CWC में जीत हासिल कर के क्या सचमुच राहुल गांधी कांग्रेस के सिकंदर बन गए हैं?

राहुल को अध्यक्ष बनाने की फिर मांग उठी

Update: 2021-10-18 04:38 GMT

अजय झा.

कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की शनिवार को एक मीटिंग हुई. मीटिंग को अहम् बताया जा रहा था, इसलिए भी कि लगभग डेढ़ साल बाद सभी नेता एक कमरे में इकट्ठे हुए थे. इस बीच CWC की जितनी भी मीटिंग हुई वह वर्चुअल थी. कयास यही लगाया जा रहा था कि मीटिंग में खूब शोरगुल मचेगा और आतिशबाजी होगी. पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मीटिंग की शुरुआत में ही कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष ने विरोधियों की हवा गुल कर दी. आतंरिक चुनाव के कार्यक्रम और समयसूची सभी को सौंप दी गई और सोनिया गांधी ने घोषणा की कि वही पार्टी की पूर्णकालिकअध्यक्ष हैं.


विरोधियों में सिर्फ तीन ही ऐसे CWC सदस्य थे जिन्होंने पिछले वर्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर आंतरिक चुनाव करवाने की मांग करने की हिम्मत दिखाई थी. जिन्हें G-23 के नाम से जाना गया. उनमें से एक मुकूल वासनिक पहले ही अपनी महासचिव पद की कुर्सी बचाने के लिए अलग हो चुके थे, बाकी के दो गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा की मांग थी कि पार्टी में आतंरिक चुनाव हो और उनकी मांग मान ली गयी थी. यह अलग बात है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव अगले वर्ष अगस्त-सितम्बर में होगा और तब तक उन्हें चुपचाप प्रतीक्षा करना पड़ेगा.


राहुल को अध्यक्ष बनाने की फिर मांग उठी
मांग उठी कि राहुल गांधी एक बार फिर से अध्यक्ष पद संभालें, जिसकी कि पूरी उम्मीद थी. राहुल गांधी ने मास्क लगा रखा था, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि इस मांग से वह कितना खुश हुए और क्या वह मुस्कुरा रहे थे. राहुल गांधी ने इस मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया. यानि यह भी तय हो गया कि अगले वर्ष एक बार फिर से उनकी ताजपोशी होगी. अब इसके बाद बचा ही क्या था कि जिसपर आतिशबाजी होती, हुई भी नहीं. मीटिंग लम्बी चली और बाकी का समय मोदी सरकार की आलोचना और उसे घेरने की परियोजना बनाने को सुपुर्द हो गया जो लाजिमी भी था. प्रमुख विपक्षी दल, और वह भी जब कुछ ही महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाला हो, तो सरकार की तारीफ की उम्मीद की भी नहीं जा सकती है.

सोनिया के भरोसे ही रहेगी कांग्रेस
CWC मीटिंग का निचोड़ यही रहा कि सोनिया गांधी पूर्णकालिक या अंतरिम, पर अध्यक्ष बनी रहेंगी. हां सोनिया गांधी ने यह भी कहा था कि एक अध्यक्ष होने के नाते वही सभी फैसले लेती हैं. पता नहीं कितनों को यह दावा हलक से नीचे उतरा. यानि सोनिया गांधी के नाम पर राहुल गांधी बेहिचक और बेधड़क लाभदायक कम और नुकसानदायक ज्यादा फैसले लेते रहेंगे. अगर किसी को इस विषय में शक था तो बता दे कि राहुल गांधी ने ही फैसला किया था कि पंजाब प्रदेश अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा नामंजूर किया जाता है, जो पार्टी आलाकमान के दो पदाधिकारियों के साथ उनकी वृहस्पतिवार की मीटिंग में बता दिया गया. CWC की बैठक शनिवार सुबह होनी थी और शुक्रवार रात को सिद्धू सोनिया गांधी ने नहीं बल्कि राहुल गांधी से मिले और संतुष्ट हो कर वापस पंजाब रवाना हो गए.

राजस्थान का ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ ही गया
शनिवार को CWC की मीटिंग के बाद आख़िरकार राजस्थान का ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ ही गया जब न चाह कर भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राहुल गांधी से मिलने उनके बंगले पर गए. गहलोत अभी तक राहुल गांधी को अपना नेता नहीं मान रहे थे. पिछले डेढ़ वर्षों से वह राहुल गांधी से मिलने से कतरा रहे थे ना ही उनकी सुन रहे थे. राहुल गांधी ने कितने ही केंद्रीय नताओं को राजस्थान भेजा पर गहलोत के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी. उनकी ही तरह पंजाब में अमरिंदर सिंह भी थे. वह भी राहुल गांधी को नेता नहीं मान रहे थे और उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला राहुल गांधी का था, ना की सोनिया गांधी का.
बहरहाल, खबर है कि गहलोत अपनी कुर्सी बचाने के लिए राहुल गांधी की सलाह पर बागी नेता सचिन पायलट के समर्थकों को मंत्री भी बनायेंगे और राजास्थान में पार्टी पदों पर भी उनकी नियुक्ति होगी. बताया जा रहा है कि गहलोत मंत्रीमंडल में बदलाव 4 नवम्बर के बाद होगा, यानि दिवाली के बाद, तबतक राजस्थान विधानसभा उपचुनाव का रिजल्ट भी आ चुका होगा.

अब राहुल गांधी की फ़ौज जिनका कि कांग्रेस मुख्यालय पर पूर्ण नियंत्रण है एक ही काम होगा यह सुनिश्चत करना कि अगले वर्ष जब जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए चुनाव हो तो उनके खिलाफ कोई दूसरा उम्मीदवार मैदान में नज़र ना आये और उन्हें आम सहमति से बिना मतदान के ही अध्यक्ष चुन लिया जाए. यह अलग बात है की तब तक पार्टी का कुछ और नुकसान हो चुका होगा. पर चुनाव हारने का खौफ अब गांधी परिवार को नहीं सताता है. और हो तो कब तक, जब उनके नेतृत्व में एक के बाद एक चुनाव में पार्टी चुनाव हारती चली गयी. गांधी परिवार हार से नहीं डरते, सिर्फ जीत का ही सपना देखते हैं, जिसे ही शायद पॉजिटिव थिंकिंग कहते हैं.

पांच राज्यों में हार से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला
वैसे भी जिन पांच राज्यों में अगले वर्ष के पहले तिमाही में विधानसभा चुनाव होने वाला है उनमे से चार में तो बीजेपी की ही सरकार है. यानि उन राज्यों में हारे तो क्या फर्क पड़ता है. रही बात पांचवें राज्य पंजाब की जहां राहुल गांधी की जीत हो ही चुकी है,अमरिंदर सिंह जैसे कद्दावर नेता को ठिकाने लगाने के बाद. और यह भी किसी जीत से कम तो नहीं कि CWC मीटिंग में G-23 नेताओं के बागी तेवर को शांत कर दिया गया. माताश्री अध्यक्ष पद संभालती रहेंगी और वह पूर्व की ही तरह सभी महत्वपूर्व फैसले लेते रहेंगे. फिर वह अध्यक्ष बन जाएंगे, बहन प्रियंका गांधी को पार्टी में नंबर दो का स्थान मिल जाएगा और सोनिया गांधी मार्गदर्शक की भूमिका में दिखने लगेंगी. राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के बाद अपने आप को एक बार फिर से प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित करंगे. और अगर 2024 के आमचुनाव में कांग्रेस हार ही गयी तो वह कांग्रेस की हार होगी, गांधी परिवार तो विरोधियों को शांत करके या उन्हें पार्टी से भगा कर जीत ही चुका होगा. इतनी सारी जीत के बाद एक और हार का क्या मायने रह जाएगा?


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