यूक्रेन और रूस में जारी तनातनी को रोकने के लिए शांति के लिए पहल करे भारत

यूक्रेन और रूस में जारी तनातनी

Update: 2022-02-15 15:43 GMT
डा. शक्ति प्रसाद श्रीचंदन। इस समय यूरोप शीत युद्ध के बाद सबसे नाजुक दौर से गुजर रहा है। हालांकि यूक्रेन संकट 2014 से चल रहा है, परंतु इस बार नाटो के विस्तार के बारे में रूसी चिंताएं, विशेष रूप से यूक्रेन की संभावित नाटो सदस्यता और पूर्वी यूरोप में नाटो बलों की तैनाती रूस के आक्रामक रुख के मुख्य कारण हैं। यद्यपि तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक पहल चल रही है, तथापि रूस का रवैया आक्रामक बना हुआ है। रूस के साथ अपने पुराने संबंधों और अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते संबंधों को देखते हुए भारत सतर्क रुख अपना रहा है।
यूक्रेन संकट के संदर्भ में ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के पास अधिक विकल्प नहीं हैं। एक तरफ रूस भारत का करीबी दोस्त है। घनिष्ठ आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के अलावा भारतीय सशस्त्र बलों का लगभग 60 प्रतिशत हार्डवेयर रूस से प्राप्त है। निकट भविष्य में, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली एस-400 ट्रायंफ जैसे रूसी हथियार भारत को मिलने की संभावना है। वहीं, पिछले वर्षों के दौरान अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ आर्थिक, व्यापार, प्रौद्योगिकी, रक्षा जैसे क्षेत्रों में भारत के संबंधों में काफी सुधार हुआ है। इसलिए उभरती तनावपूर्ण स्थिति भारत के द्विपक्षीय संबंधों को जटिल बना सकती है और रूस से हथियार आयात करने में मुश्किलें पैदा कर सकती है।
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इसके अलावा, भारत के चीन के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं। भारत चीन को नियंत्रित करने के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विश्व का ध्यान आकर्षित करने में काफी सफल रहा है। लेकिन यूक्रेन संकट के कारण, सभी का ध्यान और संसाधनों को यूरेशिया की ओर मोड़ा जा रहा है। साथ ही, अगर भारत रूस के खिलाफ कोई पक्ष लेता है, तो आशंका है कि रूस चीन के साथ और करीब आ जाएगा। यह चीन के खिलाफ भारत के रणनीतिक प्रयासों को कमजोर कर सकता है। रूस प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने और अपने रक्षा-औद्योगिक क्षेत्र को चलाने के लिए पाकिस्तान को और अधिक हथियारों की आपूर्ति शुरू कर सकता है। यह भारत के लिए अच्छा नहीं होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और कई यूरोपीय नेताओं ने बार-बार चेतावनी दी है कि यूक्रेन में सैन्य हस्तक्षेप के मामले में रूस को बड़े पैमाने पर आर्थिक परिणाम भुगतने होंगे। अगर ऐसा होता है तो इसका सीधा और परोक्ष असर भारत पर भी पड़ेगा। जब अमेरिका और उसके सहयोगियों ने परमाणु कार्यक्रम के कारण ईरान पर प्रतिबंध लगाए, तो भारत पर भी ईरान के खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई करने का दबाव था। किसी भी गंभीर आर्थिक प्रतिबंध का प्रतिकार करने के लिए, रूस तेल और गैस की आपूर्ति रोककर यूरोप को झटका दे सकता है। इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया पर पड़ेगा। तेल की कीमतों में और तेजी आ सकती है।
ऐसे में यदि रूस यूक्रेन पर हमला करता है, तो भारत को रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए अमेरिका से संभावित कूटनीतिक दबाव के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत इस बात से भी परेशान है कि पश्चिमी देशों द्वारा प्रस्तावित प्रतिबंध रूस के साथ उसके रक्षा व्यापार और अन्य सहयोगों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
हालांकि भारत को अपने घरेलू मामलों में हस्तक्षेप पसंद नहीं है और हमेशा दूसरे देश के मुद्दों में तटस्थता बनाए रखता है, लेकिन यूक्रेन संकट पर वह एक सूत्रधार की भूमिका निभा सकता है, क्योंकि वर्तमान में भारत के सभी पक्षों के साथ अच्छे संबंध हैं। इतना ही नहीं, भारत अपनी उभरती वैश्विक नेतृत्व भूमिका को देखते हुए अधिक योगदान दे सकता है। भारत पक्ष नहीं लेगा, लेकिन कूटनीति को एक मौका देकर संबंधित पक्षों के बीच मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की पहल कर सकता है।
( लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं )
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