गूगल का एक हालिया प्रकरण चर्चा में; टेक कंपनियों के विजन पर उठ रहे सवाल, निकालनी होगी राह

टेक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां स्पर्धा के दौर में हैं

Update: 2022-02-04 08:37 GMT
हरिवंश का कॉलम: 
टेक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां स्पर्धा के दौर में हैं। अपरिमित महत्वाकांक्षी इन कंपनियों को 'भविष्य का भय' सता रहा है। टेक्नाेलॉजी इतिहास सामने है कि महाबली कंपनियां, कानूनी कारणों से अतीत नहीं बनीं, बल्कि भविष्य का अवसर चूकने से मिट गईं। 50 के दशक में अमेरिका की 'फेयरचाइल्ड सेमिकंडक्टर' कंपनी की आभा अमर मानी गई। पर अब कंपनियों के इतिहास में नाम ही है। 1983 में आइबीएम अमेरिका की सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी।
आठ वर्ष बाद घाटे की कंपनी बन गई। लोग नोकिया को अब भी नहीं भूले हैं, स्मार्टफोन का अवसर चूकी, परिणाम सामने है। भविष्य वर्चुअल वर्ल्ड का है। इस कारण टेक कंपनियां गूगल, अमेजन, एपल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा नई-नई संभावनाएं तलाश रही हैं। इन कंपनियों ने बीते 3 साल में 110 कंपनियां खरीदीं। इनका मुख्य निवेश 'फ्रंटियर टेक्नोलॉजी' में हो रहा है। मसलन स्वचालित वाहन, स्वास्थ्य देखरेख, अंतरिक्ष, रोबोटिक्स, वित्त सेवाएं, क्रिप्टो, चिप, मेटा, क्वांटम कंप्यूटर वगैरह।
कुछ मुल्कों में सर्विलांस व युद्ध क्षेत्रों में भी। पांच बड़ी टेक कंपनियों ने 2021 में रिसर्च और डेवलपमेंट पर 149 बिलियन डॉलर लगाए। अमेरिकी सरकार या पेंटागन के आरएंडडी से यह शोध खर्च काफी अधिक है। अति प्रभावी व ताकतवर बन चुकी ये टेक कंपनियां दुनिया का भविष्य तय कर रही हैं। पर इसके बीच से ही इनके काम, रणनीति और विजन पर, सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों को लेकर चिंताजनक सवाल उठ रहे हैं। खासतौर से गूगल का हाल का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर (जीपीटी) प्रकरण चर्चित है।
गूगल में एआई के सामाजिक व नैतिक असर को लेकर शोध कर रही टीम की सहनेता थीं अश्वेत महिला टिमैट गेब्रू। उन्होंने अपने शोध में इस टेक्नोलॉजी के सामाजिक व नैतिक असर को लेकर कई प्रश्न उठाए। अंततः उन्हें जाना पड़ा। पर उनके यक्ष प्रश्न पूरी टेक इंडस्ट्री के शोधों व नई ईजादों के सामने खड़े हैं। जीवन, विचार और सचेत मन टेक्नोलॉजी के गहरे प्रभाव में है। लोग भले यह अस्वीकारें, पर सचेतन मस्तिष्क का बड़ा हिस्सा इसके कब्जे में है। उस टेक दुनिया की अंदरूनी गति से समाज-संसार को अवगत होना ही चाहिए।
जहां जरूरत हो, हस्तक्षेप भी। बारंबार चर्चा, विश्लेषण व मंथन से अमृत-विष दोनों सामने आते हैं। संसार व समाज अमृत पक्ष का सेवन करे, तो टेक्नोलॉजी वरदान होगी। संसार की जो समस्याएं हल की दृष्टि से असंभव लगती हैं, उनसे निजात टेक्नोलॉजी दिला सकती है। पर इस संसार के विष से बचने का उपाय भी सामूहिक संकल्प और चेतना पर ही निर्भर है। ऐसे सवाल पश्चिम को भी दशकों से परेशान कर रहे हैं। 1995 में नैतिकतावादी रसवर्थ किड्डर ने चर्चित पुस्तक लिखी 'हाउ गुड पीपुल मेक टफ चॉइसेस।'
इसके लिए उन्होंने तत्कालीन समय के 21 प्रभावी अग्रणी विचारकों से बात की कि 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौतियां क्या होंगी? जो छह निष्कर्ष सामने आए, उनमें से पांच आश्चर्यजनक नहीं थे। पर एक मुद्दा बार-बार आया, वह था नैतिकता का खत्म या विफल होना। दुनिया के इन विशिष्ट विचारकों-मनीषियों ने माना कि नैतिकता अय्याशी नहीं है, यह दुनिया-इंसान के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है। भारतीय मनीषा, उपनिषद् ऐसे कठिन चुनावों की स्थिति में अत्यंत प्रभावी मार्गदर्शक के रूप में काम करते हैं।
कठोपनिषद् में उल्लेख है, 'श्रेय और प्रेय इंसान के पास आते हैं।' समाज और संसार के पास भी। पर श्रेयस जो सबके लिए सुखकर-हितकर है, सही रास्ता है। प्रेयस जो इंद्रियों के लिए सुखकर है, वह किसी के लिए हितकर नहीं। हम व्यक्ति या समूह (कंपनी) या समाज, देश किस रास्ते चलें? यह तय करने की इससे प्रामाणिक कसौटी दूसरी नहीं? पर क्या यह टेक दुनिया, भारतीय मनीषा के इस पक्ष से वाकिफ है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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