मायाजाल में मनुष्य बाहर से भ्रमित होने के साथ-साथ भीतर से भी भयभीत हो जाता है ऐसे में अनुशासित जीवनशैली बहुत बड़ा सहारा
यह भी एक सच है कि मौत आने से पहले इंसान को जिंदगी भी कई बार मार देती है
पं. विजयशंकर मेहता । यह भी एक सच है कि मौत आने से पहले इंसान को जिंदगी भी कई बार मार देती है। मेरी जिंदगी का सिलसिला प्रवचन है। इन दिनों हमारा नैनो कथाओं का दौर शुरू हो गया है, लेकिन भीड़ का भय अभी भी बना हुआ है। पिछले दिनों प्रवचन के दौरान जब मैंने लोगों से मास्क पहने रहने का आग्रह किया तो एक समझदार प्रतिष्ठित सज्जन ने हमें ही प्रवचन दे दिए। पूरे आत्मविश्वास से उनका दु:साहस पूर्ण कथन था- पंडितजी, भूल जाओ कोरोना को। वे यहीं नहीं रुके। बोले- अब जो होगा, देखा जाएगा। उनके चेहरे पर एक रहस्यभरी मुस्कान थी कि मैंने एक पंडित को मंत्र दे दिया।
दरअसल अब देश के अधिकांश लोगों की यही सोच बन गई है। एक समय कोरोना का मुकाबला स्वास्थ्य से था। अब महामारी और आयोजन आमने-सामने हैं। राजनीति, खेल, कला जगत, मांगलिक समारोहों में सब खुलकर दो-दो हाथ करने को तैयार हो गए हैं। कुछ राज्यों में इस मामले में राजनीति और कूटनीति एक साथ चल रही है। कभी दृश्य भयावह हो जाता है तो कभी राहतभरा। सच क्या है, कोई नहीं जान पाता। ऋषि-मुनियों ने इसे इंद्रजाल नहीं, मायाजाल कहा है। इंद्रजाल में मनुष्य बाहर से भ्रमित होता है, लेकिन मायाजाल में वह बाहर से तो भ्रमित होता ही है, भीतर से भयभीत भी हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है जब ऐसा माहौल हो तो निजी अनुशासित जीवनशैली बहुत बड़ा सहारा होगी।