बंद दफ्तरों के आगे

हिमाचल में पिछली सरकार के अंतिम चरण के फैसलों को वर्तमान की चुनौती में देखना जितना आवश्यक है,

Update: 2022-12-27 13:15 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वबेडेस्क |  हिमाचल में पिछली सरकार के अंतिम चरण के फैसलों को वर्तमान की चुनौती में देखना जितना आवश्यक है, उतना ही लाजिमी है अर्थ गणित में प्रदेश की प्राथमिकताओं को गतिशील बनाना। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की मानें तो पिछली जयराम सरकार ने तीन हजार करोड़ की होली खेलते हुए, अपने रिवाज बदलने की कोशिश में आर्थिक स्थिति का मुंडन कर दिया। करीब 590 कार्यालयों की फेहरिस्त में अब जवाबदेही ढूंढने का वक्त आया, तो इसे केवल राजनीति के परिप्रेक्ष्य में ही क्यों समझा जाए। यह भी मानना पड़ेगा कि नए संस्थानों की अंधी बारिश के बावजूद न कभी मिशन रिपीट हुआ और न ही इस बार रिवाज बदलने का संकल्प पूरा हुआ। भले ही विपक्ष कार्यालयों के डिनोटिफाइड होने को लेकर राज्यपाल तक पहुंच गया या आने वाले समय में इसको लेकर अदालती मंचन भी करे, लेकिन कहीं तो प्रदेश के लिए हमें सोचना ही पड़ेगा और इस बार यह दायित्व कांग्रेस सरकार का है। बात केवल 590 कार्यालयों के खोलने पर किए गए एतराज तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आगे यह फैसला लेने की दृढ़ता से पता चलेगा कि जनता को असली संदेश है क्या। सरकार को अगर वित्तीय अनुशासन कामयाब करना है, तो आरंभिक तौर पर पिछली सरकार के फैसले पलटना आसान होगा, मगर यह सवाल नीति-निर्देशों की बानगी में भी देखा जाएगा, ताकि पता चले कि सुक्खू सरकार अपने तौर पर कितनी किफायत से प्रदेश को बचा रही है। यह सत्ता के लाभार्थी पदों पर नई नियुक्तियों, कार्यालयों के युक्तिकरण, अनावश्यक कार्यालयों पर कार्रवाई तथा विकास के समन्वय व प्रादेशिक संतुलन से ही सामने आएगा।

प्रदेश में सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को प्रदर्शित करते सरकार के इरादे कार्य संस्कृति को कितना सशक्त करते हैं या सरकारी मशीनरी कितनी अनुशासित हो पाती है, यह देखना होगा। नई सरकार के लिए अपने पांव जमाने और कुछ नया कर दिखाने की भले ही चुनावी शर्तें सबसे पहले सामने आ रही हैं, लेकिन स्थायी तौर पर इंस्टीच्यूट बिल्डिंग तथा संस्थानों व कार्यालयों के दायित्व निर्वहन में गुणवत्ता लाने की सबसे बड़ी चुनौती है। बहरहाल कार्यालयों की डिनोटिफिकेशन के तर्क कई अधूरे संकल्पों, अतार्किक फैसलों तथा राजनीतिक अनैतिकता की ओर इशारा कर रहे हैं। ऐसे में क्या वर्तमान सरकार उन तमाम कार्यालयों, संस्थानों, भवनों, विभागों, निगमों व बोर्डों को भी बंद करेगी, जो निरंतर प्रदेश की आर्थिक स्थिति को ही कमजोर कर रहे हैं। सरकारों के अनावश्यक नखरे तो समारोहों के आयोजन तथा सत्ता की परिपाटियों में भी नजर आते हैं, तो क्या हम समझें कि अब ऐसा कुछ नहीं होगा जो अनावश्यक है। सरकार के कठोर फैसलों का स्वागत करने वालों की एक सूची है और इस लिहाज से, मंतव्य को जाहिर करने की ईमानदारी अगर सामने आती है, तो यह सोने पे सुहागा ही होगा। सरकार अगर एक नई परिपाटी के तहत फैसले लेने का सामथ्र्य रखती है, तो एक बार पिछली तमाम सरकारों के मंतव्य और गंतव्य को भी समझ लेना होगा, क्योंकि अब कई बदलाव आ चुके हैं और भविष्य की चुनौतियां भी सख्त हो रही हैं। सरकार को पिछली भाजपा सरकार की 'डबल इंजन' अवधारणा का जवाब खोजना है और साबित भी करना है कि राज्य अपने बूते स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता, कार्यप्रणाली और अपने आर्थिक अधिकारों की रक्षा कर सकता है। पहली डगर पर सबसे अहम होगा कि सुशासन की परिपाटी में अपने संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल और फिजूल खर्चियों से हटकर भविष्य के रास्ते खोजे जाएं।

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