भारत सऊदी संबंधों की ऊंचाईयां
भारत और सऊदी अरब के बीच सदियों पुराने आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक संबंधों के साथ-साथ सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। अब जबकि दुनिया कई चुनौतियों का सामना कर रही है
आदित्य चोपड़ा; भारत और सऊदी अरब के बीच सदियों पुराने आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक संबंधों के साथ-साथ सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। अब जबकि दुनिया कई चुनौतियों का सामना कर रही है तो भारत और सऊदी अरब संबंध बहुत अहम हो जाते हैं। दोनों देशों के रिश्ते प्रगाढ़ होने के पीछे भी कई कारण हैं। लगातार बदलती क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों ने भारत और सऊदी अरब को पहले से कहीं अधिक करीब ला दिया। दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों की बढ़ती प्रकृतियों में ऊर्जा, तेल, रक्षा, सुरक्षा, निवेश, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शामिल है। वैसे तो दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय सहयोग उस समय शुरू हुआ जब किंग सौद ने 1955 में भारत का दौरा किया जिसके एक वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सऊदी अरब का दौरा किया। इसके बाद 1959 में तत्कालीन क्राउन प्रिंस फैजल ने भारत का और 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सऊदी अरब का दौरा किया। सहयोग का सर्वाधिक स्पष्ट विकास 2006 में दिखाई दिया जब किंग अब्दुल्ला भारत दौरे पर आए और उन्होंने ऐतिहासिक दिल्ली घोषणा पर हस्ताक्षर किए।26 जनवरी 2006 में नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर सऊदी के किंग मुख्य अतिथि थे। वह यह सम्मान प्राप्त करने वाले पहले सऊदी किंग थे। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में नए आयाम स्थापित कर दिए। 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एकमात्र ऐसे भारतीय नेता बने जिन्हें सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान किंग अब्दुल अजीज सैश प्रदान किया गया। 2018 में सऊदी अरब के प्रतिष्ठित वार्षिक राष्ट्रीय विरासत तथा सांस्कृतिक उत्सव में भारत को गेस्ट ऑफ ऑनर के लिए चुना गया। उसके बाद से प्रिंस सलमान तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच की वार्ता से आशावाद का संचार हुआ और दोनों देशों के निवेश पर्यटन व्यापार, साहित्य कई अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दरअसल क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में सऊदी अरब के समाज में कई परिवर्तन देखने को मिले। उन्होंने लंबे समय से स्थापित संकीर्णतावादी मुस्लिम समाज को आधुनिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और कई कदम उठाए। उन्होंने महसूस किया कि राजस्व के लिए केवल तेल पर निर्भर रहना सही नहीं होगा। इससे देश का विकास प्रभावित हो सकता है।उन्होंने विजन 2030 के माध्यम से अपना ध्यान पर्यटन,रक्षा व्यापार, आवास तथा निवेश जैसे क्षेत्रों पर केन्द्रित करना शुरू किया। और राजस्व के स्रोतों का विविधिकरण किया। इसके परिणाम स्वरूप सऊदी भारत की तरफ आकर्षित हुआ और भारत उसकी तरफ बढ़ा तब दोनों को एक के बाद एक नए अवसर उपलब्ध होते गए। सऊदी अरब लम्बे समय तक पाकिस्तान का सबसे बड़ा मददगार रहा लेकिन हालात बदलते गए लेकिन ऐबटाबाद बाद में अमेरिकी सैनिकों द्वारा ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद सऊदी का पाकिस्तान से भरोसा उठ गया। अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों के इस्तेमाल और सऊदी अरब के विरोधी आतंकवादियों को शरण देने के मामले पर सऊदी अरब पाकिस्तान से दूर होता गया। जब सऊदी अरब को यमन में युद्ध के लिए सैनिकों की जरूरत पड़ी तो पाकिस्तान ने उसे साफ इंकार कर दिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों सऊदी अरब के दौरे पर हैं। इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सहयोग को और प्रगाढ़ करना है। विदेश मंत्री ने अपने समकक्ष शहजादे फैसल बिन फरहान अल सऊद के साथ भारत सऊदी अरब रणनीतिक भागीदारी परिषद के ढांचे के तहत स्थापित सहयोग समिति की पहली बैठक की सह अध्यक्षता भी की। आज के दौर में कोई भी देश अकेला नहीं चल सकता। आज परस्पर सहयोग बहुत जरूरी है। भारत कच्चे तेल का 18 प्रतिशत से अधिक आयात सऊदी अरब से करता है। सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक सांझेदार है। इस वित्त वर्ष के दौरान द्विपक्षीय व्यापार भी 29.28 अरब डॉलर का हो गया है। भारत ने सऊदी अरब से 22.65 अरब डॉलर का आयात किया जबकि सऊदी अरब को निर्यात 6.63 अरब डॉलर का रहा। सऊदी अरब में लगभग 30 लाख के करीब भारतीय काम करते हैं जो अरबों डॉलर भारत को भेजते हैं। दोनों देशों के मदद संबंधों में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है। कोरोना महामारी के दौरान भी दोनों देशों में काफी घनिष्ठ सहयोग रहा। सऊदी अरब और भारत के सैन्य संबंध भी बन रहे हैं। और सऊदी अरब और भारत के सुरक्षा क्षेत्र में निवेश का इच्छुक है। अब दोनों देशों के संबंध नई ऊचाईचों को छू रहे हैं।