हेमिंग्वे के अनगिनत प्रेम और हिंदी का महान लेखक
"बहुत सालों तक रोज मेरी मां लिविंग रूम में अकेली बैठी पिता के घर लौट आने का इंतजार करती रही."
मनीषा पांडेय "बहुत सालों तक रोज मेरी मां लिविंग रूम में अकेली बैठी पिता के घर लौट आने का इंतजार करती रही."
इस वाक्य से शुरू होता है ओरहान पामुक के संस्मरण 'इस्तांबुल: मेमॉयर एंड द सिटी' का आखिरी अध्याय- 'ए कॉन्वर्सेशन विद माय मदर.'
पूरा अध्याय ओरहान के उस दौर की कहानी है, जब वो मां से लड़कर पूरी-पूरी रात अकेले इस्तांबुल की सड़कों पर भटकते रहते और देर रात घर लौटकर अपना पहला उपन्यास 'cevdet bay and his sons' लिखते. बीच-बीच में मां से लंबी बहसें और बातचीत है. मां चाहती थी कि ओरहान आर्टिस्ट बनने का ख्याल छोड़कर आर्किटेक्चर की अपनी पढ़ाई पूरी कर ले.
और इस नरेटिव के बीच में ओरहान कुछ वाक्य ऐसे लिखते चलते हैं, जिन्हें मैं ठहर-ठहरकर, कुछ और ज्यादा पा लेने की उम्मीद में पढ़ती हूं.
"शादी के कुछ सालों बाद, जब मेरा और मेरे भाई का जन्म हो चुका था, पिता ने बड़ी निर्ममता से मां का दिल तोड़ना शुरू कर दिया. वो घर से बाहर अपना बहुत सारा वक्त अपनी मिस्ट्रेस के साथ गुजारते. सालों तक मां देर रात पिता के लौटने का इंतजार करती बैठी रहतीं…. एक बार मां ने उस दूसरे ठिकाने का पता लगा लिया था, जहां पिता अकसर जाया करते थे. एक दिन अपने दो छोटे बच्चों की हथेलियां दोनों हाथों में थामे मां उस घर तक जा पहुंची थी, जहां उन्होंने मसहरी के अंदर पिता को दूसरी स्त्री के साथ निर्वस्त्र देख लिया था."
ऐसे सिर्फ चंद वाक्य हैं उस किताब में. मां की कहानी का थोड़ा और नरेटिव उनके निबंधों की दूसरी किताब 'अदर कलर्स' में भी आता है, जब पिता अपनी प्रेमिका के साथ पेरिस जाकर रहने लगे थे और मां चिहांगीर के उस आलीशान अपार्टमेंट की खिड़की से कूदकर जान दे देना चाहती थीं. दोनों बच्चों ने खिड़की पर आधी झुकी मां के पैर पकड़ रखे थे.
ओरहान ने अपनी मां की कहानी में जितना इंतजार लिखा था, मैंने उससे कहीं लंबा पढ़ा. इतना लंबा कि कई बार सिर्फ इंतजार पढ़ने में पूरा दिन, पूरी रात गुजर सकती थी. उतने साल भी, जितने साल मां ने इंतजार में काटे थे.
उसे पढ़ते हुए मैंने वो सब भी पढ़ा, जो लिखा नहीं गया था, जैसे इस्तांबुल के सबसे पॉश इलाके चिहांगीर के पांच बेडरूम वाले जिस विशालकाय अपार्टमेंट की खिड़की से बॉस्फोरस दिखता था, वो घर, वैभव, संपदा सब पिता की थी. दादा ने रेलरोड्स बनाकर अकूत दौलत कमाई थी और दादा की कमाई वो सारी दौलत पिता को मिली थी. पिता से ओरहान को, क्योंकि जिस खाली पड़े मेरहमत अपार्टमेंट में केमाल एक अमीर लड़की से सगाई करने के बाद अपनी दूर की रिश्तेदार फुजुन से मिलता और सेक्स करता है और फिर उसे छोड़ देता है और फिर उस गिल्ट में अपने अपराध बोध की गौरव कथा ('द म्यूजियम ऑफ इनोसेंस') लिखता है, वो भी ओरहान को विरासत में मिली मुफ्त की संपदा थी.
सबको संपदा मिली थी, मां को इंतजार.
ओरहान पामुक का संस्मरण 'इस्तांबुल: मेमॉयर एंड द सिटी' और उपन्यास 'द म्यूजियम ऑफ इनोसेंस'
'द म्यूजियम ऑफ इनोसेंस' केमाल के सेल्फ ऑब्सेशन की कहानी है, लेकिन उसमें भी मैंने सिर्फ फुजुन की कहानी पढ़ी. एक गरीब, निरीह, मासूम सी लड़की, जिसे उसके दूर का अमीर रिश्तेदार अपने महंगे फ्लैट में बुलाकर उसके साथ सेक्स करता है और फिर छोड़ देता है. फिर उसे इलहाम होता है कि अरे, मुझे तो उस लड़की से प्यार हो गया है. फिर वो उस बिछड़े हुए प्यार की याद में उसकी निशानियां जमा करता फिरता है और स्मृतियों का म्यूजियम बना डालता है. लेखक के लिए वो 'इन्नोसेंस' का म्यूजियम था. मुझे केमाल (पामुक) इन्नोसेंट नहीं लगा.
मैंने वो कहानी वैसे ही पढ़ी, जैसे 17 साल की उम्र में पुनरुत्थान पढ़ते हुए नेख्लोदोव की नहीं, कात्यूशा मास्लोवा की कहानी पढ़ी थी. वो गरीब नौकरानी, जिसके साथ अमीर जमींदार रेप करता है और फिर अपरोध बोध में मरा जाता है. बलात्कार से पैदा हुए अनचाहे बच्चे को पाल रही गरीब नौकरानी, जो तोल्स्तोय की तरह पांच हजार एकड़ जमीन की मालकिन नहीं थी, तोल्स्तोय ने उसकी त्रासदी तो बताई थी, लेकिन जितनी आसानी से नेख्लोदोव को माफी देकर पूरे उपन्यास में उसके अपराध बोध और उससे उपजी महानता का आख्यान लिखा था, उसे पढ़ते हुए मैं यही सोचती थी कि ये कहानी तोल्स्तोय की जगह कात्यूशा मास्लोवा ने लिखी होती तो भी क्या ऐसे ही लिखती.
तोल्स्तोय ने जितना लिखा था, पढ़ते हुए मैंने उससे ज्यादा ही पढ़ा. वो भी जो तोल्स्तोय लिखने से चूक गए थे.
गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज का उपन्यास 'मेमोरीज ऑफ माय मेलंकली होर्स' पढ़ते हुए मैंने उस 90 साल के बूढ़े की कहानी नहीं पढ़ी, मैंने 14 साल की उस लड़की की कहानी पढ़ी, जो वेश्या थी. मैंने वो कहानी पढ़ी, जो मार्खेज ने सुनाई भी नहीं थी क्योंकि वो 14 साल की लड़की की कहानी नहीं सुना रहे थे. वो बूढ़े के महान प्रेम की कहानी सुना रहे थे.
फिर मैंने वो कहानी अपने कुछ साहित्यकार दोस्तों के निजी संवादों, लेखों और बातचीत में भी कई बार पढ़ी. मैं उनके पढ़ने के तरीके पर हैरान थी और डरी हुई, लेकिन मैं चुप रही. तब मैं डरती थी बहुत. बहत चुप रहने और सहने के बाद जो ठसक और भरोसा आता है न, वो तब नहीं था. मैं बोलने से ज्यादा कुछ ऐसा बोलने की फिराक में रहती, जिसे मर्दों का अप्रूवल मिले. इसलिए मैंने न उनके नरेटिव को काटा, न अपना बताया. बस दूर बैठकर सुनती रही.
गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज का उपन्यास 'मेमोरीज ऑफ माय मेलंकली होर्स'
89 साल की नेती रेवोएल्ता की मृत्यु पर 'द इकोनॉमिस्ट' में एक लंबी स्टोरी छपी थी. एक दोस्त ने उस स्टोरी का वो हिस्सा कोट किया था, जिसमें फिदेल कास्त्रो के लिए नेती के प्रेम का बखान था. मैंने वो हिस्सा कोट किया, जिसमें फिदेल से होने वाली मुलाकातों के बीच कई-कई साल लंबा इंतजार और फिर एक दिन उसके कभी न लौटकर आने के लिए चले जाने का जिक्र था. क्यूबा का राष्ट्रपति नेती रेवोएल्ता नाम की उस लड़की को भूल चुका था. मैंने एक दूसरे लेख में पढ़ा था, "फिदेल कास्त्रो 35,000 स्त्रियों के साथ सोया" और वो अमेरिकन प्रपोगंडा आर्टिकल नहीं था.
नेती फिदेल कास्त्रों को कभी नहीं भूली. इंतजार में एक पूरी उम्र काट दी. मैं उस इंतजार पर भी देर तक ठहरी रही.
ऐसी और तमाम कहानियां थीं. जेल्डा फिट्जेराल्ड के इंतजार की, जिसके बारे में अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने कहा था कि उसने एफ. स्कॉट फिट्जेराल्ड की जिंदगी बर्बाद कर दी. हेमिंग्वे ने 1943 में अपने एडीटर मैक्सवेल को एक पत्र में लिखा, "मर्द के लिए सबसे बड़ा तोहफा है कि वो स्वस्थ रहे और दूसरा ये कि स्वस्थ औरत से प्यार करे. एक स्वस्थ औरत को दूसरी स्वस्थ औरत से कभी भी बदला जा सकता है." मैं भी यही मानती रहती कि जेल्डा ने स्कॉट का जीवन तबाह किया था, अगर मुझे एलिफ शफक की किताब 'द ब्लैक मिल्क' नहीं मिली होती.
बीमार दरअसल स्कॉट और हेमिंग्वे दोनों थे, लेकिन वो पॉपुलर नरेटिव नहीं है.
पॉपुलर नरेटिव यही है कि एफ. स्कॉट फिट्जेराल्ड महान अमेरिकी लेखक थे और हेमिंग्वे मानव इतिहास का महान रचनाकार. हेमिंग्वे, जिसने अपनी पत्नी मार्था गेलहॉर्न की वॉर रिपोर्ट पब्लिशर को अपने नाम से छपने भेज दी थी.
हेमिंग्वे को तो सब जानते हैं, मार्था को कोई नहीं जानता.
मार्था हेमिंग्वे की तीसरी पत्नी थीं. उससे शादी के पहले भी राइटर और वॉर रिपोर्टर थीं. दोनों की मुलाकात स्पेनिश सिविल वॉर कवर करते हुए हुई थी. शादी के बाद हेमिंग्वे ने बहुत दबाव बनाया कि मार्था रिपोर्टिंग छोड़कर घर बैठे और हेमिंग्वे की सेवा करे. वो नहीं मानी. मार्था जब भी रिपोर्टिंग के लिए जाती, हेमिंग्वे अपनी चिट्ठियों में उसे 'स्वार्थी' कहता, जबकि हेमिंग्वे खुद रिपोर्टिंग और अपनी किताब के लिए मटेरियल जुटाने के चक्कर में महीनों घर से गायब रहता था. एक बार जब मार्था हेमिंग्वे के बहुत लड़ने और उसकी मार खाने के बावजूद दूसरे विश्व युद्ध के समय रिपोर्टिंग के लिए इटली चली गई तो हेमिंग्वे ने उसे चिट्ठी में लिखा, "Are you a war correspondent, or a wife in my bed?"
एफ. स्कॉट फिट्जेराल्ड और जेल्डा फिट्जेराल्ड
राजेंद्र यादव, अशोक वाजपेयी और हिंदी की तमाम महान विभूतियों के मुंह से मैंने हेमिंग्वे के उपन्यासों से ज्यादा उसकी प्रेमिकाओं, चार पत्नियों और धरती से लेकर आसमान तक फैले उसके महान सेक्स का जिक्र सुना है, लेकिन किसी के मुंह से मार्था गेलहॉर्न का नाम भी नहीं सुना. 10 साल पहले राजेंद्र यादव ने एक इंटरव्यू के दौरान बहुत गर्व से भरकर हेमिंग्वे से तकरीबन अपनी तुलना करते हुए कहा, "हेमिंग्वे ने लिखा है, मेरे जीवन में आने वाली हर प्रेमिका ने मुझे एक नया उपन्यास दिया. सेक्स से उसे ऊर्जा मिलती थी."
मैंने बिना एक शब्द कहे बिल्कुल निर्विकार भाव से उस वाक्य को अपनी डायरी में नोट कर लिया.
10 साल पहले मुझे मार्था के बारे में कुछ पता नहीं था, वरना मैं उन्हें बताती कि मार्था ने हेमिंग्वे और सेक्स के बारे में क्या लिखा है. मार्था लिखती हैं, "My whole memory of sex with Ernest is the invention of excuses, and failing that, the hope that it would soon be over." (अमेरिकन जर्नलिस्ट और बायोग्राफर कैरोलिन मूरहेड की लिखी मार्था गेलहॉर्न की जीवनी से.)
तब मैं शहर दिल्ली और हिंदी साहित्यकारों की दुनिया में नयी-नयी आई थी. लेकिन ज्यादा वक्त नहीं लगा ये समझने में कि सेक्सिस्ट चुटकुलों, औरतों के शरीर के बेहूदा वर्णन और अपनी सेक्स लाइफ के कसीदे पढ़ रही इन लेखकों की निजी महफिलों में मेरे लिए कोई सम्मानजनक जगह नहीं है. मैंने राजेंद्र यादव के घर में सिर्फ दो पार्टियां अटेंड की हैं. उसके बाद मैंने किसी साहित्यकार की किसी निजी महफिल में न जाने की कसम खाई. न उनसे मिलने और न उन्हें पढ़ने की.
लेकिन मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा. मैंने अपनी कहानी, अपना नरेटिव ढूंढना शुरू किया.
मैंने वो किताबें, वो कहानियां खोजीं, जिसमें मेरी कहानी थी. ये खोज मुझे केट मिलेट से लेकर सूजन, ग्लोरिया, उर्सुला और लॉरा मुल्वे तक ले गई. मार्था तक भी मैं उसी यात्रा में पहुंची क्योंकि अगर कोई छोटे शहर की 20 साल की लड़की इन लेखकों को इस उम्मीद से देखती है कि वो उसे सही किताबों का पता बता देंगे तो वो मुगालते में है. हिंदी के अधिकांश लेखकों के पास हेमिंग्वे और अपनी सेक्स लाइफ को ग्लोरीफाई करने और तुम्हारी छातियां ताड़ने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं है
वो कभी नहीं बताएंगे तुम्हें सही किताब, सही कहानी. तुम्हारी कहानी. वो फेसबुक पर सिर्फ तुम्हारी फोटो पर दिल बनाकर जाएंगे, तुम्हारे लिखे को देखेंगे भी नहीं.
मेरी टेरेज वॉल्टर और पाब्लो पिकासो
वो तुम्हारे डर, भय, संकोच, अपनी बात न कह पाने की कमजोरी को तुम्हारी हां मानकर तुम्हारा नख-शिख वर्णन करेंगे. ये जो तर्क दे रहे हैं न महान कला के कलावादी समर्थक, "तुम्हें कैसे पता कि हां नहीं है. जरूरी तो नहीं कि हां मुंह से ही बोली जाए."
बांस होता तो उन अहंकारियों के मुंह में ठूंस देती, लेकिन उन्हें छोड़ो. मैं तुमसे बात कर रही हूं.
हां, बिल्कुल मुमकिन है कि तुमने मुंह से बोला न हो, फिर भी तुम्हारी हां हो. लेकिन पता है, दिक्कत क्या है. दिक्कत ये है कि ज्यादा संभावना इसी बात की है कि तुम्हें खुद भी ठीक से नहीं पता था कि तुम्हारी हां है या नहीं. तुम्हें जितने ठीक से अपना डर पता था, अपनी चुप्पी और संकोच पता था, जितनी शिद्दत से तुम्हें ये पता था कि तुम्हारे देवी और स्लट होने में सिर्फ बाल भर का फासला है, उतनी शिद्दत से तुम्हें अपनी हां पता नहीं थी. हां पता होने के लिए जरूरी था कि हां बोलने से पहले तुम्हें ना बोलना सिखाया गया होता, लेकिन तुम्हें तो सिर्फ सिर झुकाना, आज्ञा का पालन करना, बात मानना, सबको खुश रखना सिखाया गया था.
जब उन्होंने तुम्हारे उदग्र कुचाग्रों और अधरों में तुम्हारी हां पढ़ ली और उसकी गौरव कथा लिखी, तुम सिर्फ सहमी उदास अकेली ये समझने की कोशिश कर रही थी कि ये आखिर था क्या.
17 साल की मेरी टेरेज वॉल्टर के साथ जब 45 साल का पिकासो सोया था, मेरी को पता नहीं था कि इसमें उसकी हां है. 15 साल की ऊना चैप्लिन के साथ जब 54 साल का चार्ली चैप्लिन सोया था, ऊना को भी पता नहीं था कि इसमें उसकी हां है. 16 साल की सूनी के साथ जब 51 साल का वुडी ऐलन सोया था, तब सूनी को भी नहीं पता था कि इसमें उसकी हां है. मेरी 12 साल की दूर की दादी जब 40 साल के दादा से ब्याह दी गई थी, तब उसे भी नहीं पता था कि इसमें उसकी हां है. मार्खेज के उपन्यास की 14 साल की लड़की का वेश्या होना उसकी मजबूरी तो थी, लेकिन उसकी हां नहीं थी.
ये प्यार का, सेक्स का, कंसेंट का, हां का, इंतजार का, समर्पण का, स्त्रीत्व का सारा नरेटिव, साहित्य में और जिंदगी में भी, ये मर्द का एकतरफा नरेटिव है. उसने तुम्हारे मुंह पर ताला लगाकर कंसेंट वाले कागज पर खुद साइन कर लिए.
इस सारे साहित्य में जब तक स्त्री सालों बैठी सिर्फ इंतजार कर रही है, तब तक वो मर्द का नरेटिव है. जब वो इंतजार करना छोड़कर अपना जीवन, अपना रास्ता ढूंढने निकल जाती है तो वो औरत का नरेटिव हो जाता है. मुझे नहीं पता तुम्हारा नरेटिव, तुम्हारी कहानी, जब तक तुम खुद न सुनाओ.
मुझे इनकी सुनाई कहानियों पर यकीन नहीं.
पता है, हेमिंग्वे को महान बताने वालों ने कभी मार्था गेलहॉर्न का जिक्र क्यों नहीं किया क्योंकि हेमिंग्वे की जिंदगी में आई अनगिनत औरतों में वो अकेली थी, जिसका अपना नाम और अपनी पहचान थी. जिसने दूसरे विश्व युद्ध से लेकर वियतनाम तक पर सैकड़ों रिपोर्ट और 20 से ज्यादा किताबें लिखी. बाद में जिसके जीवन और काम पर 16 किताबें लिखी गईं. जिसने हेमिंग्वे से अलग होने के बाद कहीं भी अपने नाम और काम के साथ हेमिंग्वे का नाम जोड़े जाने पर सख्त ऐतराज जताया था. हेमिंग्वे की चार बीवियों में वो अकेली थी, जिसने खुद आगे बढ़कर तलाक मांगा था. बाकियों को तो हेमिंग्वे ने छोड़ा.
मार्था ने लिखा है, "मैं हेमिंग्वे की किताब का फुटनोट नहीं हूं. मैं खुद अपनी किताब हूं."