मानवाधिकारों के पक्ष में
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने पिछले दिनों मानवाधिकारों के पक्ष में एक अहम फैसला दिया।
असम की छह जेलों में बने डिटेंशन सेंटर शुरू से ही विवादों के केंद्र में रहे हैं।
खासकर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) लागू होने के बाद ऐसे सेंटर लगातार सुर्खियों में रहे हैं। इन सेंटरों में कैदियों के अमानवीय हालात और उनकी मौतों की खबरें भी अकसर सुर्खियां बटोरती रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी इस मुद्दे पर गलतबयानी के आरोप लग चुके हैं। उन्होंने बीते साल दिल्ली के रामलीला मैदान की एक रैली में दावा किया था कि असम में एक भी डिटेंशन सेंटर नहीं है। लेकिन हकीकत यह है कि राज्य की छह जेलों – ग्वालपाड़ा, जोरहाट, डिब्रुगढ़, कोकराझाड़, सिलचर और तेजपुर में लंबे अरसे से ऐसे सेंटर चल रहे हैं। न्यायमूर्ति एएमबी बरुआ ने इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में भीम सिंह बनाम भारत सरकार के मामले का हवाला दिया। कहा कि सर्वोच्च अदालत का साफ निर्देश है कि ऐसे कैदियों को वापस नहीं भेजे जाने तक समुचित जगह पर रखा जाना चाहिए और ऐसे सेंटरों में बिजली, पानी और साफ-सफाई समेत तमाम मौलिक सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि इन केंद्रों को जेल परिसरों से बाहर स्थापित किया जाना चाहिए। अगर इसके लिए समुचित जगह उपलब्ध नहीं है और जमीन अधिग्रहण या निर्माण में दिक्कत है तो सरकार को समुचित इमारतों को किराए पर लेना चाहिए।