पलट सकती है बीमारी
मोर्चे पर देश के हालात पिछले कुछ दिनों से लगातार संभलते से जान पड़ते हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हफ्ते एक बार फिर राष्ट्र को संबोधित करते हुए लोगों को सावधान किया कि कोरोना को लेकर लापरवाही बिल्कुल न बरती जाए। हालांकि इस मोर्चे पर देश के हालात पिछले कुछ दिनों से लगातार संभलते से जान पड़ते हैं। कहां तो रोज संक्रमित होने वालों की संख्या एक लाख को छूने लगी थी, कहां अब यह 50 हजार के आसपास हो गई है। स्वाभाविक रूप से इसको राहत की बात के रूप में लिया जा रहा है।
आम लोगों में यह आत्मविश्वास आ रहा है हम कोरोना को पराजित कर सकते हैं। यह आत्मविश्वास वक्त की जरूरत भी है। इसके बल पर लोगों का घरों से बाहर निकलना और आर्थिक गतिविधियों में शिरकत करना आसान होगा। अर्थव्यवस्था में फिर से जान भी इसी तरह आएगी। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक रूप से मन में आता है कि क्या प्रधानमंत्री के संबोधन की इस समय कुछ खास जरूरत नहीं थी? क्या सरकार कोरोना के खतरे को समझने और देशवासियों के सामने रखने में जाने अनजाने अतिरंजना का शिकार हो रही है?
यह संदेह इसलिए भी बना क्योंकि राजनीति और मीडिया के एक हिस्से में प्रधानमंत्री के उस बयान को बिहार विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखने की कोशिश की गई। लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक चुनौती को एक खास देश तक सीमित नजरिये से देखना हानिकारक हो सकता है। यह सही है कि अपने देश में पिछले कुछ समय से कोरोना के नए मामलों में कमी दिख रही है। बावजूद इसके, यह नहीं माना जा सकता कि इसका खतरा कम हो गया है। दुनिया के अन्य हिस्सों की तरफ नजर दौड़ाई जाए तो अमेरिका, रूस, स्पेन, ईरान आदि अनेक देशों में कोरोना का ग्राफ लहर की शक्ल में नजर आता है। यानी एक बार नीचे जाने के बाद दोबारा ऊपर आने वाला।
इन सभी देशों में कोरोना वायरस तेजी से फैलने के बाद काफी हद तक काबू में आ गया था, लेकिन फिर तेजी से बढ़ने लगा। यह स्थिति वास्तव में डरावनी है। अब तक माना जा रहा था कि कोरोना चाहे जितना भी खतरनाक वायरस हो, पर इलाज और सावधानियों की बदौलत इस पर काबू पाया जा सकता है। इस दौरान स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था आदि तमाम मोर्चों पर जो भी नुकसान हो, पर एक बार महामारी से उबरने के बाद उसकी भरपाई की जा सकती है।
लेकिन लहर जैसा यह ग्राफ बताता है कि वायरस का एक बार काबू में आ जाना काफी नहीं है। यह दोबारा बेकाबू होकर पहले से भी बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है। ध्यान रहे, कारगर वैक्सीन अब भी दूर की चीज है। 50-60 फीसदी कामयाबी वाली वैक्सीन का खास मतलब इसलिए नहीं है कि उतनी तो इम्यूनिटी यूं भी डिवेलप हो जाती है। जाहिर है, ऐसे में कोरोना से लड़ने का सतर्कता के अलावा और कोई कारगर हथियार अभी लंबे समय तक हमारे पास नहीं है।