नौकरशाही में सुधार हो

आईएएस ऑफिसरों के डेप्युटेशन से जुड़े प्रावधानों में प्रस्तावित संशोधन को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें एक बार फिर आमने-सामने हैं।

Update: 2022-01-24 02:50 GMT

आईएएस ऑफिसरों के डेप्युटेशन से जुड़े प्रावधानों में प्रस्तावित संशोधन को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें एक बार फिर आमने-सामने हैं। केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग की तरफ से तमाम राज्यों के मुख्य सचिवों को आईएएस (कैडर) रूल्स 1954 में संशोधन का जो प्रस्ताव भेजा गया है, उसके मुताबिक केंद्र सरकार जिस ऑफिसर की सेवा डेप्युटेशन के तहत लेना चाहेगी, उसे निश्चित समयावधि के अंदर रिलीव करना होगा। चाहे संबंधित राज्य सरकार इससे सहमत हो या असहमत।

केंद्र का कहना है कि, इस कदम के पीछे ऑफिसरों की कमी की समस्या है, जिसका कारण यह है कि राज्य सरकारें पर्याप्त संख्या में ऑफिसरों को डेप्युटेशन पर भेजने को तैयार नहीं होतीं। दूसरी तरफ विभिन्न राज्य सरकारें प्रस्तावित संशोधन का यह कहते हुए विरोध कर रही हैं कि इससे नौकरशाही पर केंद्र का पूरा नियंत्रण स्थापित हो जाएगा और उनके लिए अपनी योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन करवाना कठिन। इसे देश के संघात्मक ढांचे के भी विपरीत बताया जा रहा है।

मामले की गंभीरता इससे समझी जा सकती है कि प्रस्ताव का विरोध कर रहे राज्यों में केवल विपक्षी पार्टियों से शासित सरकारें ही नहीं हैं। मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने भी इस प्रस्तावित संशोधन से असहमति जताई है, जहां बीजेपी या उसकी गठबंधन सरकार है। बहरहाल, टकराव से कुछ हासिल नहीं होगा। दोनों पक्षों के लिए यह समझने की जरूरत है कि समस्या के मूल में दो मुद्दे हैं- ऑफिसरों की कमी और सरकारों विभागों की बहुलता। इसलिए सबसे पहले तो यूपीएससी के जरिए नियुक्त होने वाले ऑफिसरों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान देने की जरूरत है।

वैसे भी देश के वर्कफोर्स में पब्लिक सेक्टर ऑफिसरों का अनुपात अभी महज 3.8 फीसदी है, जो ब्रिटेन (22.5 फीसदी), अमेरिका (13.5 फीसदी) और चीन ( 28 फीसदी) के मुकाबले बहुत कम है। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की बात करें तो वहां प्रति दस हजार की आबादी पर सरकारी कर्मचारियों की संख्या मात्र 80 बैठती है, जबकि अमेरिका के किसी भी राज्य में यह अनुपात 200 से कम नहीं है। दूसरी बात यह कि नौकरशाही के काम की स्थितियां आसान बनाने और उसे अनावश्यक राजनीतिक दखलंदाजी से बचाने वाले सुधारों की रफ्तार को तेज करने के भी उपाय करने होंगे। तभी कॉरपोरेट, रिसर्च और ऐकडेमिक्स क्षेत्रों से टैलंट्स को इस तरफ आकृष्ट किया जा सकेगा।

इसके अलावा सरकारों के लगातार फैलते आकार पर भी रोक लगाने की जरूरत है। कल्याणकारी योजनाओं पर प्रभावी अमल सुनिश्चित करना जरूरी है, लेकिन इसके नाम पर सरकारी तंत्र का लगातार विस्तार करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में साल 2020 में ही 56 पिछड़ा वर्ग निगम बना दिए गए। ऐसा पॉप्युलिस्ट रवैया समस्या को और जटिल बनाता है।


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