निरंतर आगे बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था

Update: 2022-09-05 08:18 GMT
By अनुराग सिंह ठाकुर
यह मात्र संयोग हो सकता है, तो भी यह प्रत्येक भारतीय के लिए अत्यधिक संतोष की बात है कि भारत ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से अपनी स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरते हुए ब्रिटेन को ही पीछे छोड़ दिया है. यह उपलब्धि ऐसे समय में भी आयी है, जब ब्रिटेन अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को समर्थन देने और बढ़ती महंगाई का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रहा है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के आलोचक अर्थशास्त्री इस बात से स्तब्ध हैं कि वे ब्रिटेन की और वास्तव में पश्चिम की अधिकांश चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का विचार है कि उनके लिए प्रचुरता से भरे दिन वास्तव में खत्म हो गये हैं और ये हमारे लिए शुरुआत हो सकती है. ब्लूमबर्ग ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि एक उपनिवेशवादी ताकत को उसके पूर्ववर्ती उपनिवेश ने ही पीछे छोड़ दिया है.
15 अगस्त 1947 को विश्व जीडीपी में भारत का हिस्सा 1700 के 24.4 प्रतिशत से कम होकर मात्र 3% रह गया था. पिछले आठ वर्षों में भारत के आश्चर्यजनक उदय को समझने के लिए इन आकड़ों को याद करना जरूरी है. इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को तेज गति से आगे बढ़ने में समर्थन के लिए प्रमुख नीतिगत बदलाव किये हैं.
भारत वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 13.5 प्रतिशत की दर से सकल घरेलू उत्पाद के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है. यदि हम अपनी क्रय-शक्ति के अनुकूल होते है, तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद इसे अमरीका और चीन के बाद विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने में सक्षम होता है. सभी उपलब्ध आंकड़ों और अनुमानों से पता चलता है कि अन्य देशों का सकल घरेलू उत्पाद या तो स्थिर रहेगा या कम होगा, किंतु भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगातार बढ़ता रहेगा. इसका मतलब है कि भारत अपनी बढ़त कायम रखेगा और मौजूदा कमियों को दूर करने के काम में तेजी लाएगा.
वैश्विक स्तर की अर्थव्यवस्थाओं की तरह ही कोविड-19 महामारी के लगातार दो सालों ने भारत की अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया, पर पीएम मोदी ने प्रतिकूल परिस्थितियों वाले इन सालों को अवसर में बदल दिया. उनकी दूरदर्शिता ने भारत को दूसरे देशों की तरह अपने धन एवं संसाधनों को बर्बाद करने से बचाया.
अन्य देशों से अलग, उन्होंने एक सतर्क और विवेकपूर्ण विकल्प चुना जिसके तहत रोजगार पैदा करने वाली बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाया गया और उद्योग जगत में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहन-आधारित योजनाओं को बढ़ावा दिया गया. दो लाख करोड़ रुपये की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का असर अब दिखने लगा है.
ये सभी उपाय भारत के प्रौद्योगिकी पूल का लाभ उठाने, स्टार्ट-अप एवं यूनिकॉर्न को प्रोत्साहित करने और वैश्विक स्तर पर निवेशकों एवं उद्योगों के साथ सीधे जुड़ने की सुविधा के अलावा, पीएम मोदी द्वारा व्यापार की बेहद आसान प्रक्रिया, नीतिगत स्थिरता, संशोधित श्रम कानून और बेहद लोकप्रिय व दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल भुगतान प्रणाली सुनिश्चित किए जाने की पृष्ठभूमि में हुए हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं मुख्य जोर अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने और लॉकडाउन वाले सालों में नीचे गिरी जीडीपी को ऊपर उठाने पर था, पर इस सबके बीच पीएम मोदी इस महामारी की सबसे अधिक मार झेलने वाले गरीब और वंचित लोगों को बिल्कुल नहीं भूले. भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी को मुफ्त राशन प्रदान करने के दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम और दुनिया के सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान ने भारत की अर्थव्यवस्था को इस महामारी के कहर से उबरने और गति पकड़ने एवं अपना आकार बढ़ाने में काफी मदद की.
1947 में, भारत एक असहाय राष्ट्र था, पर आज जब हम अपनी आजादी के 'अमृत काल' में प्रवेश कर रहे हैं, हमारा देश काफी मजबूत व समृद्ध हो चुका है. मोदी सरकार की सफलता की कहानियों की सूची लंबी है. 100 बिलियन डॉलर से अधिक की कंपनियां बनायी गयी हैं और हर महीने नयी कंपनियां जुड़ रही हैं. भारत केवल क्रोम और ग्लास मॉल से अपनी बढ़ती समृद्धि को प्रदर्शित नहीं कर रहा है.
इसे पीएम मोदी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है. इसलिए उनका ध्यान गरीबी को कम करने पर रहा है. हाल ही में आइएमएफ का एक अध्ययन बताता है कि किस तरह अत्यधिक गरीबी और उपभोग संबंधी असमानता में तेजी से कमी आयी है. गरीबों के लिए आवास और स्वास्थ्य सेवा का सामाजिक विकास सूचकांकों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है, सब्सिडी वाले एलपीजी, प्रत्‍येक ग्रामीण के घर में नल से जल, मुद्रा ऋण और अन्य संबद्ध कार्यक्रम गरीबों के लिए वरदान सिद्ध हुए हैं.
पीएम मोदी की 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की परिकल्‍पना धीरे-धीरे, पर लगातार आकार और रूप ले रही है. यह भारत आत्मविश्वासी और 'आत्मनिर्भर' भारत है. पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के दोहरे मील के पत्थर को पार करना निस्संदेह भारत और भारतीयों के लिए एक उपलब्धि है. यहीं से हमने पीएमम मोदी की भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने की अपनी यात्रा शुरू की है. विश्वास है, भारत अगले दो वर्षों में इस मील के पत्थर को भी पार कर जायेगा.
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