Vijay Garg: रपट में कहा गया है भारत में गरीबी और पोषण से संबंधित विभिन्न अध्ययन रपटों में यह तथ्य रेखांकित हो रहा है कि गरीबी में लगातार कमी आ रही है, लेकिन लोगों के भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी चुनौती बनी हुई है। 'स्टेट बैंक आफ इंडिया रिसर्च' द्वारा गरीबी पर जारी गरीबों को सीधे लाभान्वित करने वाले सरकारी सहायता कार्यक्रमों के कारण गरीबी में कमी आई है। वहीं विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति (सोफी) रपट 2023 में कहा गया है कि भारत में पोषण की स्थिति चुनौतीपूर्ण है। वर्ष 2020 और 2022 के बीच 7.4 करोड़ लोग अल्पपोषण के शिकार थे। इस रपट का विश्लेषण दर्शाता है कि रोजाना दो बार भोजन की परिभाषा के अनुसार भारत में भूख की समस्या तुलनात्मक रूप से कम हुई है। यानी आबादी के बड़े हिस्से की अनाज संबंधी जरूरतें मोटे तौर पर पूरी पूरी हो रही हैं। मगर पोषक की कमी बनी हुई है। इसी प्रकार वैश्विक भूख सूचकांक 2023 में 125 देशों के बीच भारत को 111वां स्थान दिया गया है।
एसबीआइ रिसर्च की रपट में कहा गया है कि गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है। जहां वर्ष 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 फीसद और शहरी गरीबी 13.7 फीसद थी, वहीं वर्ष 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घट कर 4.86 फीसद और शहरी गरीबी घट कर 4.09 फीसद पर आ गई। इस रपट के मुताबिक पिछले 14 वर्ष में आमदनी बढ़ने से, जहां शहरों में हर माह प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता खर्च (एमपीसीई) 3.5 गुना हो गया, वहीं यह ग्रामीण इलाकों करीब चार चार गुना हो गया है। वर्ष 2009-10 2023-24 के बीच शहरी इलाकों में उपभोक्ता खर्च 1984 रुपए से बढ़ कर 6996 रुपए और ग्रामीण इलाकों में यह 1054 रुपए से बढ़ कर 4122 रुपए हो गया। ऐसे में शहरों की तुलना में गांवों में यह खर्च ज्यादा है।
गौरतलब है कि बीती चार जनवरी को प्रधानमंत्री ने ग्रामीण भारत महोत्सव 2025 को संबोधित करते हुए कहा था देश में ग्रामीण गरीबी तेजी से कमी आ रही है। यह पिछले वर्ष 2024 में घट कर पांच फीसद से भी कम रह गई है। साथ ही ग्रामीणों की आमदनी और क्रयशक्ति बढ़ी है। गांवों के लाखों घरों को पीने का साफ पानी मिल रहा है। लोगों को डेढ़ लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं। डिजिटल तकनीक की मदद से बेहतरीन डाक्टर और अस्पताल भी गांवों से जुड़ रहे हैं। पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए देश को किसानों को तीन लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी जा रही है। बीते दस वर्षों में कृषि ऋण साढ़े तीन गुना बढ़ गए हैं। अब पशुपालकों और मछली पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिए जा रहे हैं। बीते दस वर्षों में फसलों पर दी जाने वाली सबसिडी और फसल बीमे की राशि को बढ़ाया गया है। स्वामित्व योजना जैसे अभियान चलाए गए हैं, जिनके जरिए गांवों के लोगों को संपत्ति के दस्तावेज दिए जा रहे हैं। गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, 'स्टार्टअप इंडिया' और 'स्टैंड अप इंडिया' जैसी योजनाओं के जरिए मदद की जा रही है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 80 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने उनकी गरीबी को कम करने अहम भूमिका निभाई है। सरकार ने पीएमजीकेएवाई के तहत गरीबों को 2028 तक मुफ्त अनाज दिया जाना सुनिश्चित किया है। इसमें कोई दो मत नहीं कि देश में गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को व्यवस्थित में रूप से निशुल्क खाद्यान्न वितरित किए जाने में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की भूमिका प्रभावी बनाई गई है। देश भर में मौजूदा पांच लाख से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से निशुल्क खाद्यान्न वितरण किया जाता है। वर्ष 2016 से राशन की दुकानों में पाइंट आफ सेल (पीओएस) मशीनों की शुरुआत से रिसाव में कमी आई है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि डिजिटल इंडिया, स्वच्छ पेयजल और आयुष्मान भारत योजना और स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना अभियानों से देश में गरीबी में कमी आ रही है। खासतौर से करीब 54 करोड़ से अधिक जनधन खातों, करीब 138 करोड़ आधार कार्ड और करीब 115 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं की शक्ति से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचा गरीबों के सशक्तीकरण में असाधारण भूमिका निभा रहा है। इसके बल पर देश गरीब लोगों के खातों में सीधे राहत राशि हस्तांतरित हो रही है। वर्ष 2014 से वर्ष 2024 तक 40 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि डीबीटी से लाभार्थियों के खातों में सीधे जमा हो चुकी है। इन सबसे गरीबी में बड़ी कमी आई है और ग्रामीण भारत विशेष रूप से लाभान्वित हुआ है।
वैश्विक रपटों में भी भारत में गरीबों के सशक्तीकरण और विकास से गरीबी में कमी आने और उत्पादकता में वृद्धि होने के विश्लेषण प्रस्तुत किए जा रहे हैं। विश्व बैंक की दुनिया में गरीबी संबंधी रपट में कहा गया है कि भारत में अत्यधिक गरीबों की संख्या वर्ष 1990 में 43.1 करोड़ थी। यह घटते हुए 2021 में 16.74 करोड़ रह गई और वर्ष 2024 में करीब 12.9 करोड़ ही गई है। नीति आयोग की तरफ मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) 2024 के मुताबिक पिछले दस वर्षों में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। दुनिया के ख्यात अर्थशास्त्री थामस पिकेटी का कहना है कि भारत में तेजी से बढ़ता विकास आम आदमी की आमदनी बढ़ा रहा है और गरीबी में तेजी से घटने की प्रवृत्ति उभर रही है।
लोक कल्याणकारी योजनाओं से गरीबी और भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायता मिली है, लेकिन अभी भी बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब 15 करोड़ से अधिक गरीबों को सरकार के लक्ष्य के मुताबिक वर्ष 2030 तक गरीबी से बाहर लाने के लिए और अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत है। हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि यद्यपि गरीबों के सशक्तीकरण के साथ देश में प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ी है, लेकिन अभी भी भारत दुनिया के उन प्रमुख दस देशों में शामिल जहां बीते बीस वर्षों में लोगों की आय में असमान इजाफा हुआ है। देश करोड़ों गरीबों के लिए हमें ऐसी नीतियां चाहिए, जो उनके लिए पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन के वितरण, उपलब्धता तय करने और उसे किफायती रखने में मददगार हो सकें।
उम्मीद है कि सरकार वर्ष 2025 में देश से गरीबी और घटाने के लिए सशक्तीकरण योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन के साथ नई योजनाओं और नए रणनीतिक प्रयासों के साथ आगे बढ़ेगी। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार देश में बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब पंद्रह करोड़ से अधिक लोगों को 2030 तक गरीबी से बाहर लाने के लक्ष्य पर ध्यान देगी।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब