भारतीय परिवारों में मर्द का दर्जा भगवान से भी ऊंचा, इसलिए उनको बर्दाश्त नहीं होती है लड़की की 'ना'
ये सच्ची कहानी है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कहानी फिर वही है, बस पात्रों के नाम बदल गए हैं. एक लड़का है और एक लड़की. लड़का लड़की से एकतरफा प्यार करता है, लड़की नहीं करती. लड़का अपने प्यार का इजहार करता है, लड़की इनकार कर देती है. लड़के को इनकार बर्दाश्त नहीं. वो चाकू से लड़की की गर्दन काट देता है.
इस बार ये घटना हुई है तमिलनाडु के तंजावुर जिले में. 24 साल का अजीत 20 साल की आशा से प्यार करता था. लंबे समय से आशा के पीछे पड़ा हुआ था कि वो उससे शादी कर ले. आशा इनकार कर रही थी. 15 दिसंबर की सुबह जब आशा बस से कॉलेज जा रही थी, अजीत बस में चढ़ गया और आशा के साथ जबर्दस्ती करने लगा. फिर पुरानी बात कि मुझसे शादी कर लो. आशा ने फिर इनकार किया. जबर्दस्ती पकड़ा हुआ अपना हाथ छुड़ाना चाहा तो अजीत को गुस्सा आ गया. उसने अपनी जेब में से चाकू निकाला और आशा की गर्दन पर ताबड़तोड़ कई बार वार किया.
आशा खून से लथपथ वहीं गिर पड़ी. अजीत से चलती बस से कूदना चाहा, लेकिन तब तक लोग उसे पकड़ चुके थे. अब आशा अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रही है और अजीत पुलिस हिरासत में है.
उसकी प्रेम कहानी का ऐसा दर्दनाक अंत हुआ है. खुद उसकी कहानी में इसके बाद कोई बहुत सुखद नहीं होने वाली.
ऐसी किसी घटना की स्मृति अभी हमारे जेहन से उतरी भी नहीं होती कि एक और कहानी सामने आ जाती है. अभी डेढ़ महीने पहले की ही तो बात है. हरियाणा के वल्लभगढ़ में 21 साल की निकिता तोमर बी. कॉम फाइनल ईयर की छात्रा थी. सोमवार, 28 अक्तूबर को वाे कॉलेज से परीक्षा देकर बाहर निकल रही थी कि एक लड़के ने उसे गोली मार दी.
लड़का निकिता के एकतरफा प्यार में था. निकिता ने उसका प्रेम प्रस्ताव ठुकराया और उसे जान से हाथ धोना पड़ा.
जुलाई, 2013 में देश की नामी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में ऐसा ही एक दर्दनाक हादसा हुआ था. रोशनी और आकाश वहां के स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज में कोरियन भाषा के स्टूडेंट थे. दोनों बीए थर्ड ईयर में पढ़ते थे. दोनों अच्छे दोस्त थे. फिर अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि आकाश ने क्लासरूम में घुसकर रौशनी की गर्दन पर कुल्हाड़ी मार दी. चाकू से उसकी पीठ पर भी कई बार वार किया. उसके बाद खुद भी जहर खाकर जान दे दी.
दरअसल कहानी ये थी कि दोनों दोस्त तो थे, लेकिन उनके बीच अफेयर नहीं था. आकाश इस दोस्ती को प्यार समझ रहा था, जबकि रौशनी के लिए ये सिर्फ दोस्ती ही थी. ग्रेजुएशन के तीसरे साल में जब आकाश ने रौशनी को प्रपोज किया तो उसने इनकार कर दिया. ये इनकार ही था, जो लड़के को बिलकुल बर्दाश्त नहीं हुआ. लड़की ना कैसे बोल सकती है. लड़की की ना से बौखलाए लड़के ने भरी क्लास में घुसकर लड़की को कुल्हाड़ी मार दी.
इसी साल मार्च में ऐसी ही एक और घटना में एक 26 साल के आदमी ने एक 13 साल की लड़की का सरेआम गला काट दिया था क्योंकि वो उससे शादी करना चाहता था और लड़की ने इनकार कर दिया था. घटना चेन्नै के अमीनजीकराई की थी.
अगर ये पढ़कर आपको लग रहा है कि ये देश के अलग-अलग हिस्सों में घटी कुछ चंद घटनाएं हैं तो गूगल पर सर्च करिए, 'एकतरफा प्रेम में हत्या' या 'मर्डर इन वन साइडेड अफेयर.' इतने पन्ने खुलेंगे कि उन सबको पढ़ने में आपको 2 लाख, 9 हजार मिनट लगेंगे. अगर आप बिना रुके 24 घंटे लगातार पढ़ते रहें तो भी 145 दिनों में जाकर वो सारी कहानी खत्म होगी कि जितनी बार आदमी ने औरत को इनकार करने पर जान से मार डाला.
हमारे आसपास रोज जो रहा है, ना सुनने में अक्षम लड़के लड़कियों को कहीं चाकू, तो कहीं गोली मार रहे हैं, कहीं एसिड से उनका मुंह जला दे रहे हैं, उस भयावहता की हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं. हिंदुस्तान के छोटे शहरों और कस्बों के अखबार रोज जिस तरह की हेडलाइन से भरे हुए हैं- एकतरफा प्यार में लड़के न की लड़की की हत्या.
एनसीआरबी के आंकड़े में इन तथ्यों को खोजना चाहे तो और भी डरावनी तस्वीर नजर आती है. 2017 का एनसीआरबी का डाटा पहले तो बताता है कि देश में होने वाली हत्याओं की संख्या में 21 फीसदी की कमी आई है. 2001 में जहां हत्या के 32,202 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 20017 में यह संख्या घटकर 28, 653 रह गई. फिर डेटा बतात है कि प्रॉपर्टी विवाद में हत्या, आपसी रंजिश में हत्या की घटनाओं में भारी कमी आई है. लेकिन प्यार और रिश्तों में हत्या के मामलों में 28 फीसदी का इजाफा हुआ है.
इसमें ऑनर किलिंग का आंकड़ा शामिल नहीं है क्योंकि वो भी एक तरह से प्यार में की गई हत्या ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि यहां मारने वाले प्रेमी की जगह खुद मां-बाप होते हैं. लड़कियों की मौत तो मानो मक्खी-मच्छर का मरना. प्यार से इनकार करे तो लड़का मार डाले, प्यार कर बैठे तो अपने सगे मां-बाप-भाई.
आखिर इसकी वजह क्या है कि लड़के की एकतरफा मुहब्बत में लड़कियां अपनी जान से हाथ धो रही हैं. वही मर्दों का सैकड़ों साल पुराना निरंकुश शासन. परिवारों का विश्वास कि लड़का राजकुमार है. लड़के की हर बात मानो, लड़के को बेलगाम अधिकार दो. लड़का जो करे सब ठीक. सब लड़के के आदेश का पालन करो. हम सब अपने परिवारोंं में क्या यही देखते हुए बड़े नहीं हुए. मां को पिता का आदेश मानते हुए. दादी तक को पिता के सामने चुप रहते हुए. बुआ के लिए एक हजार नियम, पापा के लिए कोई नियम नहीं.
लड़कों के लिए बचपन से निरंकुश आजादी और लड़कियां तो मानो इंसान ही नहीं. उनकी हां-ना, मर्जी, राजी, खुशी किसी बात का कोई आदर नहीं. भाई जोर से आवाज लगाए तो बहन दौड़ी चली आती है. पिता चिल्लाकर बात करते हैं तो मां डर जाती है.
भारतीय परिवारों में मर्द का दर्जा भगवान से भी ऊंचा है. वह सब सवालों से परे है. उसका कहा अंतिम सत्य है. उसका फैसला आखिरी फैसला. किसी की हिम्मत नहीं कि उस फैसले को उलट दे.
ऐसे भगवान को घर के बाहर भी किसी की ना कैसे बर्दाश्त होगी. जिस लड़के को घर में कभी ना नहीं सुननी पड़ी, बाहर अगर लड़की उसका प्यार ठुकरा दे तो वो सीधे जान ही ले लेता है.
इसलिए सवाल ये नहीं है कि लड़के ऐसे हैं, सवाल ये है कि लड़के ऐसे हुए कैसे? उन्हें ऐसा बनाया किसने? क्यों नहीं हो सकते वो बेहतर मनुष्य जो ना सुन सकें, लड़की के इनकार को स्वीकार कर सकें