आरटीपीसीआर की रिपोर्ट आने में देरी होने पर कैसे करें इलाज?
कोरोना की दूसरी लहर में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी दबाव है
पंकज कुमार। सुष्मित सिन्हा। कोरोना की दूसरी लहर (Corona Second Wave) में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर (Medical Facility) पर भारी दबाव है. दो लाख 70 हजार के करीब हर दिन कोरोना के मामले आने शुरू हो गए हैं. जाहिर तौर पर टेस्ट कराने वालों की लंबी कतार है, इसलिए टेस्ट करने वाले लैब्स में लंबी वेटिंग चिंता का विषय बनी हुई है. लेकिन सिम्पटम आने के बाद या फिर शरीर में कोई भी दिक्कत समझ में आने के बाद रिपोर्ट में देरी होने पर क्या उपाय करना चाहिए इसको लेकर टीवी 9 ने कुछ एक्सपर्ट से बात की है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि, अगर किसी भी इंसान को बुखार, खांसी, या डायरिया के अलावा कमजोरी जैसे लक्षण हों तो उन्हें सजग हो जाना चाहिए. एक्सपर्ट के मुताबिक सबसे पहले वैसे लोगों को आइसोलेट करना चाहिए और आईसीएमआर गाइडलाइन्स के मुताबिक सिम्पटोमैटिक ट्रीटमेंट करना चाहिए. वैसे रोगी को सामान्यत: विटामिन C, विटामिन D, जिंक और अजीथ्रोमाइसीन और आइवरमेक्टिन दिए जाने की सलाह दी जाती है.
क्या कहते हैं डॉक्टर
डॉ अरुण शाह कहते हैं कि ये महामारी है और पेशेंट की संख्या कहीं ज्यादा है. ट्रीटमेंट सिम्पटम के आधार पर हो ये डॉक्टर्स के विवेक पर निर्भर करता है. साथ ही पेशेंट का ट्रीटमेंट पेंशेंट टू पेशेंट वैरी भी कर सकता है. लेकिन विटामिन सी, डी और जिंक का टैबलेट लेने में थोड़ा भी परहेज नहीं करना चाहिए, साथ ही किसी भी ऐसे सस्पेक्टेड पेशेंट को अपने आपको आइशोलेट कर रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए और इस दरमियान इम्यूनिटी बढ़ाने पर जोर देने से लेकर ऑक्सीजन सैचुरेशन जैसी महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान देना चाहिए.
क्या आइवरमेक्टिन और अजीथ्रोमाइसीन या टॉक्सीसाइक्लीन का इस्तेमाल रिपोर्ट आने से पहले करना चाहिए या नहीं?
पूरे देश में हालात असाधारण हैं और लैब्स के रिपोर्ट के इंतजार में वक्त ज़ाया करना अब समझदारी नहीं है. पटना में कोविड वॉरियर के रूप में पदस्थापित हो चुके डॉ प्रभात रंजन कहते हैं कि, मैं सिम्पटम के आधार पर लोगों का इलाज कर रहा हूं. इसलिए किसी भी रोगी को डॉक्टर की सलाह पर कोविड प्रोटकॉल के तहत इलाज शुरू कर देना चाहिए, यही विकल्प है और इसी में समझदारी भी है.
डॉ प्रभात देश में उपजे हालात पर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि, आरटीपीसीआर टेस्ट भी निगेटिव आ रहे हैं और हर किसी का सीटी स्कैन भी संभव नहीं हैं. इसलिए वायरस के नए प्रभाव और स्वभाव को समझते हुए सिम्पटम्स के आधार पर ट्रीटमेंट करना ही बेहतर उपाय है . इसलिए रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर माइनर पेशंट को विटामिन सहित अजीथ्रोमाइसीन और आइवरमेक्टिन देने में कोई बुराई नहीं है, परंतु किसी भी मरीज को दवा डॉक्टर की सलाह पर ही लेनी चाहिए.
दरअसल अजीथ्रोमाइसीन और आइवरमेक्टिन बच्चों को भी सिम्पटम्स आने पर दिया जा सकता है वहीं यूपी सरकार के प्रोटकॉल के मुताबिक अजीथ्रोमाइसीन की जगह पर टॉक्सीसाइक्लीन दिया जाता है. कहा ये जाता है कि अजीथ्रोमाइसीन वायरस को मल्टीप्लाय करने में रोकने में कारगर है वहीं आइवरमेक्टिन भी इम्यूनोमॉड्यूलेटर के रूप में शरीर में काम करता है. विटामिन सी, विटामिन डी और जिंक का टैबलेट भी शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर इम्यूनिटी को बढ़ाता है. जबकि मेडिकल साइंस में एक दूसरा स्कूल ऑफ थॉट इसका पुरजोर विरोध करता है और इसे कोरोना बीमारी में अनुपयोगी मानता है.
स्टेबल पेशेंट, माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर में फर्क कैसे समझना चाहिए
बुखार होने के बावजूद अगर पेशेंट ठीक दिखाई पड़ रहा है और किसी भी प्रकार की परेशानी से इन्कार कर रहा हो तो उसे आइशोलेट होकर घर में रहना चाहिए. प्रेसक्राइब्ड दवा के अलावा ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन का सैचुरेशन लेवल चेक करते रहना चाहिए. अगर ऑक्सीजन लेवल 94 और उससे ज्यादा है तो ऐसे पेशेंट स्टेबल हैं और उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है.
दरअसल मॉडरेट पेशेंट के रूप में कैटेगराइज 94 से कम ऑक्सीजन लेवल होने पर किया जाने लगता है. और 90 से कम ऑक्सीन होने पर ऑक्सीजन लेवल मेंटेन करना बड़ी चुनैती है. इसके लिए अगर नॉर्मल प्रणायाम और स्ट्रेस लेवल कम करने से पेशेंट ठीक हो सकता है तो ठीक है वरना लगातार कम होने पर यानी 92 से कम होने पर डॉक्टर की सलाह से ऑक्सीजन का सहारा लेना पड़ सकता है, सीवियर पेशेंट की सांस की गति तेज होती है और उनका ऑक्सीजन लेवल 90 से कम होता है और उसमें लगातार गिरावट देखा जाता है. ऐसे पेशेंट को ऑक्सीजन चढ़ाना जरूरी होता है और इन्हें रेमेडिसिवर जैसी एंटीवाइरल ड्रग की जरूरत पड़ती है.
ऐसे पेशेंट को डी डाइमर टेस्ट की जरूरत पड़ती है और इन्हें एंटीकॉगुलेंट दवा हिपैरिन की जरूरत पड़ती है जो थ्रोम्बॉसिस यानी ब्लड क्लॉट फॉरमेशन को रोकता है. इसलिए टेस्ट रिपोर्ट नहीं आने तक सिम्पटम के आधार पर ट्रीटमेंट की सलाह डॉक्टर देने लगे हैं और माइनर और मॉडरेट केसेज में कुछ सावधानियों के साथ ऑक्सीमीटर की मदद से कोरोना जैसी बीमारी का उपचार किया जा सकता है.
रिपोर्ट का इंतजार करने से बेहतर है सिम्पटम देख कर बीमार का इलाज करना
एलएनजेपी के मेडिकल डायरेक्टर डॉ सुरेश कुमार कहते हैं कि टेस्ट करने वाले लैब्स को हर हाल में रिपोर्ट सात से आठ घंटे में देने को कहा गया है वहीं एलएनजेपी और एम्स में रैपिड आरटीपीसीआर उपलब्ध है जो दस मिनट में टेस्ट का परिणाम बताकर सबकुछ साफ कर देता है. वैसे आरटीपीसीआर टेस्ट में भी कई लोग निगेटिव आने के बाद कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. इसलिए कई डॉक्टर्स का कहना है कि पेशेंट के हिसाब से ट्रीटमेंट ही बेहतर उपाय है और उसमें उसका सिम्पटम और डॉक्टर्स की सूझबूझ अहम रोल प्ले करता है. लेकिन किसी भी इंसान को शक होने पर आइशोलेट करना और डॉक्टर्स से तुरंत सलाह लेकर उपचार करना चाहिए ना कि रिपोर्ट के परिणाम आने का इंतजार करना चाहिए. रिपोर्ट के परिणाम के भरोसे बैठे रहना पेशेंट के लिए घातक हो सकता है.