बदलाव की उम्मीद
जब कभी इस पद पर कोई नया व्यक्ति आता है तो उससे नई उम्मीदें लगाई जाती हैं, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से भी लगाई जा रही हैं। शपथ लेने के पहले और उसके बाद उन्होंने कई बातें कही हैं और कुछ संकेत दिए हैं जिनसे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे क्या कुछ नया कर सकते हैं।
Written by जनसत्ता: जब कभी इस पद पर कोई नया व्यक्ति आता है तो उससे नई उम्मीदें लगाई जाती हैं, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से भी लगाई जा रही हैं। शपथ लेने के पहले और उसके बाद उन्होंने कई बातें कही हैं और कुछ संकेत दिए हैं जिनसे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे क्या कुछ नया कर सकते हैं।
जहां तक एक प्रधान न्यायाधीश के कुछ कर पाने का सवाल है, तो हाल का अनुभव यह है कि इस पद पर ज्यादातर न्यायाधीशों का कार्यकाल ज्यादा नहीं रहा। लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के पास भरे पूरे दो साल हैं। इसलिए उम्मीद लगाई जा सकती है कि वे जो कुछ करना चाहेंगे, उसे कर पाएंगे। शपथ लेने के पहले उन्होंने काफी कुछ कहा जिससे उनकी प्राथमिकताओं का अंदाजा लगता है। इसके अलावा उनकी पृष्ठमूमि और कार्यशैली के आधार पर भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में न्यायपालिका में क्या बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
देश को एक ऐसे प्रधान न्यायाधीश मिले हैं जो मानते हैं कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परिपूर्ण नहीं हो सकती, लेकिन हमारे पास इसे उन्नत करने की अच्छी गुंजाइश है क्योंकि हमारी न्याय व्यवस्था में अभी भी उपनिवेश काल के लक्षण हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इसे ज्यादा पारदर्शी और नागरिकों के लिए सरल बनाने की बात कही है। यानी आगे यह देखा जाना महत्त्वपूर्ण होगा कि न्याय प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी कैसे बनेगी।
प्रधान न्यायाधीश की कही एक और बात से यह संकेत भी मिलता है कि उनकी विचार व्यवस्था के केंद्र में देश का नागरिक होगा। बहुत संभव है कि उनके नेतृत्व में भारतीय न्याय व्यवस्था को अब हम सामान्य नागरिकों के हित में कुछ उदार होते हुए देखें। यह उम्मीद इस आधार पर भी लगाई जा सकती है कि कार्यभार संभालने के पहले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ महात्मा गांधी को नमन करने गए। महात्मा गांधी ने कहा था कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। इस तरह एक गुंजाइश यह बन सकती है कि कठोर दंड की बजाय अब उदारता के साथ अपराधियों के सुधार के कुछ प्रयोग होते दिखें।
न्यायपालिका में समयानुकूल एक और सुधार की उम्मीद भी लगाई जा सकती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव का भी जिक्र किया है। इस सिलसिले में गौर करने की बात यह है कि उन्होंने न्यायतंत्र में भी समयानुकूल प्रशिक्षण की जरूरत की तरफ इशारा किया है। अगर न्याय कार्य में प्रबंधन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का संकेत मिला है तो एक उम्मीद यह भी लगाई जा सकती है कि न्यायालय में प्रशासनिक कार्यो में प्रौद्योगिकी का प्रयोग बढ़ेगा।
हो सकता है कि अब अदालतों में प्रशिक्षित प्रबंधकों की नियुक्ति का कार्य आगे बढ़ता दिखाई दे। बेशक इससे अदालतों में लंबित मामलों का बोझ कम करने में बहुत मदद मिलेगी। जहां तक न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की न्यायिक और अकादमिक पृष्ठभूमि का पहलू है तो यह पहले से ही माना जाता है कि वे न्याय दर्शन के विद्वान हैं, न्याय सिद्धांत के एक संजीदा अध्येता हैं। इस आधार पर बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में हमें कुछ ऐसे फैसले देखने को मिलें जो नजीर बन जाएं। खासतौर पर मानवाधिकारों या नागरिक अधिकारों के जटिल मामलों में न्यायोचित उदारता बढ़ने की भी उम्मीद लगाई जा सकती है। सकारात्मक बदलाव की इतनी उम्मीदें लगाई जा रही हैं तो जल्द ही हमें यह भी देखने को मिल सकता है कि सामान्य नागरिकों के हित के प्रकरणों में सर्वोच्च न्यायलय में अब स्वत संज्ञान के मामले बढ़ते दिखाई दें।