भारत-रूस शिखर बैठक : रक्षा संबंधों की मजबूत बुनियाद

शिखर बैठक में यह बात स्पष्ट होकर सामने आई कि दोनों देश वैश्विक मुद्दों पर एक दूसरे का समर्थन पाने के आकांक्षी हैं।

Update: 2021-12-09 01:53 GMT

हाल ही में संपन्न हुई भारत-रूस की शिखर बैठक से, जिसमें वैश्विक घटनाओं पर विचार-विमर्श के अलावा 2+2 संवाद की भी शुरुआत हुई, रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग में और वृद्धि ही होगी। शिखर बैठक में अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित 99 बिंदुओं पर साझा सहमति बनी, तो अंतरिक्ष से लेकर रक्षा और दूसरे क्षेत्रों से जुड़े 28 सहमति पत्रों पर दस्तखत किए गए। भारत और रूस के रिश्ते मुख्यतः रक्षा सहयोग पर ही आधारित हैं, जबकि दोनों के बीच का व्यापार महज 10 अरब डॉलर तक सिमटा हुआ है।

2+2 संवाद के बाद दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग पर भारत-रूस अंतर्सरकारी आयोग की 20वीं बैठक में भी हिस्सा लिया। उसी बैठक में विभिन्न समझौतों पर दस्तखत किए गए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'आत्मनिर्भरता के लिए अधिक सैन्य तकनीकी सहयोग तथा आधुनिकतम शोध और रक्षा उपकरणों के साझा विकास व उत्पादन पर हमारा अधिक जोर है।' उल्लेखनीय है कि रूस के साथ मिलकर भारत रक्षा क्षेत्र में साझा उद्यम खड़ा करना चाहता है।
अमेरिका द्वारा सीएएटीएसए (काउंटरिंग अमेरिकन एडवरसरीज थ्रू सैंक्शन्स ऐक्ट) लगाने की धमकी के बावजूद भारत-रूस के बीच एस-400 मिसाइलों के सौदे दोनों देशों के रिश्तों के नए आयाम के बारे में बताते हैं। रूस के नेतृत्व ने इसकी तारीफ की, जब रूसी विदेश मंत्री लैवरोव ने कहा कि 'हमारे भारतीय दोस्तों ने स्पष्ट तौर पर और ठोस रूप में बता दिया कि वे एक संप्रभु राष्ट्र हैं। वही तय करेंगे कि वे कौन-से हथियार खरीदेंगे तथा रक्षा व दूसरे क्षेत्रों में उनका साझेदार कौन होगा।'
भारतीय सुरक्षा बलों के पास जो रक्षा उपकरण हैं, उनमें से 60 प्रतिशत के पुर्जे रूस से आते हैं। जैसा कि भारतीय विदेश सचिव हर्ष शृंगला ने एक बार कहा भी था कि 'बगैर रूसी कल-पुर्जों के न तो हमारे विमान उड़ पाएंगे, न ही समुद्र में हमारे जहाजों का चलना संभव है।' अभी खत्म हुई शिखर बैठक में इस पर सहमति बनी कि रूस भारतीय रक्षा उत्पादों के कल-पुर्जों के भारत में ही उत्पादन में सहयोग करेगा, जिससे आत्मनिर्भर भारत के अभियान को रफ्तार मिलेगी।
रक्षा उत्पादों के पुर्जों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक देश द्वारा अपने कूटनीतिक प्रावधान ढीले करना ही यह बताने के लिए काफी है कि भारत और रूस के बीच के रिश्ते किस तरह के हैं। इस संबंध में जारी साझा बयान कहता है, 'दोनों पक्ष तकनीकी हस्तांतरण और साझा उद्यमों की स्थापना के जरिये विभिन्न कल-पुर्जों, उपकरणों, रक्षा निर्माण और दूसरे उत्पादों के मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही रूसी कंपनियों के हथियारों और रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिए सहमत हुए हैं।'
इस दौरान जो दूसरा सबसे बड़ा फैसला लिया गया, वह है तकनीकी हस्तांतरण समझौते के जरिये भारत में एके-203 राइफलों के उत्पादन पर बनी सहमति। इस समझौते के तहत भारत अमेठी स्थित आयुध निर्माण फैक्टरी में छह लाख राइफल तैयार करेगा। इस समझौते पर दोनों देशों के बीच लंबे समय से बातचीत चल रही थी। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी हस्तांतरण न केवल दुर्लभ है, बल्कि यह तभी संभव है, जब दो देशों के बीच गहरी समझदारी हो।
शिखर बैठक में हालांकि सैन्यतंत्र सहयोग और साझा आदान-प्रदान समझौते पर सहमति नहीं बन पाई, क्योंकि यह कहा गया कि इस विषय पर अंतिम निर्णय लेने से पहले और विचार-विमर्श की आवश्यकता है। गौरतलब है कि अमेरिका और जापान के साथ भारत यह समझौता कर चुका है। इस समझौते से जरूरत के समय दूसरे देशों के सुरक्षा बलों की मदद की जा सकती है। रूस के साथ यह समझौता हो जाने पर जहां भारत आर्कटिक क्षेत्र में रूसी सैन्य बेस का लाभ उठा सकेगा, वहीं रूस भारतीय सैन्य बेसों का लाभ उठाते हुए हिंद महासागर में अपने सैन्य अभियान संचालित कर सकेगा। बैठक में सैन्य तकनीकी सहयोग समझौते को और दस साल बढ़ाने पर सहमति बनी।
भारत और रूस एक दूसरे की धरती पर साझा सैन्य अभियानों का संचालन करते हैं। भारत ने सभी रूसी सैन्य अभियानों में भाग तो लिया ही है, इसने द्वितीय विश्वयुद्ध में मारे गए सैनिकों के सम्मान में मास्को में आयोजित सम्मेलन में भी हिस्सेदारी की थी। इस मुद्दे पर पुतिन का कहना था, 'हम भारत और रूस, दोनों ही देशों में साझा सैन्याभ्यास का आयोजन करते रहे हैं। इस मामले में भारत की प्रशंसा करनी चाहिए, जिसे इस मामले की गहरी समझ है। हम इस विषय पर आगे भी लगातार काम करना चाहते हैं।'
ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि दोनों ही देशों ने अफगानिस्तान, दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा के मुद्दे पर विस्तार से विमर्श किया। बैठक में भारत ने जहां चीन से आने वाले खतरों के प्रति रूस का ध्यान आकर्षित कराया, वहीं रूस ने यूक्रेन और पोलैंड-बेलारूस पर अपने रुख के बारे में बताया। इसी कारण रूस को पश्चिमी देशों के खिलाफ खड़ा होना पड़ा है। शिखर बैठक में यह बात स्पष्ट होकर सामने आई कि दोनों देश वैश्विक मुद्दों पर एक दूसरे का समर्थन पाने के आकांक्षी हैं।
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