प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार यूरोपीय संघ प्लस 27 के प्रारूप में नेताओं के साथ बैठक की है। यह भारत और यूरोपीय संघ के बीच मजबूत राजनीतिक इच्छा को रेखांकित करता है। इस बैठक के साथ ही करीब आठ साल बाद भारत और यूरोपीय संघ के बीच एफटीए पर बातचीत शुरू हुई है। बैठक के दौरान इस पर भी सहमति व्यक्त की गई कि दुनिया के बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत और यूरोपीय संघ का बहुध्रुवीय विश्व में सुरक्षा, समृद्धि और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने में साझा हित है। दोनों पक्षों ने इस दिशा में हुई प्रगति को और आगे बढ़ाने तथा टिकाऊ विकास एवं पेरिस समझौता 2030 के एजेंडे पर सुरक्षित, हरित, अधिक डिजिटल एवं स्थिर विश्व की दिशा में संयुक्त रूप से योगदान देने पर भी सहमति व्यक्त की।
यूरोपीय संघ, भारत के लिए सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण समूह है। यह भारत का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी भी है। यूरोपीय संघ के साथ भारत का द्विपक्षीय कारोबार वर्ष 2018-19 में 115.6 अरब डॉलर का था, जिसमें निर्यात 57.17 अरब डॉलर तथा आयात 58.42 अरब डॉलर का रहा। कारोबार के अलावा भी दोनों के संबंध व्यापक और एक विस्तृत साझेदारी पर आधारित है। शिखर बैठक से पहले ही भारत और यूरोपीय संघ के बीच सिविल न्यूक्लियर कॉपरेशन संधि पर हस्ताक्षर हुआ। यह संधि नाभिकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के नए तरीकों पर भारत और यूरोपीय संघ के देशों में हो रहे शोध में सहयोग पर केंद्रित है। इसके अलावा दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक और सामरिक मुद्दों, व्यापार, निवेश और अन्य आर्थिक मामलों पर सहयोग की समीक्षा करने पर भी सहमति बनी। इस बैठक के दौरान पहली बार यूरोपीय संघ के नेता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक साथ मिले जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ की बढ़ती रूचि का एक संकेत भी है।
भारत के साथ यूरोपीय संघ की शिखर स्तरीय बातचीत की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई थी और इस बार इसका 20वां वर्ष है। दोनों पक्षों ने प्रति वर्ष मिलने और सहयोग की समीक्षा करने का फैसला लिया था, लेकिन विगत कुछ वर्षों में इस पर अमल नहीं हो पाया। पिछली शिखर बैठक 2017 में हुई थी। भारत और यूरोपीय संघ के बीच 31 विषयों पर एक डायलॉग मैकेनिज्म स्थापित किया गया है। इसमें व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा, विज्ञान और शोध, परमाणु प्रसार निरोध और निशस्त्रीकरण, आतंकवाद का मुकाबला, साइबर सुरक्षा, समुद्री डाकुओं का मुकाबला, प्रवासन इत्यादि से जुड़े हैं। भारत के साथ यूरोपीय संघ के रिश्ते अंतरराष्ट्रीय सामरिक घटनाओं से भी प्रभावित होते रहे हैं। वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके सैन्य शक्तियों के प्रसार ने यूरोप और उसके सहयोगियों की चिंताएं बढ़ाई हैं। इस लिहाज से भी देखा जाय तो भारत और यूरोपीय संघ के सुरक्षा, समृद्धि और स्थिर विकास में साझा हित हैं।
यही कारण है कि यूरोपीय संघ में भारत की भूमिका बढ़ती नजर आ रही है। इस दृष्टिकोण से यह बैठक न केवल द्विपक्षीय व्यापार के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि कोविड महामारी के वैश्विक अर्थव्यवस्था के नुकसान के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। बैठक के दौरान जिस प्रकार मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता करीब आठ वर्षों के बाद शुरू हुई है, इससे काफी सकारात्मक संकेत मिलता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि आने वाले समय में इन हालात के बावजूद भारत में विकास दर सकारात्मक रहेगी और अगर यूरोपीय संघ इस पर ध्यान दे तो वो भारत में और निवेश करना चाहेगा। दूसरी तरफ चीन के साथ भारत के रिश्ते बिगड़ने के बाद यह चिंता वैश्विक स्तर पर बनी है कि भारत के साथ विश्व की किन शक्तियों के सामरिक संबंध अच्छे बनेंगे। हालांकि इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि यूरोपीय संघ देशों के चीन में कई प्रकार के हित हैं और कई यूरोपीय कंपनियों के भारी मात्रा में निवेश भी चीन में हैं जिसकी वजह से यूरोपीय संघ चीन को उस तरह चुनौती नहीं दे सकता जिस तरह अभी अमेरिका दे रहा है, किंतु यह भी सत्य है कि यूरोपीय संघ के देश चीन के प्रति अपनी नीति बदलने पर विचार कर रहे हैं
महत्वपूर्ण यह भी है कि बदले भारतीय आर्थिक परिदृश्य और वैश्विक उथल-पुथल के माहौल में यूरोपीय संघ और भारत के बीच संबंधों का यह अहम पड़ाव है। अब तक आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र के विकास में दोनों के द्विपक्षीय सहयोग अत्यंत लाभकारी रहे हैं। जाहिर है इसे सही दिशा देते हुए और बढ़ाया जाए। दोनों को अपने पूर्व की नीतियों और घोषणाओं को लागू करते हुए द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने के लिए व्यापक नीतियां बनानी होंगी। दोनों का भविष्य इस बात पर टिका है कि वे न केवल अपने मूल्य वरन अपने हित भी साझा करें। साथ ही, यूरोपीय संघ को भी अपने हितों को खुले तौर पर प्रकट करना चाहिए, ताकि जटिल वैश्विक सामरिक व्यवस्था के दौर में आर्थिक विकास का साझा लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।
[लोकनीति विश्लेषक]