शांति का पक्षधर भारत

यूक्रेन संकट को लेकर यद्यपि समूची दुनिया दो खेमों में बंट चुकी है लेकिन भारत ने दो टूक और दृढ़ता से फैसला लेते हुए जो तटस्थ रुख अपनाया है उसके लिए नरेन्द्र मोदी सरकार की सराहना करनी ही पड़ेगी।

Update: 2022-04-09 06:00 GMT

आदित्य चोपड़ा: यूक्रेन संकट को लेकर यद्यपि समूची दुनिया दो खेमों में बंट चुकी है लेकिन भारत ने दो टूक और दृढ़ता से फैसला लेते हुए जो तटस्थ रुख अपनाया है उसके लिए नरेन्द्र मोदी सरकार की सराहना करनी ही पड़ेगी। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था से मतदान के जरिये रूस को निलम्बित कर दिया गया है और उसे युद्ध अपराधी करार दिए जाने के हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं। रूस दूसरा ऐसा देश है जिसकी यूएनएचआरसी की सदस्यता छीन ली गई है। इससे पहले महासभा ने 2011 में लीबिया को निलम्बित किया था। लीबिया के खिलाफ कार्यवाही की गई थी तत्कालीन राष्ट्र अध्यक्ष कर्नल गद्दाफी ने अपने विरोधियों की निर्मम हत्याएं कर दी थीं। भारत के लिए मानवाधिकार परिषद में इस बार चुनौती काफी बड़ी थी। एक तरफ अमेरिका और यूरोपीय देशाें का दबाव था तो दूसरी तरफ रूसी दबाव भी काफी था। रूसी राजनयिक ने भारतीय कूटनीतिज्ञों से सम्पर्क कर रूस के समर्थन में वोट करने के लिए भी दबाव बनाया था। रूस का कहना था कि प्रस्ताव पर येस वोट का मतलब वो अमेरिका का समर्थन माना जाएगा। परन्तु अनुपस्थित रहने को लेकर भी रूस इसे दोस्ताना रवैया नहीं मानेगा। अमेरिका भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से धमकियां दे रहा था और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार ने यहां तक कह ​डाला था कि अगर भारत ने रूस के साथ रणनीतिक गठजोड़ किया तो उसे भारी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत ने किसी दबाव के आगे नहीं झुकते हुए मतदान से अनुपस्थित रहना ही बेहतर समझा। इस तरह मोदी सरकार ने पूरी दुनिया को दो टूक संदेश दे दिया कि भारत किसी के दबाव में नहीं आने वाला। भारत समेत 58 देश मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे हैं। रूस से पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने यूक्रेन के बूचा में आम नागरिकों की जघन्य हत्याओं की निंदा की थी। भारतसरकार ने इससे पहले अपने किसी बयान में रूस की निंदा नहीं की थी। श्री तिरूमूर्ति का बयान भारत की यूक्रेन युद्ध पर आई अब तक की सबसे कड़ी प्रतिक्रिया माना गया और यूरोपीय कूटनीतिज्ञों ने इसे रूस-यूक्रेन युद्ध पर बदलाव के संकेत के रूप में देखा। ऐसा वातावरण सृजन करने का प्रयास किया गया कि भारत मानवाधिकार परिषद में रूस के खिलाफ मतदान करने वाला है लेकिन भारत ने इसके अलावा भी कुछ कहा है जो काफी महत्वपूर्ण है। भारत का कहना है कि वह युद्ध के खिलाफ है और लोगों का खून बहाकर और मासूमों की जान की कीमत पर कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता। आज के समय में संवाद और कूटनीति ही किसी भी विवाद ​ का सही जवाब है। भारत ने यह भी कहा था कि वह बूचा नरसंहार मामले में स्वतंत्र जांच की मांग करता है। भारत ने यह मांग इसलिए भी उठाई है क्योंकि जहां तक अमेरिका और उसके मित्र देशों का सवाल है उन्होंने एक तरफा फैसला कर लिया है कि रूस इसके लिए जिम्मेदार है। भारत ने एक तरह से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह भी स्पष्ट कर दिया है कि किसी एक देश के खिलाफ मोर्चाबंदी करना ठीक नहीं है और उकसाने वाली कार्यवाहियों से कोई फायदा या हल नहीं निकलने वाला। रूस भी इस मुद्दे पर अपना पक्ष रख रहा है और उसका कहना है कि जब वह बूचा को खुद खाली करके जा रहे थे तो वह लोगों की निर्मम हत्याएं क्यों करेगा। अगर भारत के बयान को देखा जाए तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसके रुख में कोई बड़ा बदलाव आया है। भारत हमेशा क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुत्ता का सम्मान करता है और वह वार्ता से ही समस्या का हल चाहता है। भारत ने केवल शांति का पक्ष चुना है और वह चाहता है कि हिंसा को तत्काल खत्म करने के पक्ष में है। संपादकीय :बेइमान इमरान और पाकिस्तान 'कोरोना की चौथी लहरअल-कायदा और 'हिजाब-विवाद'भारत का मानवीय पक्षभावनात्मक मुद्दों पर ​निकल आई सियासी तलवारेंवरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की हैदराबाद शाखा का हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन संपन्नजहां तक भारत-रूस संबंधों का इतिहास है वह हमारा सच्चा और परखा हुआ मित्र है। इस दोस्ती की नींव 21 दिसम्बर, 1947 को पड़ी थी। भारत को आजादी मिले चार महीने ही गुजरे थे लेकिन भारत को उसका असली दोस्त अब तक नहीं मिला था। तब एक रूसी पति-पत्नी दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरे थे। उनका नाम था किरील नोवीकोव। उन्होंने ही भारत और रूस के अट्टू रिश्तों की नींव रखी थी। दुनिया में कई बार उथल-पुथल मची पर भारत और रूस के रिश्ते नहीं बदले। भारत और रूस के सामरिक संबंध ​दीर्घकालिक हैं और अमेरिका किसी भी हालत में रूस का विकल्प नहीं हो सकता। 1971 के युद्ध का घटनाक्रम सबको याद है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और रूस के कदावर विदेश मंत्री ने आपस में हाथ मिलाया था और रक्षा संधि की थी। इसके बाद तो रूस भारत के लिए आधी दुनिया से टकरा गया था। जब पाकिस्तान ने दो मोर्चों पर युद्ध छेड़ा तो अमेरिका ने भारत को खलनायक कहना शुरू कर ​दिया तब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की, इंडोनेशिया, चीन और आधी दुनिया ने पाकिस्तान का समर्थन करना शुरू कर ​दिया लेकिन रूस ने अपना जंगी बेड़ा भेजकर समुद्री रास्ता रोक कर अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों के युद्ध पोतों को भारत पर हमला करने से रोक दिया। रूस आज भी अमेरिकी धम​कियों की परवाह न करते हुए रूस-400 जैसा सुरक्षा कवच और अन्य सैन्य उपकरण भारत को उपलब्ध करा रहा है। अमेरिका चाहता है ​कि भारत रूस को दरकिनार कर केवल अमेरिका पर निर्भर हो जाए। यह किसी भी हालत में सम्भव नहीं हो सकता। भारत आज स्वयं रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है। अब भारत 300 से ज्यादा सैन्य उत्पाद अपने देश में ही निर्मित करने में जुटा है। दूसरी तरफ चीन के साथ सीमा विवाद के चलते यह भारत के लिए जरूरी भी हो जाता है कि रूस चीन के ज्यादा करीब नहीं जाए। भारत अपने हितो को समझता है। ब्रह्मोस से लेकर अंतरिक्ष समेत सबमरीन आदि तमाम मुद्दों पर रूस के साथ हमारे गहरे संबंध हैं। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि हमारे और रूस के ​रिश्ते बेहद खुले हैं। 

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