भाषाएं बचें तो कैसे?

भाषाओं का बनना और फिर खत्म होना मानव विकास क्रम का हिस्सा है। लेकिन

Update: 2022-01-07 06:45 GMT
भाषाओं का बनना और फिर खत्म होना मानव विकास क्रम का हिस्सा है। लेकिन हर भाषा बहुत सारे ज्ञान और नुस्खों को खुद में समाहित किए रखती है। भाषा की समाप्ति के साथ वह ज्ञान और नुस्खे भी मानव समाज से खो जाते हैँ। इसलिए विशेषज्ञ जो सुझाव देते हैं, उन पर अमल किया जाना चाहिए।
दुनिया भर में लगभग डेढ़ हजार भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैँ। ये बात एक अध्ययन से सामने आई है। उसके मुताबिक दुनिया भर में लगभग 7,000 से अधिक मान्यता प्राप्त भाषाएं हैं। अब उनमें से कई के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया में हुआ। उसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जरूरी हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो 40 वर्षों के भीतर बहुत सी भाषाएं खत्म हो सकती हैँ। अनुमान लगाया गया है कि हर महीने एक भाषा अपना अस्तित्व खो सकती है। लेकिन सवाल है कि हस्तक्षेप हो तो कैसे। भाषाओं का बनना और फिर खत्म होना मानव विकास क्रम का हिस्सा है। लेकिन हर भाषा बहुत सारे ज्ञान और नुस्खों को खुद में समाहित किए रखती है। भाषा की समाप्ति के साथ वह ज्ञान और नुस्खे भी मानव समाज से खो जाते हैँ। इसलिए विशेषज्ञ जो सुझाव देते हैं, उन पर अमल किया जाना चाहिए। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का सुझाव है कि बच्चों के पाठ्यक्रम को द्विभाषी के रूप में विकसित किया जाए। साथ ही क्षेत्रीय रूप से मजबूत भाषाओं के साथ-साथ प्राचीन भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए। शिक्षा, नीति, सामाजिक-आर्थिक संकेतकों और समग्र परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न भाषाओं के इस अध्ययन के लिए कई पैमानों को अपनाया गया।
ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। यह शोध रिपोर्ट नेचर इकोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुई है। अध्ययन में पाया गया कि विभिन्न भाषाओं के परस्पर संपर्क से स्वदेशी भाषाओं को खतरा नहीं है। बल्कि यह तथ्य है कि अन्य भाषाओं के संपर्क में आने वाली भाषाएं कम खतरे में हैं। अध्ययन रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया की लुप्तप्राय स्वदेशी भाषाओं को कैसे बचाया जाए, इस पर भी सिफारिशें की गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में स्वदेशी और प्राचीन भाषाओं के विलुप्त होने की दर दुनिया में सबसे अधिक है। इस महाद्वीप पर 250 भाषाएं बोली जाती थीं, लेकिन अब केवल 40 बची हैं। अगर अध्ययन हों, तो ऐसे निष्कर्ष दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी निकल सकते हैँ। गौरतलब है कि इस अध्ययन में भाषाओं के सामने आने वाले अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक खतरों की पड़ताल की गई। इसकी रिपोर्ट में अध्ययनकर्ताओं ने लिखा है कि जब कोई भाषा विलुप्त हो जाती है, या सो रही होती है (यानी वे भाषाएं जो अब बोली नहीं जातीं) तो हम मानव सांस्कृतिक विविधता का काफी हिस्सा खो देते हैं।
नया इण्डिया 
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