कैसे रुकें आग की घटनाएं
बड़े-बड़े अग्निकांडों को देखते हुए तो लगता है कि ऊंची इमारतों के निर्माण में जरूरी सावधानियों की तरफ न तो शहरी प्रबंधन की नजर है
अभिषेक कुमार सिंह: बड़े-बड़े अग्निकांडों को देखते हुए तो लगता है कि ऊंची इमारतों के निर्माण में जरूरी सावधानियों की तरफ न तो शहरी प्रबंधन की नजर है, न ही उन संस्थाओं-विभागों को इसकी कोई फिक्र है जिन पर शहरों में आग से बचाव के कायदे बनाने और उन पर अमल सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है।
पिछले कुछ सालों में शहरों-महानगरों में आग की घटनाएं जिस तेजी से बढ़ी हैं, वह चिंता का विषय है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने इस आग को और विकराल बना डाला है। सिर्फ दिल्ली के मुंडका इलाके में हुआ अग्निकांड ही नहीं, देश के तमाम शहरों में ऐसे अग्निकांडों की लंबी फेहरिस्त है जो आग से बचाव के उपायों के मामले में लापरवाही, नियम-कानूनों की अनदेखी और इमारतों के निर्माण में प्रयोग होने वाली सामग्रियों जैसे कई सवाल खड़े करती है। हर हादसे के बाद सरकार व प्रशासन की ओर से दिए जाने वाले मुआवजे और खोखले आश्वासन समस्या को और बढ़ा देते हैं क्योंकि बड़ी-बड़ी करने के बाद भी न तो इमारतों की सख्ती से जांच की जाती है, न ही अग्निकांड के दोषियों को सख्त सजा मिलती है।
यह विडंबना ही है कि दिल्ली में जिस चार मंजिला इमारत में सुरक्षा कैमरे बनाने वाली कंपनी चल रही थी, उसमें आग से बचाव के कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं थे। वरना इस हादसे में इतनी ज्यादा मौतें नहीं होतीं। उल्लेखनीय है कि इस अग्निकांड के बारे में अग्निशमन विभाग के अधिकारियों ने जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक आग तेजी से फैलने की बड़ी वजह इमारत में जगह-जगह प्लास्टिक और कागज का सामान मौजूद होना था। इसके अलावा आधुनिक भवन निर्माण में जिस तरह की सामग्री का इस्तेमाल होने लगा है, उससे भी आग का खतरा काफी बढ़ जाता है।
असल में आधुनिक वक्त में भवन निर्माण का जो सबसे चिंताजनक पहलू इधर कुछ वर्षों में सामने आया है, वह यह है कि शहरी इमारतें बाहर से तो लकदक दिखाई देती हैं, लेकिन उनके अंदर मामूली चिंगारियों को हवा देकर भीषण अग्निकांडों में बदल देने वाली इतनी चीजें मौजूद रहती हैं कि एक बार कहीं कोई बिजली का तार भी सुलगता है तो भयानक हादसा होते देर नहीं लगती। वैसे यह बिल्कुल सही है कि ज्यादातर मामलों में आग किसी बेहद छोटे कारण से शुरू होती है। जैसे मामूली शार्ट सर्किट या बिजली के किसी खराब उपकरण का आग पकड़ लेना।
यह बात कई सौ साल पहले समझ में आ गई थी, पर अफसोस कि ऐसी मामूली वजहों की असरदार रोकथाम आज तक नहीं हो सकी। चार सौ साल पहले 1666 में लगी ग्रेट फायर आफ लंदन के बार में कहा जाता है कि इस शहर को बेहद 'मामूली' वजह से उठी चिंगारी ने बर्बाद कर डाला था। इसके पीछे जो वजह बताई गई थी, उसके मुताबिक वह आग लंदन की पुडिंग लेन स्थित एक छोटी बेकरी शाप में शुरू हुई थी। इसी तरह अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित ओकलैंड वेयरहाउस में एक संगीत समारोह के दौरान लगी आग एक रेफ्रिजरेटर की वजह से लगी बताई जाती है।
यह सिर्फ इत्तेफाक नहीं है कि पांच साल पहले लंदन के चौबीस मंजिला ग्रेनफेल टावर की आग के पीछे एक फ्लैट में फ्रिज में हुए विस्फोट को अहम वजह माना गया था। कुछ साल पहले मुंबई में मोजो और वन-वे नामक रेस्टोरेंट की आग शार्ट सर्किट की देन बताई गई थी। वर्ष 2019 में सूरत में कोचिंग सेंटर की इमारत में भी आग बिजली के तारों में चिंगारी निकलने से लगी थी, जिसे छत में लगे थर्मोकोल और पीओपी से हुई साज-सज्जा, छत पर रखे टायरों आदि ने चंद सेकेंडों में भड़का दिया था।
ज्यादातर शहरी इमारतों में आग लगने की एक बड़ी वजह खराब शहरी नियोजन और प्रबंधन है। यह प्रबंधन इमारतों को मौसम के हिसाब से ठंडा-गर्म रखने, वहां काम करने वाले लोगों की जरूरतों के मुताबिक आधुनिक इलेक्ट्रानिक साजो-सामान जुटाने में तो दिलचस्पी रखता है, पर जिन चीजों से विनाशकारी आग पैदा होने या उसे रोकने का प्रबंध किया जा सकता है, उससे वह मुह फेर लेता है।
कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो चुके आधुनिक शहर भी आग को इस वजह से न्योता देते हैं क्योंकि वहां किसी मामूली चिंगारी को लपटों में बदलने वाली कई चीजें और असावधानियां मौजूद रहती हैं। हाल के वर्षों में दिल्ली, नोएडा से लेकर मुंबई तक की आधुनिक इमारतों और औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्टरियों में लगी भयानक आग ने यही साबित किया है कि आज हर आधुनिक शहर ऐसी वजहें पैदा कर रहा है जिनके चलते मजबूत इमारतें भी आग के सामने टिक नहीं पा रही हैं।
समस्या यह है कि शहरीकरण की आंधी और अनियोजित विकास ने उन उपायों को हाशिये पर धकेल दिया है जो हमें ऐसी आपदाओं से बचाते हैं। शहरीकरण के सारे नियम-कायदों को धता बताते हुए जो कथित विकास होता जा रहा है, उससे सुरक्षा का संकट गहरा गया है। बड़े-बड़े अग्निकांडों को देखते हुए तो लगता है कि ऊंची इमारतों के निर्माण में जरूरी सावधानियों की तरफ न तो शहरी प्रबंधन की नजर है, न ही उन संस्थाओं-विभागों को इसकी कोई फिक्र है जिन पर शहरों में आग से बचाव के कायदे बनाने और उन पर अमल सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है।
असल समस्या यह है कि आधुनिक शहरीकरण की जो मुहिम पूरी दुनिया में चल रही है, उसमें सावधानियों व आग से बचाव के उपायों पर ज्यादा काम नहीं किया गया है। आज प्राय: भवन निर्माण में ऐसा सामान इस्तेमाल किया जाने लगा है जिसमें आग को भड़काने वाली तमाम चीजों का इस्तेमाल होता है।
आंतरिक साज-सज्जा के नाम पर फर्श और दीवारों पर लगाई जाने वाली सूखी लकड़ी, आग के प्रति बेहद संवेदनशील रसायनों से युक्त पेंट, रेफ्रिजरेटर, इनवर्टर, माइक्रोवेव, गैस का चूल्हा, चिमनी, एयर कंडीशनर, टीवी और सबसे प्रमुख पूरी इमारत की दीवारों के भीतर बिजली के तारों का संजाल है जो किसी शार्ट सर्किट की सूरत में छोटी-सी आग को बड़े हादसे में बदल डालते हैं।
दूसरा बड़ा संकट तंग रास्तों के किनारे पर ऊंची इमारतें बनाने की प्रवृत्ति ने पैदा किया है। ऐसी ज्यादातर इमारतों में शायद ही इसकी गंभीरता से जांच होती हो कि यदि कभी आग लग जाई तो क्या बचाव के साधन आसपास मौजूद हैं। कोई आपात स्थिति पैदा हो तो वहां निकासी का रास्ता है या नहीं, क्या वहां मौजूद लोगों को समय पर सचेत करने की प्रणाली काम कर रही है या नहीं।
कुछ और अहम कारण हैं जो शहरों में आग को हवा दे रहे हैं। जैसे, तकरीबन हर बड़े शहर में बिना यह जाने ऊंची इमारतों के निर्माण की इजाजत दे दी जाती है कि क्या उन शहरों के दमकल विभाग के पास जरूरत पड़ने पर उन इमारतों की छत तक पहुंचने वाली सीढ़ियां (स्काईलिफ्ट) मौजूद हैं या नहीं। मिसाल के तौर पर देश की राजधानी दिल्ली में दमकल विभाग के पास अधिकतम चालीस मीटर ऊंची सीढ़िया हैं, पर यहां इमारतों की ऊंचाई 100 मीटर तक पहुंच चुकी है।
कहने को तो देश के किसी भी हिस्से में कहीं भी किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधि अग्निशमन विभाग के अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) के बिना नहीं चल सकती। यह एनसीओ भी उन्हें सीधे नहीं मिलती। मिसाल के तौर पर दिल्ली में अग्निशमन विभाग को जब एमसीडी, एनडीएमसी या अन्य संबंधित एजंसियों से इसका आवदेन मिलता है, तो वे उन फैक्ट्रियों या संस्थानों की इमारतों में जाते हैं और जांच करने के बाद संतुष्ट होने पर एनओसी जारी करते हैं। लेकिन सभी जानते हैं कि इस प्रावधान की अनदेखी होती है। बताया तो यह भी जाता है कि इन विभागों के कर्मचारियों को पता भी रहता है कि किस संस्था या फैक्ट्री में कौन सा काम हो रहा है, लेकिन मिलीभगत कर सारी धांधलेबाजी की ओर से आंखें मूंद ली जाती हैं।