अगर मंदिरों की रक्षा के प्रति गंभीर होती इमरान सरकार, तो पाकिस्तान में हिंदुओं पर नहीं होते अत्याचार
पाकिस्तान में हिंदुओं पर नहीं होते अत्याचार
अवधेश कुमार। पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी कराची के नारायणपुरा क्षेत्र स्थित जोगमाया मंदिर में हुई हिंसा विश्व भर के हिंदुओं और संपूर्ण मानव समुदाय के लिए आक्रोशित करने वाली है। एक शख्स हथौड़ा लेकर आया और मां जोगमाया की मूर्ति को तोड़ना शुरू कर दिया। एक महिला के शोर मचाने पर लोग एकत्रित हुए, लेकिन उसके अंदर इतनी नफरत थी कि उसने तोड़ना बंद नहीं किया। गिरफ्तार होने के पहले उसने मूर्तियों को पूरी तरह खंडित कर दिया। हिंदुओं ने एकत्रित होकर इसे ईशनिंदा का मामला बनवाया है। यह बदलते समय की धारा का प्रतीक है।
पिछले दिनों श्रीलंका की एक कंपनी के प्रबंधक द्वारा फैक्ट्री की दीवार पर लगे पोस्टर हटाए जाने को स्थानीय मजदूरों ने ईशनिंदा का मामला बनाया। सरेआम उसकी हत्या की और लाश को आग के हवाले कर दिया। श्रीलंका का तमिल जानने वाला शख्स अरबी में लिखी कुरान की आयतों को नहीं समझ सकता था। उसने दीवार पर चिपका पोस्टर जानकर फाड़ दिया। वैसी घटना अगर ईशनिंदा बन सकती है तो वहां खुलेआम मंदिरों और मूर्तियों को अपवित्र करना और तोड़ना आदि भी स्वाभाविक ही ईशनिंदा कानून की परिधि में आएगा। एक पाकिस्तानी पत्रकार के अनुसार गत 22 माह में हिंदू मंदिरों पर यह नौवां बड़ा हमला था। इमरान खान सरकार दावा कर रही है कि वह मंदिरों की रक्षा के प्रति संकल्पित है, लेकिन यह दावा बिल्कुल खोखला है, क्योंकि कट्टरपंथ वहां समाज, सत्ता और राजनीति का स्वाभाविक अंग बन चुका है।
इसी वर्ष अगस्त में पंजाब स्थित एक गणोश मंदिर में तोड़फोड़ और आग लगाने का वीडियो वायरल हुआ था। पिछले वर्ष अक्टूबर में रहीमयार खान शहर में खैबर पख्तूनख्वा के करक गांव में भीड़ ने मंदिर में तोड़फोड़ कर आग लगा दी थी। इस्लामाबाद में बन रहे भगवान श्रीकृष्ण के एक मंदिर पर जुलाई में हमला कर दिया गया। पिछले साल अगस्त में एक बिल्डर ने पाकिस्तान के ल्यारी में प्राचीन हनुमान मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। पिछले ही साल अक्टूबर में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में नगरपारकर में श्रीराम मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी।
कुछ लोगों ने हिंगलाज माता की मूर्ति के सिर को क्षतिग्रस्त करने के साथ मंदिर को अपवित्र करने के इरादे से हर तरह की हरकतें की। गत साल दिसंबर में वायरल वीडियो में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सैकड़ों लोगों को हिंदू मंदिर को जलाते और तोड़ते देखा गया था। पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में नवीनीकरण के दौर से गुजर रहे सौ साल पुराने हिंदू मंदिर को क्षतिग्रस्त किया गया। पिछले जनवरी में भीड़ ने सिंध के चाचरो, थारपारकर में माता रानी भटियानी देवी मंदिर में तोड़फोड़ की, धार्मिक पुस्तकों में आग लगा दी और देवी की प्रतिमा पर कालिख पोती।
अगर इमरान सरकार हिंदू मंदिरों तथा हिंदुओं की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध होती तो इस तरह की घटनाएं लगातार नहीं होतीं। भारत में किसी मजहब के धर्म स्थलों पर तनिक भी हिंसा हो जाए तो क्या स्थिति होगी? कानून का भय न हो तो भी भारत में बहुसंख्यक समुदाय इतना उन्मादी नहीं हुआ है कि दूसरे मजहब के धर्मस्थल, उनकी पूजा पद्धति या उनका स्वयं अपने धार्मिक रूप में रहना सहा न जा सके। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार वहां के 365 हिंदू मंदिरों में से केवल 13 का प्रबंधन ही इवैक्यूई ट्रस्ट प्रापर्टी बोर्ड द्वारा किया जा रहा है। शेष धर्मस्थलों को मजहबी कट्टरपंथियों या भू माफिया के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है।
जाहिर है पाकिस्तान में पूरी स्थिति डरावनी है। अगर प्रधानमंत्री इमरान खान ही रियासत-ए-रसूल यानी मजहबी या पैगंबर के शासन की वकालत करेंगे तो वहां समाज कैसा बनेगा? इमरान खान बाहरी दुनिया के लिए तो स्वयं को मजहब की दृष्टि से उदारवादी बताते हैं, पर उनके ऐसे वीडियो उपलब्ध हैं जिनमें वह बताते हैं कि आने वाले समय में केवल इस्लाम रहेगा। इमरान खान ने जिया उल हक के बाद पाकिस्तान के समाज को कट्टरपंथी बनाने का सबसे ज्यादा काम किया है। कट्टरपंथी जब इस्लाम के अलावा मजहबी रूप में किसी अन्य का अस्तित्व नहीं स्वीकारते तो दूसरे धर्म के स्थलों, मूर्तियों या पूजा पद्धतियों को खत्म करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो जाता है। पाकिस्तान में वही हो रहा है।
विडंबना देखिए कि हाल में इटली के पुरातत्वविदों ने खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात जिले में एक मंदिर के अवशेष खोजे हैं। वहां बौद्ध धर्म से जुड़ी ढाई हजार कलाकृतियां भी मिली हैं। पाकिस्तान पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय प्रमुख अब्दुल समद खान ने कहा है कि पिछले साल भी इसी क्षेत्र में एक प्राचीन हिंदू मंदिर के अवशेष खोजे गए थे। हिंदू मंदिर और बौद्ध मंदिर के अवशेष संकेत करते हैं कि इस क्षेत्र में उच्च स्तर का धार्मिक सद्भाव और सहिष्णुता थी। दुख की बात है कि पाकिस्तान के आम लोगों को यह अहसास नहीं कराया जाता कि वे पुरानी और महान संस्कृति तथा सभ्यता के वारिस हैं। हजारों साल पहले स्वात एक महान और सांस्कृतिक दृष्टि से समुन्नत शहर था।
संपूर्ण अफगानिस्तान और पाकिस्तान हिंदू धर्म, अध्यात्म, सभ्यता, संस्कृति तथा कालांतर में इससे निकले बौद्ध सभ्यता के केंद्र थे। वहां कट्टरपंथियों ने सबको नष्ट-भ्रष्ट किया तथा धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बने समुदाय के अंदर ऐसी भावना भरी कि वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं। सहिष्णुता या दूसरे मजहब का अस्तित्व उनके अपने मजहब के विपरीत लगता है। मजहबी शिक्षा के कारण ही उनके अंदर अपनी ही धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के विरुद्ध इतनी नफरत पैठ कर गई है कि दूसरे धर्म के स्थलों, उनकी उपासना पद्धतियों को ही नहीं, उनके अस्तित्व कोपूरी तरह नष्ट कर दिए जाने का उन्माद हर तरफ दिखता है। अच्छी बात है कि पाकिस्तान के हिंदुओं के भीतर भी धीरे-धीरे साहस पैदा हो रहा है। उन्हें विश्व भर के हिंदू समुदाय का साथ मिल रहा है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)