Hijab Controversy : पहली बार कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब को धार्मिक की जगह सांस्कृतिक रिवाज घोषित किया

कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है

Update: 2022-03-17 09:14 GMT
अशोक बागड़िया.
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है. अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा है कि 'हिजाब (Hijab) पहनना इस्लाम (Islam) के अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित अधिकार नहीं है.' तीन जजों की बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा कि 'स्कूल यूनिफॉर्म पहनने का नियम वाजिब पाबंदी है, संवैधानिक तौर पर जायज़ है, जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते.'
हाईकोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि फरवरी, 2022 को कर्नाटक सरकार द्वारा जारी आदेश को अमान्य ठहराने का कोई आधार नहीं बनता है, क्योंकि उसके पास ऐसा करने की शक्ति है. कर्नाटक सरकार ने आदेश जारी कर स्कूलों-कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाले पहनावे पर प्रतिबंध लगा दिया था. राज्य सरकार के इस आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.
कई मायनों में खास है हाईकोर्ट का फैसला
संतुलित और तार्किक मान्यता के आधार पर पहली बार कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब को धार्मिक प्रथा मानने से इनकार किया है और इसे सांस्कृतिक रिवाज माना है. कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला चार मायनों में महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, यह कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने से जुड़े विवाद को विराम देता है. इस साल की शुरुआत में वहां यह मामला सांप्रदायिक मुद्दे में तब्दील हो गया था. दूसरा, हाईकोर्ट ने आधिकारिक रूप से फैसला लिया है कि हिजाब पहनना 'इस्लाम के तहत आवश्यक धार्मिक प्रथा' नहीं है. अदालत ने कहा कि 'इस परिधान को पहनने की प्रथा का अधिक से अधिक संस्कृति से कुछ लेना-देना हो सकता है, लेकिन निश्चित तौर पर धर्म से नहीं.'
पहले भी अदालतों ने ईसाई स्कूल या अल्पसंख्यक समुदाय के संस्थानों में मुस्लिम लड़कियों द्वारा हिजाब पहनने के अधिकार से जुड़े कई पहलुओं पर विचार किया है. क्या अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के दौरान हिजाब पहनने की अनुमति दी जा सकती है? कौन सी बातें आवश्यक धार्मिक प्रथा के रूप में शामिल हैं? यह पहली बार है जब किसी हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम में आस्था रखने के लिए जरूरी नहीं है.
तीसरा, कोर्ट ने कहा है कि कक्षा में बैठने की एक आचार संहिता होती है, विद्यार्थियों को इसका पालन करना चाहिए. स्कूल या कॉलेज के अधिकारियों द्वारा स्कूल यूनिफॉर्म तय करना तर्कपूर्ण प्रतिबंध है और संवैधानिक रूप से मान्य भी, इस पर कोई विद्यार्थी आपत्ति नहीं जता सकता. और अंत में, यह फैसला स्कूल, यूनिफॉर्म, हिजाब और महिला मुक्ति के विचार पर आधारित विवादास्पद और रूढ़िवादी दावों और न्यायाधीशों की धारणाओं से भरा है. हाईकोर्ट के फैसले से पहले इस सवाल पर अनिश्चितता थी कि क्या हिजाब पहनना इस्लाम के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है. इस सवाल का जवाब देते हुए हाईकोर्ट ने कुरान के साथ विभिन्न न्यायविदों और इस विषय के जानकारों की बातों पर भरोसा किया.
कोर्ट ने कुरान और एक्सपर्ट की राय को बनाया आधार
कुरान और इस मामले के जानकारों की टिप्पणियों को आधार मानते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि हिजाब पहनना कल्चर का हिस्सा है, न कि धार्मिक. अदालत ने कहा, "इस्लाम की शुरूआत से पहले के युग को जाहिलिया यानि बर्बरता और अज्ञानता के समय के तौर पर जाना जाता है. कुरान 'निर्दोष महिलाओं के साथ छेड़छाड़' के मामलों पर चिंता जाहिर करता है और इसलिए इसमें सामाजिक सुरक्षा के उपाय के तौर पर हिजाब और अन्य परिधानों को पहनने की सिफारिश की गई है.
संभव है कि आगे चलकर धर्म के कुछ तत्व इस प्रथा में शामिल हो गए हों, जैसा कि आमतौर पर किसी भी धर्म में होता है. दरअसल हिजाब पहनना इस्लाम के लिए जरूरी धार्मिक रिवाज का हिस्सा नहीं है. यह मानना उचित होगा कि हिजाब पहनने की प्रथा का गहरा संबंध उस क्षेत्र में प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों से था. यह महिलाओं के लिए अपने घरों से बाहर निकलने का सुरक्षित तरीका था."
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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