कांग्रेस में युवाओं के लिए 50 फीसदी का आरक्षण संगठन को मजबूत करने में कितना होगा सक्षम
हाल में ही राजस्थान में खत्म हुए चिंतन शिविर में इस बात पर मंथन हुआ कि कांग्रेस से युवा दूर हो रहे हैं जिसका मुख्य कारण है
एस एम इमाम |
हाल में ही राजस्थान में खत्म हुए चिंतन शिविर (Udaipurs Chintan Shivir) में इस बात पर मंथन हुआ कि कांग्रेस (Congress) से युवा दूर हो रहे हैं जिसका मुख्य कारण है कि युवाओं को पार्टी तरजीह नहीं दे रही है. कांग्रेस ने अपने उदयपुर नव संकल्प पत्र में इस बात का ऐलान किया है की पार्टी के 50 फ़ीसदी पद 50 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिए आरक्षित किया जाएगा. इसका मकसद यह है कि बूथ स्तर से लेकर कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) में युवाओं को जगह देने का प्रयास होगा. पार्टी को लग रहा है कि देश मैं युवा ही देश की सही नब्ज बता सकते हैं. युवा क्या सोचते हैं इसे जानने के लिए पार्टी नए सिरे से अपनी तैयारी कर सकती है.
हालांकि उदयपुर चिंतन शिविर में पार्टी ने तय किया है कि वह सामाजिक और आर्थिक मुद्दे को लेकर ही भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर सकती है. भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व की काट को लेकर पार्टी में काफी विचार विमर्श किया गया लेकिन नव संकल्प पत्र में यह तय हुआ की पार्टी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीजेपी के खेल से दूर रहकर सामाजिक संरचना के काम को अंजाम देगी. यही पार्टी का राजनीतिक उद्देश्य भी होगा जिसके लिए युवाओं का पार्टी से जुड़ना अत्यंत महत्वपूर्ण है.
कांग्रेस कार्यसमिति में युवाओं को जगह देने की चुनौती
कांग्रेस के भीतर संगठन के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. अक्टूबर तक नए अध्यक्ष का चुनाव भी हो जाएगा लेकिन पार्टी के लिए एक गंभीर चुनौती है कि कांग्रेस के कार्यसमिति में किस तरह से युवाओं को जगह दी जाएगी. पार्टी में एक धड़ा जिसको जी 23 के नाम से भी जानते हैं का स्पष्ट कहना है कि कांग्रेस के कार्य समिति का चुनाव होना चाहिए जिसमें आधे सदस्य चुनाव के जरिए कार्यसमिति में आए और पार्टी को नामांकन की प्रक्रिया को समाप्त कर देना चाहिए.
हालांकि उदयपुर नव संकल्प में पार्टी ने एक सलाहकार परिषद के गठन की बात कही गई थी जिसकी शुरुआत भी हो गई है. जो कांग्रेस के अध्यक्ष को समय-समय पर विभिन्न मुद्दों पर सलाह देती रहेगी लेकिन इसकी मुख्य मांग पार्लियामेंट्री बोर्ड की बहाली का था जिसको लेकर पार्टी की तरफ से अभी कुछ नहीं कहा जा रहा है. बहरहाल बात युवाओं की हो रही है युवाओं को पार्टी किस तरह अपने सांगठनिक ढांचे में समावेशित करेगी. पार्टी के उच्च स्तरीय सूत्र बता रहे हैं की इस काम को 6 से 8 महीने में पूरा कर लिया जाएगा. जिसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने उम्मीदवार तय करना शुरू करेगी. आपको बताते चलें की कांग्रेस के नेताओं में एक राय यह बन रही है की पार्टी लोकसभा चुनाव में भी 50 वर्ष से कम उम्मीदवार को ही मैदान में उतारे ताकि पार्टी को आगे नए लोगों की तलाश फौरन ना करना पड़े. जिसके लिए 30 से 50 वर्ष के उम्मीदवार पार्टी की तरफ से उतारे जाएंगे. हालांकि लोकसभा चुनाव काफी दूर है लेकिन पार्टी की खस्ता हालत को देखते हुए चुनाव की तैयारियों को लिए एक चुनाव प्रबंधन समिति का गठन भी किया जा रहा है. जिसमें ऐसे लोगों को शामिल किया जाएगा जो अब से लेकर लोकसभा चुनाव तक पार्टी के लिए चुनाव की तैयारी ही करेगी . चुनाव प्रबंधन समिति जिसका मुख्य काम यह होगा कि वो विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन तकरीबन 6 महीने पहले कर ले और पार्टी को ऐन वक्त पर उम्मीदवारों की तलाश ना करनी पड़े.
समय पर उम्मीदवारों को टिकट न मिलना
कांग्रेस की हार का मुख्य कारण जो बताया जा रहा है की पार्टी समय पर उम्मीदवारों को टिकट नहीं देती है . जो समय के अभाव में तैयारी नहीं कर पाते , पार्टी के भीतर संगठन का ढांचा काफी कमजोर है जैसे कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी ने नए उम्मीदवारों को मौका तो दिया लेकिन टिकट के एलान में देरी करने की वजह से उम्मीदवारों को वक्त नहीं मिल पाता. प्रदेश में संगठन भी कमजोर है जिसकी वजह से उम्मीदवारों को संगठन की तरफ से मायूसी ही हाथ लग पाई है. हालांकि प्रियंका गांधी ने जिस तरह उत्तर प्रदेश की चुनौती को स्वीकार किया और हारी हुई लड़ाई भी चुनौतीपूर्ण ढंग से लड़ीं उससे पार्टी की उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव तक पार्टी को मजबूती जरूर मिलेगी.
लेकिन पार्टी का मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से हुआ तो बीजेपी के पास जिस तरह के संसाधन और संगठन है उसका मुकाबला करने के लिए पार्टी को अभी और ज्यादा मजबूती होने की जरूरत है. बात करते हैं लोकसभा चुनाव की ही जिसमें जिसमें पार्टी की लगातार दूसरी हार हुई है और पहली बार कांग्रेस 100 सीटों से नीचे 2014 के चुनाव में पहुंची और 2019 में फिर वैसा ही नतीजा देखने को मिला कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी का 200 सीटों पर बीजेपी से सीधा मुकाबला करना है. जिसके लिए वह तैयारी अभी से करनी है और जो बाकी बची सीटॆ हैं उसमें गठबंधन और तालमेल के जरिए मैदान में उतरने की कोशिश करेगी. लेकिन जिन प्रदेशों में पार्टी के पास गठबंधन की सरकार चल रही हैं जैसा कि तमिलनाडु -महाराष्ट्र और झारखंड में है वहां पर पार्टी अपने सहयोगी दलो के साथ मैदान में उतरेगी लेकिन पार्टी के पास सबसे बड़ी समस्या पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में है जहां पर पार्टी विधानसभा चुनाव में लगभग शून्य की स्थिति में है. ऐसे में पार्टी के पास इन प्रदेशों में गठबंधन किसके साथ किया जाए यह एक बड़ी चुनौती रहेगी. आंध्र प्रदेश में तेलुगूदेशम पार्टी विपक्ष में है लेकिन तेलुगूदेशम पार्टी क्या कांग्रेस के साथ गठबंधन करेगी यह सवाल भी पार्टी के सामने बड़ा है.
पश्चिम बंगाल में भ्रम की स्थिति
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और कांग्रेस एक साथ नहीं है. हालांकि बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जाने के लिए कवायद की थी लेकिन कांग्रेस ने वामपंथी पार्टियों के साथ गठबंधन किया जिसका नतीजा सिफर रहा. हालांकि स्टेट के नेता चाहते थे टीएमसी के साथ गठबंधन किया जाए लेकिन पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी इसके खिलाफ थे दूसरा दूसरा बड़ा राज्य बिहार है जहां पर पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ तो है लेकिन रिश्ते में उठापटक चल रही है खासकर के विधानसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे आए उसकी वजह राष्ट्रीय जनता दल ने माना कि कांग्रेस की हार से उनकी प्रदेश में सरकार नहीं बन पाई है, कांग्रेस 70 सीटों में लड़ने के बाद कुल 19 सीटें जीतने में सफल रही और गठबंधन के हारने का मुख्य कारण बन गई.
बहरहाल कांग्रेस अब बीती बातें छोड़ कर आगे बढ़ने की तैयारी कर रही है. पार्टी का स्पष्ट मानना है कि नए सिरे से पार्टी का प्रयास बेकार नहीं जाएगा. एक बार पार्टी से अगर युवा पीढ़ी जुड़ गई तो भारतीय जनता पार्टी को हराना मुश्किल नहीं होगा. हालांकि पार्टी का प्रयास परंपरागत तरीके से हो रहा है क्योंकि युवा की तलाश नए मुद्दे और नए नरेटिव की है. और बीजेपी के पास इस तरह के मुद्दे की भरमार है.