स्वतंत्र विदेश नीति

इसे भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का कमाल कहिए या मौजूदा अंतरराष्ट्रीय समीकरणों की जटिलता कि रूस में गुरुवार से शुरू हुए युद्धाभ्यास में अन्य देशों के अलावा भारत और चीन के सैनिक भी शामिल हैं।

Update: 2022-09-02 03:21 GMT

नवभारत टाइम्स; इसे भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का कमाल कहिए या मौजूदा अंतरराष्ट्रीय समीकरणों की जटिलता कि रूस में गुरुवार से शुरू हुए युद्धाभ्यास में अन्य देशों के अलावा भारत और चीन के सैनिक भी शामिल हैं। चीन के साथ पूर्वी लद्दाख सीमा का मसला सुलझना तो दूर, अभी उसे सुलझाने को लेकर कोई समझ भी दोनों देशों में नहीं बनी है। उधर, यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका सहित तमाम यूरोपीय देशों की रूस से नाराजगी जगजाहिर है। अमेरिका ने सीधे तौर पर कोई आपत्ति भले न की हो, लेकिन परोक्ष रूप से अपनी नाखुशी जाहिर कर दी है। उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस बारे में सवाल पूछे जाने पर कहा कि यूक्रेन युद्ध के जारी रहते हुए अगर कोई भी देश रूस के साथ सैन्य अभ्यास में शामिल होता है तो अमेरिका के लिए चिंता की बात होगी। मगर छुईमुई बने रहते हुए स्वतंत्र विदेश नीति कायम नहीं रखी जा सकती। भारत ने हमेशा सबकी चिंताओं का सम्मान करते हुए अपने हितों के अनुरूप फैसले करने की नीति अख्तियार की है। यूक्रेन युद्ध के बाद की कठिन स्थितियों में भी उसने संतुलन बनाए रखा है। अमेरिका से अपने रिश्तों को प्राथमिकता देते हुए और यूक्रेन में यथाशीघ्र शांति स्थापना को लेकर अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखते हुए भी भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों पर आंच नहीं आने दी।

रूस से हुए हथियार सौदों पर तो उसने अमल किया ही, उससे तेल लेने के सवाल पर भी किसी तरह का दबाव स्वीकार नहीं किया। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि उसने पश्चिम के अपने मित्र देशों की भावनाओं का खयाल नहीं रखा। रूस में हो रहे इस युद्धाभ्यास को ही लें तो भारत ने इसे पूरी तरह से लो-प्रोफाइल मामला बनाए रखा। यहां तक कि विदेश मंत्रालय की तरफ से इसे लेकर कोई औपचारिक बयान भी नहीं जारी किया गया। दूसरी बात यह कि अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग का अजेंडा भी किसी रूप में पीछे नहीं पड़ने दिया गया है। अगले ही महीने यानी अक्टूबर के मध्य में अमेरिका और भारत का एक संयुक्त सैन्य युद्धाभ्यास होना है जिसकी लोकेशन भारत-चीन की विवादित सीमा से 100 किलोमीटर अंदर ही रहने की बात है। फिर भी रूस में हो रहे इस युद्धाभ्यास में भारत की शिरकत को सिर्फ रूस और अमेरिकी संदर्भों में देखना उपयुक्त नहीं होगा। इस मामले का एक अहम पहलू चीन और रूस के बीच कथित तौर पर बढ़ती करीबी भी है। यूक्रेन युद्ध के लंबा खिंचते जाने का एक परिणाम यह भी हुआ है कि रूस की साख पर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि इस युद्ध और इसके कारण लगी पाबंदियों के चलते रूस कमजोर और धीरे-धीरे चीन पर निर्भर होता जा रहा है। यह धारणा सही हो या न हो, भारत और रूस के करीबी रिश्तों की गरमाहट का अहसास बने रहना न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि बाकी पूरी दुनिया के दीर्घकालिक हितों के लिए भी जरूरी है।


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