मुफ्त अनाज कितना जरूरी?

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ़्त अनाज दिसंबर के बाद भी एक साल तक मिलता रहेगा।

Update: 2022-12-27 12:45 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वबेडेस्क | प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ़्त अनाज दिसंबर के बाद भी एक साल तक मिलता रहेगा। कथित गरीबों के लिए एक और सुखद ख़बर है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल के तौर पर जो अनाज उपलब्ध कराया जा रहा था, वह भी अब जनवरी, 2023 से एक साल तक 'बिल्कुल मुफ़्त' बांटा जाएगा। सरकार के रिकॉर्ड में जो लोग 'गरीब' के तौर पर दर्ज हैं, उनकी बल्ले-बल्ले हो गई है। दरअसल भारत सरकार का यह सरोकार नहीं है कि मुफ़्त अनाज के कितने लाभार्थी ऐसे गेहूं, चावल को बाज़ार में बेच देते हैं, क्योंकि उन्हें वह अनाज 'घटिया' लगता है। मोदी सरकार अपना डाटा 'जनवादी' बनाए रखना चाहती है कि वह 81.35 करोड़ गरीब नागरिकों को बिल्कुल मुफ़्त अनाज मुहैया करा रही है। बेशक अर्थव्यवस्था पर इसके व्यापक विपरीत प्रभाव न पड़ें और वित्तीय घाटा भी परिधियों के बाहर न हो, लेकिन कुछ सवाल लगातार पूछे जा रहे हैं कि कोरोना-काल के बाद आर्थिक गतिविधियां सामान्य होने के बावजूद मुफ़्त अनाज बांटते रहना क्या और क्यों जरूरी है? यदि 81 करोड़ से अधिक लोगों को 5 किलो मुफ़्त अनाज, प्रति व्यक्ति प्रति माह, मुहैया नहीं कराया जाएगा, तो क्या वे भूखे मर जाएंगे? क्या भारत में इतनी गरीबी और संभावित भुखमरी के हालात हैं?

तो फिर गरीबी उन्मूलन योजनाओं का क्या हो रहा है? नि:शुल्क अनाज की अवधि बढ़ाने से देश के खजाने पर 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का जो अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, उसके फलितार्थ क्या होंगे? बहरहाल इन दोनों योजनाओं को मिला दें, तो करीब 10 करोड़ टन अनाज मुफ़्त बांटना पड़ेगा। यह भारत के कुल अनाज उत्पादन का एक-तिहाई होगा। बीती 1 दिसंबर तक केंद्रीय पूल में, गेहूं और चावल के मौजूदा भंडारण, करीब 5.54 करोड़ टन थे। यह एक साल पहले के भंडारण की तुलना में एक-तिहाई से भी कम अनाज है। भारतीय खाद्य निगम के भंडारण में इतना भी अनाज नहीं है, जितना कोरोना-काल के लॉकडाउन के बाद था। उस अनाज को लोगों में वितरित किया गया। बेशक आजकल कोरोना वायरस की वापसी की संभावनाएं और आशंकाएं जताई जा रही हैं, लेकिन आर्थिक गतिविधियां और उत्पादन बदस्तूर जारी हैं, लिहाजा यह सवाल स्वाभाविक है कि सरकार कब तक मुफ़्त अनाज बांटती रहेगी? कमोबेश यह गरीबी और बेरोजग़ारी का वैकल्पिक समाधान नहीं है। दरअसल यह मोदी सरकार का राजनीतिक तौर पर बेहद चतुर निर्णय है। बेशक भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान मुफ़्त अनाज मुहैया कराने का प्रचार करे या न करे, लेकिन प्रतीकात्मक तौर पर लोगों के मानस पर इसका प्रभाव रहता ही है। भाजपा कई चुनावों में इस फॉर्मूले को आजमा चुकी है। खासकर महिलाओं पर इस योजना का जबरदस्त सकारात्मक प्रभाव देखा गया है, नतीजतन महंगाई, बेरोजग़ारी, किसानी, असंतोष, सांप्रदायिकता आदि मुद्दों के बावजूद भाजपा को जनादेश मिलता रहा है।

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