Indian History: इतिहास को दुरुस्त करने का सही अवसर: कृपाशंकर चौबे
शिक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले इतिहास को दुरुस्त करने के लिए देशभर के शिक्षाविदों और विद्याॢथयों से सुझाव मांगे हैं।
शिक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले इतिहास को दुरुस्त करने के लिए देशभर के शिक्षाविदों और विद्याॢथयों से सुझाव मांगे हैं। इतिहास को दुरुस्त करने की यह पहल तार्किक ही है, क्योंकि स्कूलों में अभी जो इतिहास पढ़ाया जाता है, वह एकांगी और पक्षपातपूर्ण है। यह पढ़ाया जाता है कि भारतीय राजाओं ने बड़ी लड़ाई लड़ी और हार गए, किंतु उन्होंने जो युद्ध जीते, उसका वृत्तांत नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए आठवीं शताब्दी में 36 वर्षों तक युद्ध कर अपने राज्य का विस्तार करते रहे कश्मीर के कर्कोटक नागवंशी सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड के बारे में स्कूली इतिहास की किताबें खामोश हैं। उन्होंने अरब के मुसलमान आक्रांताओं तथा तिब्बती सेनाओं को पीछे धकेला था। उनका राज्य पूरब में बंगाल, दक्षिण में कोंकण, पश्चिम में तुॢकस्तान और उत्तर पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने कश्मीर में मार्तंड मंदिर बनाया था। ग्यारहवीं शताब्दी में गजनवी सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को पराजित करने वाले श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव के बारे में भी स्कूली इतिहास की किताबों में सुसंगत विवरण नहीं मिलता। इसी तरह 1741 में डचों को हराने वाले राजा मार्तंड वर्मा के बारे में इतिहास की किताबें प्रकाश नहीं डालतीं। चोल, चालुक्य, देवबर्मन, अहोम राजाओं के बारे में भी इतिहास की किताबें लगभग मौन हैं। दक्षिण भारत से लेकर ओडिशा, बंगाल और पूर्वोत्तर के अनेक प्रतापी राजाओं ने दो-ढाई सौ वर्षों तक शासन किया, पर उनके बारे में स्कूली इतिहास की किताबों में यथोचित विवरण नहीं मिलता। स्कूलों में भारत का जो इतिहास पढ़ाया जाता है, वह मुख्यत: दिल्ली का इतिहास है। अभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे समय इतिहास के एकांगी पक्ष को दूर करने का सुअवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।