कैसे बचे वोडाफोन, गेंद सरकार के पाले में
आदित्य बिड़ला ग्रुप (एबीजी) के कुमार मंगलम बिड़ला ने वोडाफोन आइडिया के नॉन-एग्जिक्यूटिव चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है।
आदित्य बिड़ला ग्रुप (एबीजी) के कुमार मंगलम बिड़ला ने वोडाफोन आइडिया के नॉन-एग्जिक्यूटिव चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है। कंपनी के पास इतना पैसा नहीं है कि वह कर्ज की किस्तें चुकाने के साथ निवेश भी कर पाए। पिछले 10 महीने से वोडाफोन आइडिया 25 हजार करोड़ रुपये जुटाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसके हाथ खाली हैं। इसमें 44.39 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले वोडाफोन ग्रुप और 27.66 फीसदी हिस्सेदारी वाले एबीजी ने और पैसा लगाने से मना कर दिया है। यानी वह दिवालिया होने की तरफ बढ़ रही है। इसीलिए बिड़ला को कहना पड़ा कि वह वोडाफोन आइडिया में अपना हिस्सा किसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी या घरेलू वित्तीय संस्थान को देने को तैयार हैं।
कंपनी को कर्ज देने वाले बैंक और वित्तीय संस्थान भी परेशान हैं। वे मैनेजमेंट और सरकार के साथ इसे बचाने के लिए बातचीत कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए केंद्र को सबसे पहले यह तय करना होगा कि वह टेलिकॉम सेक्टर में तीन कंपनियों को देखना चाहता है या रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के रूप में दो मजबूत कंपनियों से संतुष्ट रहेगा? सरकार ने इस बारे में साफ-साफ तो कुछ नहीं कहा है, लेकिन ऐसे संकेत मिले हैं कि वह टेलिकॉम सेक्टर के लिए एक पैकेज तैयार कर रही है।
इससे वोडाफोन आइडिया के साथ दूसरी कंपनियों को भी राहत मिलेगी। इसमें कंपनियों को स्पेक्ट्रम वापस करने का अधिकार देने, बैंक गारंटी घटाने, लाइसेंस फी और स्पेक्ट्रम चार्जेज में कटौती या उन्हें खत्म करने और राहत पैकेज लागू होने की तारीख से एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (वह आमदनी, जिसके आधार पर सरकार अपने हिस्से के शुल्क वसूलती है) में अन्य खर्चों को हटाने जैसे प्रस्तावों पर गौर किया जा रहा है। लेकिन सिर्फ इतने से वोडाफोन आइडिया को बचाना मुश्किल होगा। कंपनी पर कुल 1.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है।
इसमें से 80 फीसदी रकम उसे सरकार को देनी है। ऐसे में इस कंपनी को बचाना है तो केंद्र को अपने बकाया के एक बड़े हिस्से के बदले उसमें हिस्सेदारी लेनी होगी। इससे वोडाफोन आइडिया की वह सबसे बड़ी शेयरहोल्डर हो जाएगी। चूंकि, कोई भी नीति पूरे क्षेत्र के लिए समान होनी चाहिए, ऐसे में सरकार को यह प्रस्ताव दूसरी टेलिकॉम कंपनियों को भी देना होगा। जो कंपनियां मजबूत हैं, वे शायद ही पार्टनर बनाकर सरकार को अपने बोर्ड में जगह देंगी।
इसलिए केंद्र को इस पर अमल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इसके बाद सरकार को जो पैसा टेलिकॉम कंपनियों से लेना है, वह उसके भुगतान पर कुछ साल के लिए रोक लगा सकती है। इतना करने के बाद केंद्र को तीसरे पक्ष से कंपनी के लिए निवेश जुटाने की कोशिश करनी होगी। अगर यह योजना लाई जाती है और सफल होती है, तो वोडाफोन आइडिया शायद बच जाए।