दुकानों और मकानों पर तत्कालीन डीडीए प्रमुख गवर्नर के बिना ठोस वजह के बुल्डोज़र चलवा देने का काला दिन भी दिल्ली ने देखा, लेकिन फ़िलहाल हमारे यहां की संसदीय व्यवस्था लागू है तो दोबारा ऐसा होने की उम्मीद कम है. स्पष्ट कर दें दिल्ली के डीडीए प्रमुख जगमोहन मेल्होत्रा वही थे, जो बाद में कश्मीर में गवर्नर बने और उनके समय में पंडितों का सामुहिक पलायन हुआ. दिल्ली में इस तोड़-फोड़ की वजह उन्होंने बताई थी कि वे दूसरा पाकिस्तान नहीं बनने देना चाहते थे और इसे विडंबना ही कहेंगे कि जगमोहन के कहने पर इस विध्वंस को ज़मीन पर हकीकत बनाने वाले तहसीलदार का नाम कश्मीरी लाल था. न दिल्ली पाकिस्तान बनी, न लोगों का नॉनवेज बंद हुआ. इमरजेंसी के लगभग आधी सदी बाद अब न जगमोहन हैं, न कश्मीरी लाल. जबकि लोग जो खाना चाहते थे खा रहे थे और खाते रहेंगे.
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