लता जी के एक नाराजगी भरे विरोध ने कैसे बदल दी गायिकी की दुनिया

लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने आज दुनिया को अलविदा कह दिया

Update: 2022-02-06 08:52 GMT

लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने आज दुनिया को अलविदा कह दिया. फिल्मी दुनिया ही नहीं पूरे देश में उनके लिए शोक है. उन्होंने भले ही 'प्लेबैक सिंगिंग' काफी समय से छोड़ दी हो पर उनकी लोकप्रियता जस की तस थी. सोशल मीडिया में लता जी खासी सक्रिय रहती थीं. वो बड़ी विनम्रता से अपने समकालीन कलाकारों की पुण्यतिथि या जन्मदिन पर उन्हें याद करती थीं. कई नए कलाकारों को जन्मदिन पर बधाई देती थीं. कई बार क्रिकेट के खेल को लेकर ट्वीट करती थीं. तमाम त्योहारों पर शुभकामनाएं देना भी वो नहीं भूलतीं थीं. इन सारी बातों के चलते लता जी आम लोगों से टच में रहती थीं. उनक स्वभाव के बारे में जानने के बाद यकीन नहीं होता कि कभी वो नाराज भी होती रही होंगी. कोई यह मान भी नहीं सकेगा कि किसी बात के विरोध करने के लिए उन्हें विद्रोह भी करना पड़ा होगा. लेकिन सच यही है कि लता मंगेशकर ने जरूरत पड़ने पर फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) में अपनी बात बड़ी मजबूती से रखी. बल्कि बेहद मीठी आवाज में गाने वाली लता मंगेशकर ने अपने अधिकारों के लिए विरोध के कड़े सुर भी लगाए. उनके इस विद्रोह का ही नतीजा है कि आज गायकों को भी सम्मान मिल रहा है. 6 दशक पहले किए गए इस कार्य के लिए देश के सभी प्लेबैक गायकों (Playback Singers) को उनका आभार व्यक्त करना चाहिए. ये सच है कि अगर उन्होंने आवाज ना उठाई होती तो शायद किसी और ने इस पर ध्यान भी नहीं दिया होता. और दूसरे लोग अगर आवाज उठाते भी तो उतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना लता जी के आवाज उठाने का हुआ. साथ ही ताकतवर संगीतकारों के सामने अपनी बात इतनी मजबूती से कहने की हिम्मत भी शायद हर किसी में नहीं थी.

क्यों नाराज हुईं लता मंगेशकर
दरअसल, ये कहानी बॉलिवुड के सबसे महत्वपूर्ण फिल्मफेयर अवॉर्ड से जुड़ी हुई है. फिल्मफेयर अवॉर्ड आज भी हिंदी फिल्मी दुनिया का बेहद प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है.
फिल्मफेयर अवॉर्ड देने की शुरूआत 1954 में हुई थी. इसी साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की भी शुरूआत हुई. 1954 में जब फिल्मफेयर अवॉर्ड शुरू हुए तो सिर्फ पांच कैटेगरी में पुरस्कार दिए गए. सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ संगीतकार. सर्वश्रेष्ठ गायक या गायिका को इस लायक नहीं समझा जाता था. 1954 में दो बीघा जमीन को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, बिमल रॉय को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, दिलीप कुमार को फिल्म दाग के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, मीना कुमारी को बैजू बावरा के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और नौशाद को बैजू बावरा के लिए ही सर्वश्रेष्ठ संगीतकार चुना गया था. विवाद के स्वर मुखर हुए 1957 में. फिल्म 'चोरी चोरी' के लिए संगीतकार शंकर जयकिशन को फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए चुना गया. जिस गाने के लिए उन्हें इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जा रहा था वो गाना था- 'रसिक बलमा'.
रसिक बलमा ने मचा दिया था तहलका
ये वही गाना था जो जाने माने निर्देशक महबूब खां अपनी बीमारी के दिनों में लॉस एंजिलिस में लता जी से फोन पर सुनते थे. देश भर में इस गाने की धूम मची हुई थी. लता जी को ढेर सारी तारीफ मिल रही थी. संगीतकार जयकिशन ने लता मंगेशकर से निवेदन किया कि वो अवॉर्ड सेरेमनी में 'रसिक बलमा' गाना गाएं. लता जी ने ये कहकर गाने से इंकार कर दिया कि फिल्मफेयर अवॉर्ड गाने के लिए संगीतकार को मिल रहा है ना कि गायक को इसलिए वो ये गाना कार्यक्रम के दौरान नहीं गाएंगी. उन्होंने कहा कि अगर आप लोग चाहें तो 'सेरेमनी' में गाने की धुन बजा लें. इस बात को लेकर शंकर जयकिशन और लता जी में मनमुटाव भी हुआ. बाद में ये बात कार्यक्रम के आयोजकों तक पहुंची तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. लता जी की बात बिल्कुल सही थी, लिहाजा अगले साल से 'प्लेबैक सिंगर्स' को भी फिल्मफेयर अवॉर्ड देने का फैसला लिया गया.
आजा रे परदेसी मैं तो कब से खड़ी इस पार के लिए मिला पहला अवॉर्ड
दिलचस्प बात ये भी है कि 1959 में जब पहली बार किसी गायक को फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए चुना गया तो वो कोई और नहीं इस अवॉर्ड में गायकों की लड़ाई लड़ने वाली लता मंगेशकर ही थीं. जिस गाने के लिए लता मंगेशकर को पुरस्कृत किया जाना था वो था- आजा रे परदेसी मैं तो कब से खड़ी इस पार. 1958 में आई फिल्म मधुमती का था जिसका निर्देशन बिमल रॉय ने किया था. ऋत्विक घटक और राजिंदर सिंह बेदी की लिखी इस फिल्म में दिलीप कुमार और वैजयंती माला मुख्य कलाकार थे. गीतकार शैलेंद्र थे. किवदंति है कि इस फिल्म के लिए बिमल रॉय एसडी बर्मन को बतौर संगीतकार लेना चाहते थे लेकिन बर्मन दादा ने खुद ही इसके लिए सलिल चौधरी का नाम सुझाया था. इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया.
8 साल बाद मेल और फीमेल कैटेगरी अलग-अलग हुई
1959 में फिल्मफेयर अवॉर्ड की 'ज्यूरी' बनाई तो उसमें 'प्लेबैक सिंगर' के लिए भी नाम चुने जाने को कहा. पर अगले 8 साल तक यानी 1967 तक इस 'कैटेगरी' में 'अवॉर्ड' तो मिलते थे लेकिन 'मेल' और 'फीमेल' सिंगर को अलग अलग नहीं बल्कि किसी एक प्लेबैक सिंगर को ही चुना जाता था. 1967 से ये बदलाव हुआ जब इस 'अवॉर्ड' के लिए 'मेल' और 'फीमेल सिंगर' को अलग अलग चुना जाने लगा. लता मंगेशकर ने बतौर प्लेबैक सिंगर अपने लंबे करियर में चार बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता। जिसमें मधुमती के आजा रे परदेसी के अलावा, कहीं दीप जले कहीं दिल (फिल्म-बीस साल बाद), तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा (फिल्म-खानदान) और आप मुझे अच्छे लगने लगे (फिल्म-जीने की राह) के लिए सम्मानित किया गया. इसके अलावा 1993 में लता जी को फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा 1994 में उन्हें फिल्म हम आपके हैं कौन के बेहद लोकप्रिय हुए गाने दीदी तेरा देवर दीवाना के लिए स्पेशल फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया गया था. उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया है.
शिवेन्द्र कुमार सिंह


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