अच्छा लिखेंगे तो जीवन सार्थक होगा, गलत लिखेंगे तो व्यर्थ हो जाएगा

महिलाओं का स्वभाव है अपनी लज्जा को प्राथमिकता देना

Update: 2022-01-28 08:01 GMT
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: 
तकनीक मनुष्य के लिए है, मनुष्य तकनीक के लिए नहीं। लेकिन, इन दिनों डिजिटल माध्यमों ने यह साबित कर दिया है कि हमारे बिना कोई सांस भी नहीं ले पाएगा। कुछ लोगों ने इसे स्वीकार भी कर लिया है। ध्यान रखिए, जीवन आधा लिखा और आधा कोरा कागज है। जो लिखा हुआ है, उसे मिटाया नहीं जा सकता। हां पढ़ा जा सकता है, पर एक दिन में एक ही पन्ना। जो कोरा भाग है, उस पर आपको लिखना है।
अच्छा लिखेंगे तो जीवन सार्थक होगा, गलत लिखेंगे तो व्यर्थ हो जाएगा। जीवन व्यर्थ न लगे इसके लिए कुछ लोग डिजिटल मीडिया पर टूट पड़े। एक विद्वान ने तो यहां तक कह दिया कि यदि डिजिटल मीडिया नहीं होता तो हमारे देश में अधिकांश महिलाएं डिप्रेशन में डूब जातीं। पर, बात अधूरी लगती है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में कई पुरुष पागलपन के शिकार हो जाएंगे।
महिलाओं का स्वभाव है अपनी लज्जा को प्राथमिकता देना। इसलिए वे तो इसमें फिर भी किसी तरह अपने आप को ढाल लेंगी, लेकिन पुरुष उलझ जाएंगे और एक दिन पाएंगे कि हमारे भीतर की एक खास चीज विलुप्त हो गई, जो था जीवन।
इसमें कोई शक नहीं कि जानकारियां तो खूब होंगी, पर जीवन फिसल लाएगा। जीवन को सार्थक करना हो तो इसका उपयोग नादानी से न करते हुए सयानेपन से किया जाए। नादानी शब्द मूर्खता के निकट है, सयानेपन में एक परिपक्वता है।
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