ये कैसी अमीरी

अमीर-गरीब के बीच चौड़ी होती खाई को बताने वाली आक्सफेम की नई रिपोर्ट आ गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अरबपतियों की संख्या और बढ़ गई है। सिर्फ एक साल के भीतर चालीस और लोग अरबपतियों की सूची में शुमार हो गए।

Update: 2022-01-19 03:00 GMT

अमीर-गरीब के बीच चौड़ी होती खाई को बताने वाली आक्सफेम की नई रिपोर्ट आ गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अरबपतियों की संख्या और बढ़ गई है। सिर्फ एक साल के भीतर चालीस और लोग अरबपतियों की सूची में शुमार हो गए। यानी भारत में अब एक सौ बयालीस अरबपति हैं और इनमें से बयालीस अरबपति पिछले साल (2021) में बने हैं।

भारत अपने इन अरबपतियों की बढ़ती संख्या पर खुश इसलिए हो सकता है क्योंकि दुनिया में भारत से ज्यादा अरबपति सिर्फ अमेरिका और चीन में हैं। ऐसे में कौन कहेगा कि भारत अमीरों का देश नहीं है! लेकिन एक देश के तौर पर हम कितने संपन्न हैं, यह भी कोई छिपा नहीं है। गरीबी की तस्वीर कहीं ज्यादा भयावह है। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि बढ़ते अमीरों के देश में गरीब और गरीब क्यों होते जा रहे हैं?

गौरतलब है कि स्विटजरलैंड के दावोस शहर में विश्व आर्थिक मंच का सालाना सम्मेलन शुरू हो चुका है। यह सम्मेलन हर साल इसी शहर में जनवरी के तीसरे हफ्ते में होता है। इसमें दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के राष्ट्र प्रमुख और उद्योगपति जुटते हैं और खासतौर से भविष्य की आर्थिकी को लेकर चर्चा करते हैं, रणनीतियां बनाते हैं। लेकिन साथ ही गरीबी का सवाल भी इसी समय उठता है। भारत में अमीर बढ़ रहे हैं, यह बात तो सुकून देती है, लेकिन उस सुकून से ज्यादा चिंताजनक और दुखदायी हकीकत यह है कि देश में गरीब और तेजी से गरीब हो रहे हैं और इनकी संख्या बढ़ रही है।

भारत में पिछले एक साल में बयालीस अरबपतियों का बढ़ जाना हैरानी इसलिए पैदा करता है कि क्योंकि इसी एक साल में देश में आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे चला गया। मोटे तौर पर गरीबों का यह आंकड़ा सात से दस करोड़ के बीच का है। कोरोना महामारी के दौर में पिछले साल यानी 2021 में करीब चौरासी फीसद लोगों की आय में भारी गिरावट आई। रोजाना कमाने-खाने वाले तबके पर तो असर पड़ना ही था, लेकिन उससे भी ज्यादा असर मध्यवर्ग पर पड़ा। छोटे-मोटे उद्योग-धंधे बंद हो गए। करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई। ऐसे में आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी के गर्त में चला गया।

भारत के सामने अब यह चुनौती और गंभीर हो गई है कि और लोगों को गरीबी के गड्ढे में गिरने से कैसे बचाया जाए। क्योंकि जिस तरह के आर्थिक हालात बने हुए हैं, उन्हें अभी पटरी पर लाने में लंबा समय लगेगा। कहने को सरकार ने पिछले दो साल में उद्योगों को कई तरह की रियायतें दी हैं। लेकिन इन सबसे गरीबों का कोई भला होता दिख नहीं रहा। कुछ महीनों के लिए मुफ्त राशन जैसे कदम गरीबों के लिए तात्कालिक मरहम तो साबित हो सकते हैं, पर गरीबी से उबारने में ये मददगार नहीं होते।

आज हालत यह है कि एक दिन में महज सौ-डेढ़ सौ रुपए भी नहीं कमा पाने वालों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है। यह बड़ा संकट है। बेरोजगारी और महंगाई ने गरीबी पर और हमला किया है। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमीर के और अमीर बनने के पीछे सरकारी नीतियां ही होती हैं। इसलिए ऐसी आर्थिक नीतियों की जरूरत है जो गरीबों को भी खुशहाली के रास्ते पर ले जाने वाली हों, यानी रोजगार पैदा करने वाली हों। काम होगा, हाथ में पैसा आएगा, तभी लोग गरीबी के चंगुल से निकल पाएंगे।



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