जल प्रदूषण से बढ़ता खतरा

देश की एक बड़ी आबादी के पास शुद्ध पानी की व्यवस्था नहीं है, न ही जल को स्वच्छ बनाने की तकनीक तक उनकी पहुंच है। ऐसे में जाने-अनजाने लोग अपनी सेहत का नुकसान कर रहे हैं। टिकाऊ विकास का 6.1 लक्ष्य भी सुरक्षित और किफायती पेयजल के लिए सार्वभौम और समान पहुंच पर जोर देता है।

Update: 2022-09-06 04:08 GMT

सुधीर कुमार; देश की एक बड़ी आबादी के पास शुद्ध पानी की व्यवस्था नहीं है, न ही जल को स्वच्छ बनाने की तकनीक तक उनकी पहुंच है। ऐसे में जाने-अनजाने लोग अपनी सेहत का नुकसान कर रहे हैं। टिकाऊ विकास का 6.1 लक्ष्य भी सुरक्षित और किफायती पेयजल के लिए सार्वभौम और समान पहुंच पर जोर देता है। यह तभी संभव है, जब जल संरक्षण और संचयन एक बुनियादी कर्त्तव्य बन जाए और लोग पानी की बूंद-बूंद की कीमत समझने लगें।

औद्योगीकरण, शहरीकरण, बढ़ती आबादी और बदलती जलवायु के समांतर स्वच्छ पानी की कमी भी एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। दिनोंदिन सूखते और दूषित होते जलस्रोतों ने मानवता को कई रूपों में प्रभावित किया है। इसका प्रतिकूल प्रभाव लोगों की सेहत के साथ-साथ पर्यावरण और आर्थिकी पर भी पड़ा है। आंकड़े बताते हैं कि हर साल असुरक्षित पानी लगभग एक अरब लोगों को बीमार करता है।

यूनेस्को की विश्व जल विकास रिपोर्ट-2022 बताती है कि दुनिया की लगभग आधी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जहां साल में कम से कम एक महीना जल का गंभीर संकट बना रहता है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में भूजल का सबसे अधिक उपयोग करने वाला देश है। दरअसल, सिकुड़ते जलस्रोत और बढ़ते जल प्रदूषण के कारण भूमिगत जल बड़ी तेजी से दूषित होता जा रहा है। दूषित जल पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता के घटने, जीवन प्रत्याशा में कमी आने और असमय मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है।

इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा यानी तकरीबन दो अरब लोग दूषित जल पीने को विवश हैं। इसके खतरे के बारे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दूषित जल का लगातार सेवन करने से दर्जनों बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। दूषित पेयजल पीने को अभिशप्त आबादी को हैजा, टाइफायड, डायरिया, कुपोषण, कैंसर, बाल और पेट संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

चूंकि जल एक सार्वभौमिक विलायक है, इसलिए यह आसानी से प्रदूषित हो जाता है। जल में मुख्यत: आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट, औद्योगिक तथा कृषि अपशिष्ट, माइक्रोप्लास्टिक, चिकित्सीय कचरा आदि संदूषक मिले होते हैं। तांबा, शीशा, क्रोमियम और रेडियोधर्मी तत्त्व आदि भी जलस्रोतों के संपर्क में आने पर जल को दूषित कर जानलेवा बना देते हैं। इसके अलावा अशोधित पानी में जीवाणु, विषाणु और परजीवी जैसे जैव-संदूषक भी होते हैं। पानी में विद्यमान रसायन, धातु और सूक्ष्म जीव विभिन्न प्रकार से खतरा उत्पन्न करते हैं।

इंटरनेशनल एजेंसी फार रिसर्च आन कैंसर ने आर्सेनिक को फेफड़े, मूत्राशय, दिल, त्वचा और गुर्दे के कैंसर का कारण चिह्नित किया है। इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन का दिशानिर्देश है कि पीने के पानी में आर्सेनिक की मात्रा दस माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। मगर विडंबना है कि दुनिया भर में चौदह करोड़ लोग पीने के पानी में आर्सेनिक के उच्च स्तर का सेवन करते हैं।

इसके अलावा सीसा भी एक जहरीला प्रदूषक है, जो जल को दूषित करता है। विश्व स्वास्थ संगठन का अनुमान है कि विश्व स्तर पर दो अरब से अधिक लोग सीसा-दूषित पानी पीते हैं। क्रोमियम भी एक ऐसा ही तत्व है, जो पानी को दूषित और जहरीला बना देता है। जब पानी में क्रोमियम की मात्रा प्रति लीटर पच्चीस माइक्रोग्राम से अधिक होती है, तो वह जल विषैला हो जाता है। क्रोमियम मिश्रित जल के सेवन से शरीर में चकत्ते पड़ना, गुर्दा और यकृत की विषाक्तता, कैंसर, शुक्राणु क्षति और एनीमिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े, जिनका आकार पांच माइक्रोमीटर से भी कम होता है, वे भी अदृश्य होने के कारण पेयजल या बोतलबंद पानी के जरिए मानव शरीर में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं और प्रजनन, प्रतिरक्षा व्यवधान, मोटापा और पेट संबंधी समस्याओं को जन्म देते हैं। इसी तरह नाइट्रेट का आम स्रोत औद्योगिक उर्वरक है। पीने के पानी में नाइट्रेट की मात्रा प्रति लीटर दस मिलीग्राम से अधिक होने पर स्वास्थ्य मुश्किल में पड़ जाता है। नाइट्रेट प्रदूषित जल के सेवन से कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

प्रदूषक, जल में इतनी सूक्ष्मता से घुले होते हैं कि ये नंगी आंखों से नजर नहीं आते हैं। पानी में ठोस धातुओं का पता टीडीएस (कुल घुलित ठोस) से लगाया जाता है। इसे पानी में घुले हुए अशुद्ध कणों की मात्रा के रूप में देखा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार पांच सौ टीडीएस तक का पानी पीने योग्य होता है, लेकिन इससे ऊपर का पानी छाने बगैर पीने से सेहत को बड़ा नुकसान होता है। हालांकि जागरूकता के और स्वच्छ जल स्रोतों के अभाव में एक बड़ी आबादी दूषित पेयजल पीने को लाचार है। गरीबी और जानकारी के अभाव में जो लोग इस परिस्थिति का सामना नहीं कर पाते, वे असमय काल-कलवित हो जाते हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश में साढ़े तीन सौ से अधिक नदियां प्रदूषण से कराह रही हैं। साल भर प्रदूषकों से लबालब भरी होने के कारण कई नदियों का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होने के कगार है, जिससे उनके ऊपर जैविक रूप से मृत होने का खतरा बना हुआ है। इस संदर्भ में लंदन की मशहूर टेम्स नदी को याद किया जा सकता है, जिसे 1957 में जैविक रूप से मृत घोषित कर दिया गया था। मगर छह दशक की लंबी जद्दोजहद के बाद इसे पिछले साल प्रदूषण-मुक्त करने में कामयाबी मिली।

टेम्स के जैविक रूप से मृत होने और फिर जीवित होने की घटना वैश्विक समुदाय के लिए एक बड़ी सीख इसलिए है, क्योंकि जल प्रदूषण पर नियंत्रण न करने से विविध दुष्प्रभाव झेलने पड़ते हैं। मसलन, प्रदूषण के कारण जल में आक्सीजन की मात्रा में कमी आती है, जिससे जलीय जीवों का जीवन कष्टमय हो जाता है। वहीं प्रदूषित पानी से सिंचाई करने पर अनाजों, फलों और सब्जियों में दूषित पदार्थों की सांद्रता उच्च हो जाती है, जो बीमारियों और मौत को आमंत्रण देते हैं।

दूसरी तरफ, जल प्रदूषण आर्थिकी को भी प्रभावित करता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में पानी की गुणवत्ता में गिरावट भारी प्रदूषित क्षेत्रों में संभावित आर्थिक विकास के एक तिहाई हिस्से को कम कर देती है। स्वच्छ जल आर्थिक विकास में महती भूमिका निभाता है। इसकी सुलभता जहां नागरिकों को जल जनित बीमारियों से बचा कर उनकी कार्य-क्षमता बढ़ाती है और आर्थिक बचत में भी सहायक होती है, वहीं पानी को स्वच्छ करने और प्रदूषित जल निकायों को साफ करने के तंत्र पर हर साल अरबों रुपए खर्च हो जाते हैं।

प्रदूषित जल निकायों में पर्यटन गतिविधियां प्रभावित होती हैं, जिससे हर साल इस उद्योग को एक अरब डालर का नुकसान होता है। जल प्रदूषण के कारण लोगों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है, जिससे वे परिपक्व मानव संसाधन के रूप में विकसित नहीं हो पाते हैं। इस तरह जल प्रदूषण राष्ट्रीय आय पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

सच तो यह है कि देश की एक बड़ी आबादी के पास शुद्ध पानी की व्यवस्था नहीं है, न ही जल को स्वच्छ बनाने की तकनीक तक उनकी पहुंच है। ऐसे में जाने-अनजाने लोग अपनी सेहत का नुकसान कर रहे हैं। टिकाऊ विकास का 6.1 लक्ष्य भी सुरक्षित और किफायती पेयजल के लिए सार्वभौम और समान पहुंच पर जोर देता है। यों तो 2030 तक लक्षित टिकाऊ विकास लक्ष्यों को साकार करने का एक महत्त्वपूर्ण व्यावहारिक पक्ष स्वच्छ पेयजल की सर्वसुलभता से जुड़ा है।

हालांकि यह तभी संभव है, जब जल संरक्षण और संचयन एक बुनियादी कर्त्तव्य बन जाए और लोग पानी की बूंद-बूंद की कीमत समझने लगें। धरती का तीन चौथाई हिस्सा जल होने के बावजूद इसका केवल एक प्रतिशत हिस्सा हमारी पहुंच में है। अत: जल संरक्षण पर गंभीरता दिखानी होगी। साथ ही, जलस्रोतों को प्रदूषित करने की आदत पर भी नियंत्रण करना होगा।


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